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शायरी मेरे खून में है और मुझे अदब की घुट्टी मिली है : आइजी

पुलिस का नाम आते ही हर आदमी के जेहन में गुस्सैल आदमी का चेहरा नजर आता है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 20 Oct 2018 08:44 PM (IST)Updated: Sat, 20 Oct 2018 08:44 PM (IST)
शायरी मेरे खून में है और मुझे अदब की घुट्टी मिली है : आइजी
शायरी मेरे खून में है और मुझे अदब की घुट्टी मिली है : आइजी

पुलिस का नाम आते ही हर आदमी के जेहन में गुस्सैल आदमी का चेहरा नजर आता है। लेकिन पुलिस में कुछ अधिकारी ऐसे भी हैं जो बहुत कोमल हृदय के हैं, जो बहुत संवेदनशील हैं। ऐसे संवेदनशील व्यक्तियों में ब¨ठडा रेंज के आइजी एमएफ फारूखी का नाम शुमार होता है। वह जहां पुलिस में आइजी पद की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं वहीं वे अपनी संवेदनाएं शायरी से व्यक्त करते हैं। उनकी चार पुस्तकें उर्दू में प्रकाशित हो चुकी हैं। उनमें तीन शायरी की हैं जबकि एक कहानी संग्रह है। इन चारों पुस्तकों का ¨हदी में भी अनुवाद हो चुका है। उनकी निजी ¨जदगी, परिवार व अब तक अनुभवों को जानने के लिए हमारे चीफ रिपोर्टर गुरप्रेम लहरी ने उनसे प्रोफेशन से हटकर विस्तार में बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश..। सवाल- पुलिस की नौकरी व शायरी करना अलग-अलग बातें हैं। आप कैसे इनमें तालमेल बिठाते हैं?

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फारूखी- हर एक बॉयलर का एक सेफ्टी बॉल होता है। कला इंसान को सेफ्टी बॉल देते हैं। ये कलाएं इंसान को इंसान बने रहने में साथ देती हैं। परेशानी में भी कलाकार लोग परेशानी का समाधान ढूंढ तलाश लेते हैं। ऐसे में मेरे लिए मेरी शायरी सेफ्टी बॉल है। पुलिस अधिकारी होने के नाते ¨जदगी में तमाम अच्छी और बुरी बातों का संबंध होता है। अगर सेफ्टीबॉल पुलिस अधिकारी में ना हों तो ¨जदगी की समस्याओं को सुलझाना कठिन काम है। शायर होने के कारण मैं उन लोगों की बात की तह तक जाता हूं जो मेरे पास फरियाद लेकर आते हैं। मैं उनकी वेदना को समझ सकता हूं।

सवाल : आप कब से शायरी कर रहे हैं? शायर पहले थे या पुलिस अफसर?

फारूखी : शायरी मेरे खून में है। मेरे पिता भी शायर थे और मेरे नाना भी शायर थे। मुझे अदब की घुट्टी मिली है। बचपन में ही मुशायरे देखने को मिले। मुझे लोरियां भी शायरी में ही गई।

सवाल-आपकी शायरी का फोकस एरिया क्या है?

फारूकी- मैं ¨जदगी के बारे में कुछ भी लिख लेता हूं। जो मेरी ¨जदगी के अनुभव हैं। हालांकि गजल महबूब की तारीफ करने के लिए है लेकिन ¨जदगी ने आज सबको उलझा दिया है तो अब गजल में सब कुछ शामिल हो गया है। अब गजल में महबूब की तारीफ भी होती है, मां का प्यार भी और समाज में हो गई गतिविधियां भी शामिल होती हैं। शायरी में हम दो लाइनों में बड़ी से बड़ी परेशानी का समाधान ढूंढ लेते हैं।

सवाल- आपके चर्चित शेयर कौन से हैं?

