पक्षपात से बिगड़ती है परिवार की स्थितियां : प्रदीप रश्मि
कपड़ा मार्केट में स्थित जैन सभा में प्रदीप रश्मि ने प्रवचन करते हुए कहा कि हर व्यक्ति अपने अधिकार सम्मान व स्वाभिमान के प्रति जागरूक रहता है।
संस, बठिडा : कपड़ा मार्केट में स्थित जैन सभा में प्रदीप रश्मि ने प्रवचन करते हुए कहा कि हर व्यक्ति अपने अधिकार सम्मान व स्वाभिमान के प्रति जागरूक रहता है। इसलिए वह पक्षपात का व्यवहार सहन नहीं कर पाता। पक्षपात रिश्तों में कड़वाहट भर देता है। यदि आप रिश्तों को मधुर रखना चाहते हैं अपने घर में पक्षपात के व्यवहार को समाप्त करना होगा। घर के बड़े लोगों का दायित्व होता है कि वह अपने परिवार के सदस्यों में किसी प्रकार का पक्षपात न करें। सबको सम्मान अधिकार ओर प्यार दें। एक भाई को लगता है के पिता दूसरे भाई की ज्यादा प्रशंसा करते है, ज्यादा अधिकार देते हैं, ज्यादा महत्व देते हैं तो उस समय वह भाई पीड़ित होता है व अपने ही भाई के प्रति ईष्र्या से भर जाता है। इसी प्रकार जब सास बहु के साथ, गुरु शिष्य के साथ शिक्षक विद्यार्थियों के साथ पक्षपात करता है तब होता क्या है। जिसको पक्षपात से लाभ मिल रहा है उसको अपनी श्रेष्ठा का अहंकार हो जाता है ओर जिसको पक्षपात से नुकसान हो रहा है उसमें हीनता व व ईष्र्या का भाव पैदा हो जाता है। ईष्र्या ओर अहंकार जब आपस में टकराते हैं तब रिश्तों में अनेक समस्या पैदा हो जाती है। हमें रामायण से प्रेरणा लेनी चाहिए कि रिश्तों को कैसे जीना होता है। केकई ने राजा दशरथ से दो वर में भरत के लिए राज्य मांग लिया ओर राम के लिए बनवास। दशरथ को राम का अधिकार भरत को देना पड़ा, यह राम के साथ पक्षपात है। लेकिन दशरथ ने राम को अपने पास बुलाया ओर कहा कि अगर तू कहे तो तेरा राज्य भरत को दे दूं। तब राम की आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने कहा कि पिता जी आपको मेरी योग्यता संस्कार विश्वास पर संदेह है तभी आप मुझसे पूछ रहें है। इससे बढ़कर पुत्र की अयोग्यता का और क्या प्रमाण हो सकता है कि पिता को अपनी कमाई संपत्ति को खर्च करने के लिए या किसी को देने के लिए पुत्र को पूछना पड़े, राज्य आपका है आप भरत को दें मुझे खुशी होगी। दशरथ राम की उदारता से प्रभावित हुए।अब भरत के सामने राज्य लेने की बात आई तो भरत ने राज्य को अस्वीकार कर दिया। दशरथ ने पक्षपात के अवसर पर यहां राम को विश्वास में लेने का काम किया वैसे ही बड़ों को चाहिए कि वह बिना कारण अपने परिवार में किसी प्रकार का पक्षपात ना करें और अगर ऐसा मजबूरी वश करना पड़ रहा है तो इस पक्षपात से जिसको नुकसान की संभावना है उसको विश्वास में ले लें। उससे विश्वासघात या चोरी ना करें और जिस को नुकसान हो रहा है उसको भी बड़ा दिल रखना चाहिए। जिसको पक्षपात का लाभ मिल रहा है उसको चाहिए कि वह पक्षपात का लाभ न ले। अपने बड़ो को पक्षपात ना करने के लिए समझाये। जो अपनी योग्यता के मुताबिक मिलता है वही श्रेष्ठ होता है। दूसरे के अधिकार पर पांव रखकर जो मिलता है वह श्रापित होता है। अपनों के साथ पक्षपात भयंकर विष की बेल है जिसके कारण पूरे वातावरण में नफरत का जहर फैल जाता है।