शहर के मंदिरों में लगा मेला, बड़ी संख्या में पहुंचे श्रद्धालु
बरनाला मंगलवार को सुबह 5 बजे से शहर के शीतला माता मंदिर रामबाग श्मशान मंदिर जंडा वाला मंदिर व कस्बा शैहणा में बड़ी संख्या में एकत्रित श्रद्धालुओं द्वारा शीतला माता की पूजा करके वासड़िया पूजन कर अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए कामना की गई। बच्चों ने पूजन के बाद खिलौने व अन्य खेल का सामान किया तो वहीं लोगों द्वारा पूजन के बाद दानपुण्य किया गया
जेएनएन, बरनाला : मंगलवार को सुबह 5 बजे से शहर के शीतला माता मंदिर, रामबाग श्मशान मंदिर, जंडा वाला मंदिर व कस्बा शैहणा में बड़ी संख्या में एकत्रित श्रद्धालुओं द्वारा शीतला माता की पूजा करके वासड़िया पूजन कर अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए कामना की गई। बच्चों ने पूजन के बाद खिलौने व अन्य खेल का सामान किया, तो वहीं लोगों द्वारा पूजन के बाद दानपुण्य किया गया। हर वर्ष शीतला सप्तमी व अष्टमी के दिन शीतला माता का व्रत किया जाता है। यह व्रत केवल चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी-अष्टमी को होता है और यही तिथि मुख्य मानी गई है। इस व्रत पर एक दिन पूर्व बनाया हुआ भोजन किया जाता है व इस व्रत को बसौड़ा, लसौड़ा व बसियौरा भी कहते हैं। शीतला को चेचक नाम से भी जाना जाता है। शीतला माता भगवती दुर्गा का ही रूप है। शीतला अष्टमी का व्रत रखने से व्यक्ति के पित्त ज्वर, फोड़े, आंखों के रोग, चिकन पॉक्स के निशान व शीतला जनित सारे दोष ठीक हो जाते हैं। इस दिन सुबह स्नान करके शीतला देवी की पूजा की जाती है। इसके बाद एक दिन पहले तैयार किए गए बासी खाने को भोग लगाया जाता है। यह दिन महिलाओं के विश्राम का भी दिन है। क्योंकि इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है। इस व्रत को रखने से शीतला देवी खुश होती हैं।
शीतला माता की कथा एक गांव में एक महिला श्रद्धालु थी, जो शीतला अष्टमी की पूजा करती व ठंडा भोजन लेती थी। एक बार गांव में आग लग गई। उसका घर छोड़कर बाकी सब के घर जल गए। गांव के सब लोगों ने उसे इस चमत्कार का रहस्य पूछा, तो उसने कहा कि मैं बासोड़ा के दिन ठंडा भोजन लेती हूं व शीतला माता का पूजन करती हूं। आप लोग यह कार्य तो करते नहीं हैं। इससे मेरा घर नहीं जला व आप सब के घर जल गए। तब से बासोड़ा के सारे गांव में शीतला माता का पूजन आरंभ हो गया।