फारूकी- एक दरख्त कटने से यूं है आंख नम मेरी,

ये न जानें कितनों का आसरा रहा होगा।

-घर जो भरना हो तो रिश्वत से भी भर जाता है,

हां, मगर इससे दुआओं का असर जाता है।। सवाल-आप अपने परिवार को प्राथमिकता देते हैं या प्रोफेशन को ?

फारूकी: इंसान को अपने परिवार के लिए समय निकालना चाहिए। हम नौकरी इसलिए ही करते हैं कि परिवार की देखभाल कर सकें। अगर हमने परिवार के लिए ही समय नहीं निकालना तो नौकरी किस लिए करनी। हमें दरमियानी ¨जदगी व्यतीत करनी चाहिए और ¨जदगी में बैलेंस बनाकर चलना चाहिए। सवाल-अगर कभी ऐसी स्थिति बनती है कि आपको ड्यूटी पर भी इमरजेंसी है और परिवार को भी आपकी जरूरत है तो आप किसको प्राथमिकता देंगे?

फारूकी : कई दफा ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि घर में भी जरूरत होती है और प्रोफेशन में भी। तो स्थिति देखता हूं कि मेरी ज्यादा जरूरत परिवार को है या प्रोफेशन को। अगर मेरे प्रोफेशन का काम किसी और अधिकारी को सौंपा जा सकता है तो उसको सौंप कर परिवार संभालने को पहल देता हूं और अगर मेरे घर का काम कोई और कर सकता है तो मैं प्रोफेशन को प्राथमिकता देता हूं।

सवाल: आप बच्चों का बौद्धिक विकास चाहते हैं या फिर उनके नंबरों को प्राथमिकता देते हैं ?

फारूकी- मेरे दो बेटे हैं। मैं चाहता हूं कि वे दोनों ही अच्छे इंसान बनें। अगर वे डाक्टर या इंजीनियर बन कर अच्छे मुकाम पर पहुंच भी जाएं और किसी के काम न आएं तो ये ऐसा चिराग होगा, जिसकी रोशनी सिर्फ अपने तक ही रहती है। ऐसे चिराग का क्या फायदा जो दूसरों के लिए रोशनी ही ना कर सके। नंबर मैटर नहीं करते, आपके बच्चे अच्छे इंसान बनें, यह बहुत बड़ी बात है। कामयाब तो आजकल हर कोई हो हो जाता है, यह कोई बड़ी बात नहीं है। ¨जदगी में बीच का रास्ता अख्तियार करना चाहिए। यह ¨जदगी के लिए भी है और दृष्टिकोण के लिए भी। मेरी कोशिश है कि बच्चों को ऐसे मूल्य दिए जाने चाहिए कि वे अच्छे इंसान बनें।

सवाल: आप कहां से हैं? क्या अपने पैतृक शहर को मिस करते हैं?

फारूकी: मैं इलाहाबाद का रहने वाला हूं। इलाहाबाद को बहुत मिस करता हूं लेकिन अब बहुत कम जाना होता है। ¨जदगी के सफर में कहीं अपने ही पीछे न छूट जाएं, म¨जल पर पहुंच कर पता चले कि हम अकेले ही खड़े हैं। इसलिए मैं उनसे संपर्क बनाए रखता हूं। मेरी बहन, अन्य रिश्तेदार व दोस्त वहीं पर रहते हैं।

सवाल- स्कूल, कॉलेज के समय के दोस्तों को भूल चुके हैं या अभी भी संपर्क में हैं ?

फारूकी: मैं स्कूल-कॉलेज के दोस्तों के टच में रहता हूं। मेरे क्लासमेट्स ने वाट्सएप पर एक ग्रुप बना रखा है। इसमें रोजाना उनसे बातचीत होती रहती है। मैं स्कूल व कॉलेज के दोस्तों से अक्सर बातचीत करता रहता हूं। हालांकि मिलने का अवसर बहुत कम मिलता है। उनसे बातें करके यादें ताजा कर लेता हूं।


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