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प्राइवेट व्यापारियों ने ही खरीदा नरमा, समर्थन मूल्य न मिलने से मायूसी

नरमा की फसल बेचने के लिए प्राइवेट व्यापारियों के पर ही निर्भर हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 05 Oct 2020 11:23 PM (IST)Updated: Tue, 06 Oct 2020 05:10 AM (IST)
प्राइवेट व्यापारियों ने ही खरीदा नरमा, समर्थन मूल्य न मिलने से मायूसी
प्राइवेट व्यापारियों ने ही खरीदा नरमा, समर्थन मूल्य न मिलने से मायूसी

सुभाष चंद्र, बठिडा : अक्टूबर के पांच दिन बीतने के बाद भी क्षेत्र के कपास उत्पादक किसान अभी अपनी नरमा की फसल बेचने के लिए प्राइवेट व्यापारियों के पर ही निर्भर हैं। काटन कारपोरेशन आफ इंडिया (सीसीआइ) की तरफ से हालांकि बीती एक अक्टूबर से नरमा की खरीद शुरू करने का ऐलान किया गया था, लेकिन अभी तक खरीद शुरू नहीं कर पाए। बेशक सोमवार को सीसीआई की टीम इंस्पेक्टर हरजीत सिंह के नेतृत्व में अनाज मंडी में उतरी, लेकिन खरीद एक क्विंटल नरमा की भी नहीं कर सकी। सीसीआइ ने नरमा में नमी की मात्रा अधिक होने के कारण खरीद नहीं की। हरजीत सिंह ने बताया कि नरमा की तमाम ढेरियों में मशीन के साथ नमी की मात्रा चेक की गई। इस दौरान अलग-अलग ढे़रियों में 16 फीसद से लेकर 22 फीसद तक नमी की मात्रा पाई गई। जबकि सीसीआइ के मुताबिक नमी की मात्रा आठ से 12 फीसद तक होनी चाहिए। इससे अधिक नमी की मात्रा वाला नरमा सीसीआइ नहीं खरीद सकती है। लेकिन पिछले दिनों के मुकाबले नमी की मात्रा में सुधार होने लगा है। उम्मीद है कुछ दिनों तक नमी में और सुधार हो जाएगा। जिसके बाद सीसीआइ नरमा की खरीद करने लगेगी।

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उधर, नरमा की आवक दिन ब दिन तेज होने लगी है। सोमवार को अनाज मंडी में बड़ी मात्रा में नरमा पहुंचा। नरमा की प्राइवेट व्यापारियों की ओर से खरीद की गई। हालांकि प्राइवेट व्यापारी जो भी रेट लगा रहे थे, किसान उसके अनुसार ही अपना नरमा बेचते हुए नजर आए। किसी ने भी नरमा बेचने से इंकार नहीं किया। बेशक उनमें काटन कारपोरेशन आफ इंडिया की तरफ से नरमा की खरीद न करने को लेकर रोष भी था। गांव कोटशमीर के किसान प्रिथी सिंह ने कहा कि वह अब तक अपना 120 क्विंटल से अधिक नरमा बेच चुका है। उसका नरमा 4700 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बिका है। अब और नरमा लेकर आया है। प्राइवेट व्यापारियों से जो भी रेट मिल रहा है नरमा बेचना किसानों की मजबूरी है। नरमा खिलने पर उसे अगर नहीं चुगेंगे तो उसे चोर चोरी करके ले जाएंगे। किसानों के घर पर भी नरमा रखने के लिए जगह नहीं होती है। इसके अलावा मजदूरों को नरमा चुगाई के पैसे भी देने होते हैं। किसानों को खुद को भी घर पर पैसे की जरूरत होती है। इस स्थिति में किसान के लिए नरमा चुगना और उसे मंडी लाकर तुरंत बेचना मजबूरी बन जाती है।


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