संतान की लंबा आयु के लिए अहोई अष्टमी का व्रत 28 को
बाजार में अहोई अष्टमी और दीपावली की रोनक पूरी तरह छाई हुई है।
संस, बठिडा: बाजार में अहोई अष्टमी और दीपावली की रोनक पूरी तरह छाई हुई है। खरीदारी को लेकर भीड़ उमड़ रही है। व्यापारी भी ग्राहकों को लुभाने के लिए नए-नए आफर ला रहे हैं। वीरवार को जिले भर में अहोई अष्टमी पर्व मनाया जाएगा। दीपावली को भी एक सप्ताह का समय ही शेष बचा है। ऐसे में बाजारों में हलचल बढ़ गई है। मिट्टी के दीपक की खरीदारी को लेकर भी इस बार उपभोक्ताओं में खासा उत्साह नजर आ रहा है। मोमबत्ती के आकर्षक डिजाइन व सजावटी सामाना को भी लोग खरीद रहे हैं। आने वाले दिनों में बाजार में ग्राहकों की भीड़ का ये सिलसिला और बढ़ेगा।
संतान की लंबी आयु के लिए रखे जाने वाला व्रत अहोई अष्टमी 28 अक्टूबर को है। करवाचौथ का त्योहार खत्म होते ही महिलाओं द्वारा अहोई अष्टमी की तैयारी करनी शुरू कर दी गई है। कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है। ये व्रत करवाचौथ के तीन दिन बाद रखना होता है। माता अहोई की पूजा-अर्चना से कई बिगड़े काम पूरे हो जाते हैं। इसके साथ भगवान शिव, माता पार्वती और उनके पुत्रों की भी पूजा की जाती है। मां अपनी संतान की लंबी आयु की कामना को लेकर व्रत रखती हैं। इस अष्टमी को लेकर बाजारों में कई प्रकार के छोटे मिट्टी के घड़े व पेंटिग वाले घड़े बिक रहे हैं। शाम के समय तारों को अर्घ्य देकर व्रत खोलेंगी महिलाएं
महिलाओं द्वारा इस अष्टमी की तैयारी के लिए कई प्रकार के विधी विधान किए जाते हैं। शिववाड़ी मंदिर के पुजारी के अनुसार माताएं सूर्योदय से पूर्व स्नान कर व्रत प्रारंभ करें। वहीं अहोई माता की पूजा से पहले दीवार या कागज पर गेरू से अहोई माता का चित्र बनाएं। इसके साथ उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं, जबकि शाम के समय पूजन से पहले अहोई माता के चित्र को सामने रखकर, उनके सामने जल से भरा एक कलश रखें। रोली-चावल से माता की पूजा करें। वहीं माता को मीठे पुए या आटे के हलवे का भी भोग लगाएं। कलश पर स्वास्तिक बनाने के साथ-साथ गेंहू के सात दाने लें, इसके बाद अहोई माता की कथा सुनें। इसके बाद तारों को अर्घ्य देकर बुजुर्गों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें। सूर्यास्त से एक घंटा पहले की जाएगी पूजा पुजारी रामकिशोर शास्त्री ने बताया कि अहोई की पूजा प्रदोष काल में की जाएगी, जिसका अर्थ सूर्यास्त के समय का एक पवित्र पर्व काल है, जो भगवान शिव की साधना के लिए अत्यंत अनुकुल होता है। यह पूजा सूर्यास्त के एक घंटे पहले की जाएगी।