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अब एक से अधिक बार नहीं प्रयोग किया जा सकेगा ई-वे बिल

अगर एक ई-वे बिल को एक से अधिक बार प्रयोग किया तो बॉर्डर से गुजरते ही रेडियो फ्रिक्वेंसी टैग पकड़ लेगा। इसके लिए राज्यों के बार्डर पर ट्रैक्र भी लगाए जाएंगे।

By JagranEdited By: Published: Sun, 14 Oct 2018 06:20 PM (IST)Updated: Sun, 14 Oct 2018 06:20 PM (IST)
अब एक से अधिक बार नहीं प्रयोग किया जा सकेगा ई-वे बिल
अब एक से अधिक बार नहीं प्रयोग किया जा सकेगा ई-वे बिल

जागरण संवाददाता, ब¨ठडा : अगर एक ई-वे बिल को एक से अधिक बार प्रयोग किया तो बॉर्डर से गुजरते ही रेडियो फ्रिक्वेंसी टैग पकड़ लेगा। इसके लिए राज्यों के बार्डर पर ट्रैक भी लगाए जाएंगे। जबकि केंद्र की ओर से लगाए गए जीएसटी के बाद 50 हजार और इससे अधिक के माल का ई-वे बिल होना जरूरी है। ई-वे बिल के अपडेट करते ही पूरी जानकारी रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइस (आरएफआइडी) में मैप हो जाएगी। फास्ट टैग की तरह यह टैग भी वाहन की ¨वड स्क्रीन पर लगाया जाएगा। जैसे ही गाड़ी आरएफआइडी ट्रैकर से गुजरेगी तभी टैग रीड हो जाएगा। गड़बड़ी मिलने पर अगले ट्रैकर पर गाड़ी को पकड़ लिया जाएगा। वहीं इसको लेकर राज्यों में अधिकारियों को ट्रे¨नग भी दी जा रही है।

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इस कारण शुरू की है यह योजना

केंद्र सरकार ने 50 हजार रुपये से नीचे के माल को ई-वे बिल से छूट दे दी है। जबकि 200 किलोमीटर तक के माल को तीन दिन में पहुंचाने के निर्देश दिए थे। इसका लोगों ने फायदा उठाना शुरू कर दिया था। एक ई-वे बिल को दो से तीन बार प्रयोग किया जाने लगा। चे¨कग दल के पास मैन्युअली रिकॉर्ड होने के कारण वह पता नहीं कर पाते थे कि इस बिल को पहले भी प्रयोग किया जा चुका है। यह शिकायतें लगातार जीएसटी सेंट्रल तक पहुंच रही थीं। इसके चलते नई टेक्नोलॉजी का प्रयोग करते हुए रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइस लागू किए जाने का फैसला लिया गया है। पहले उत्तर प्रदेश में शुरू होगी योजना

केंद्र सरकार की ओर से तैयार की गई योजना के तहत पहले उत्तर प्रदेश में एक नवंबर से यह सिस्टम पूरी तरह से लागू कर दिया जाएगा। जिसको धीरे-धीरे पूरे भारत में लागू किया जाएगा। इस टेक्नोलॉजी के चलते मानव विहीन वर्क किया जाएगा। जैसे ही ट्रांसपोर्टर्स या व्यापारी ई-वे बिल जनरेट करेगा वैसे ही उस बिल की पूरी जानकारी टैग में मैप हो जाएगी। यह टैग लगी गाड़ी जैसे ही टावर से गुजरेगी, वैसे ही ट्रैकर रीड कर लेगा। अगर कोई गड़बड़ी की गई है तो ऑटोमेटिक ही उस रूट के अगले टावर के पास मौजूद अधिकारी को सूचित कर देगी। ताकि गाड़ी को रोका जा सके।

राज्यों में बनाए जाएंगे केंद्र

इस टेक्नोलॉजी के चलते गाड़ी को टोल टैक्स पर भी रुकने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे समय की तो बचत होगी, ही साथ में ईंधन भी बचेगा। इसके साथ ही अगर गाड़ी में जीवन रक्षक वस्तु लदी है तो वह वक्त पर पहुंच जाएगी। वहीं टेक्नोलॉजी के चलते शहर के बॉर्डर पर आरएफआइडी टावर लगाए जाएंगे। एक टैग की कीमत करीब सौ रुपये है। इस टैग के लिए शहर में केंद्र भी बनाए जाएंगे। ताकि वहां से आसानी से इस टैग को प्राप्त किया जा सके।

यह है ई-वे बिल

ई-वे बिल, दरअसल एक प्रकार का इलेक्ट्रानिक बिल यानी कंप्यूटर पर बना बिल होता है। जीएसटी सिस्टम में, किसी माल को एक जगह से दूसरी जगह भेजने पर, उसके लिए ऑनलाइन बिल भी तैयार करना होगा। ये बिली जीएसटी पोर्टल पर भी दर्ज हो जाएगा। इसी ऑनलाइन बिल को ई-वे बिल कहते हैं। दरअसल, जीएसटी सिस्टम लागू होने के पहले सेल्स टैक्स या राज्यों के वैट सिस्टम में भी इस तरह की व्यवस्था लागू रही है। पुरानी टैक्स व्यवस्थाओं में भी माल परिवहन के लिए कागज पर बिल बनता रहा है। पहले जो बिल कागज पर बनता था, अब वह कम्प्यूटर पर बनेगा। उसके बाद इसे जीएसटी के नेटवर्क पर अपलोड कर दिया जाएगा। जबकि पुरानी व्यवस्था में जो कागज पर बिल बनाया जाता रहा है, उसे हम रोड़ परमिट के नाम से जानते रहे हैं।

केंद्र सरकार की ओर से ई-वे बिल का एक ही बार प्रयोग किया जाए, इसके लिए रेडियो फ्रिकवेंसी टैग बनाया गया है। यह गाड़ियों पर लगाया जाएगा। इसको रेडियो फ्रिकवेंटसी आइडंटिफिकेशन डिवाइस के साथ ट्रैक किया जा सकेगा। यह अभी तक शुरू नहीं हुआ है, जिस पर काम किया जा रहा है।

र¨वदर गोयल, इंस्पेक्टर, कर व आबकारी विभाग।


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