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गेहूं की नाड़ को जगह-जगह पर लगाई आग, लेकिन विभाग के पास डाटा नहीं

प्रशासन की तरफ से पाबंदी लगाई होने के बाद भी किसान खेतों में पराली को आग लगा रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 09 Jun 2019 07:20 PM (IST)Updated: Sun, 09 Jun 2019 07:20 PM (IST)
गेहूं की नाड़ को जगह-जगह पर लगाई आग, लेकिन विभाग के पास डाटा नहीं
गेहूं की नाड़ को जगह-जगह पर लगाई आग, लेकिन विभाग के पास डाटा नहीं

जागरण संवाददाता, बठिडा : प्रशासन की तरफ से पाबंदी लगाई होने के बाद भी किसान खेतों में पराली को आग लगा रहे हैं। वहीं लोकसभा चुनाव संपन्न होने के बाद किसानों को भी बड़ी राहत मिली है। इस बार गेहूं की नाड़ जलाने वाले किसी भी किसान को कोई जुर्माना नहीं होगा। ऐसे किसानों का कोई डाटा तैयार नहीं किया गया है, जिन्होंने नाड़ जलाई हो। क्योंकि पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड सहित प्रशासनिक अधिकारी व मुलाजिमों लोकसभा चुनाव में ड्यूटी में व्यस्त रहे। हालांकि इस बार नाड़ जलाने के केस एक हजार से भी अधिक सामने आए हैं। इसमें सबसे ज्यादा केस बठिडा क्षेत्र के हैं, जहां 200 से ज्यादा किसानों ने अपने खेतों में नाड़ जला दी। पिछले साल में पराली जलाने वालों का आंकड़ा 1 हजार के करीब था।

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वहीं पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की ओर से डीसी बठिडा को इस बारे में सारी जानकारी भी दे दी गई है। वहीं इस संबंध में हुई बैठक में भी बताया गया है कि इस बार एक भी किसान को खेत में नाड़ को आग लगाने के मामले में जुर्माना नहीं किया गया है, क्योंकि सारा स्टाफ चुनाव की ड्यूटी में व्यस्त रहा। जबकि अब किसान भी खेत में नाड़ जलाने से स्वास्थ्य और मिट्टी को होने वाले नुकसान के प्रति जागरूक होने लगे हैं, क्योंकि पिछले साल गेहूं की कटाई के बाद नाड़ को आग लगाने के 1 हजार से कुछ ज्यादा मामले सामने आए। जबकि धान की कटाई के बाद नाड़ को खेत में जलाने के लगभग इतने ही मामले सामने आए। धान के सीजन में लगाई थी 4127 जगहों पर आग

धान के सीजन के दौरान जिले में 4127 जगहों पर यानी कि 50 हजार हेक्टेयर से ज्यादा के एरिया में पराली को आग लगाई गई है, जिनमें अभी तक सिर्फ 450 किसानों की पहचान कर ली गई है, मगर केस एक भी दर्ज नहीं किया गया। यहीं नहीं इन 450 किसानों के चालान काटकर इनको 11.25 लाख रुपए जुर्माना भी किया गया है, लेकिन रिकवरी भी पूरी नहीं हुई। इसी प्रकार मानसा जिले में भी 2762 घटनाएं पराली जलाने की सामने आई, जिनमें से सिर्फ 4 किसानों को ही 25 हजार रुपए जुर्माना किया गया। इसमें से सिर्फ 2500 रुपए की ही रिकवरी हुई है। जबकि पराली जलाने के मामले में एफआईआर एक भी किसान पर नहीं हुई है। 2017 की रिपोर्ट

बठिडा जिले में 2017 में पराली जलाने के सेटेलाइट ने 3501 केस बताए थे, जिसमें से सिर्फ 40 किसानों की ही पहचान की गई थी। लेकिन चालान किसी का भी नहीं काटा था। क्योंकि पंजाब सरकार ने किसानों को सब्सिडी देने पर जोर दिया था। मगर इस बार चालान तो काटे गए, लेकिन रिकवरी नहीं हुई। इसी प्रकार मानसा में भी गत वर्ष 3072 केस सामने आए थे, जिसमें से 39 केसों के तहत किसानों को 1 लाख 25 हजार रुपए जुर्माना किया था। मगर रिकवरी इसमें से भी अभी तक कुछ नहीं हुई है।

टीमों ने भी नहीं दिया ध्यान

धान के सीजन दौरान खेतों में किसान पराली को आग लगाए इसके लिए जिले में टीमों का गठन किया गया। इसमें तहसीलदार से लेकर पटवारी, पंचायत सचिव खेतीबाड़ी विभाग के अफसरों को भी शामिल किया गया। लेकिन टीमों की लापरवाही के कारण जिले में धड़ाधड़ खेतों में पराली को आग लगाई गई। नतीजा जिले में जगह जगह पर पराली में आग लगाने की घटनाएं चिह्नित की गई है। यहां तक कि जिला रेवेन्यू विभाग के पटवारियों, जिला विकास एवं पंचायत विभाग के ग्राम सचिवों को सबसे अहम जिम्मेदारियां दी गई थीं। पराली में आग लगने की प्राथमिक सूचना प्रशासन को मुहैया करवाना दोनों कर्मचारियों की जिम्मेदारी थी। ऐसे लगता है जुर्माना

दो एकड़ तक 2500 रुपए, 5 एकड़ तक 5000 रुपए 5 एकड़ से अधिक जमीन पर आग लगाने पर 15 हजार रुपए जुर्माना तय किया था। जबकि पराली में आग लगाने से किसानों को रोकने के लिए डीसी की अध्यक्षता में विभिन्न विभागों की कमेटी बनाई गई थी। इसमें पुलिस विभाग, कृषि विभाग, पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड, जिला विकास एवं पंचायत विभाग, रेवेन्यू विभाग के अधिकारियों को शामिल किया गया था। इन विभागों की है जिम्मेदारी

- पुलिस- कार्रवाई पर अमल करवाना।

- कृषि- किसानों को पराली जलाने के नुकसान विकल्प बताना।

- पंचायत- ग्राम सचिवों द्वारा सूचना देना।

- रेवेन्यू- पटवारियों द्वारा सूचना देना जुर्माना नोटिस वसूली।

- प्रदूषण- जुर्माना नहीं देने पर मुकदमा दर्ज कर पैरवी करना।

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