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विगत 5 वर्ष से कभी नहीं जलाई अपने खेतों में पराली

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By JagranEdited By: Published: Wed, 31 Oct 2018 07:04 PM (IST)Updated: Wed, 31 Oct 2018 07:04 PM (IST)
विगत 5 वर्ष से कभी नहीं जलाई अपने खेतों में पराली
विगत 5 वर्ष से कभी नहीं जलाई अपने खेतों में पराली

जागरण संवाददाता, बरनाला : धान के सीजन समय प्रदेश व प्रदेश के साथ लगते राज्यों में बड़े स्तर पर पराली जलाई जाती है। सरकार व पर्यावरण प्रेमियों द्वारा विगत काफी समय से पराली को नहीं जलाने का आहवान किया जा रहा है। इस तरह ही गांव गुरम के खेतों नजदीक खेती का कार्य करता गांव गोबिंदपुर का पर्यावरण प्रेमी, प्रगतिशील, नौजवान अमनदीप ¨सह अत्री विगत 5 वर्षों से पराली नहीं जला कर पर्यावरण को बचाने का आहवान दे रहा है। अमनदीप अत्री ने कहा कर पराली को खेत में बहाने के लिए प्रति एकड़ 500 से 600 रुपये खर्च आता है व पराली को जमीन में वाहने के साथ जमीन की पैदावर शक्ति बढ़ती है व अनाज की गुणवता भी बेहतर होती है। जो पराली हम अपने खेतों में डालते है, उस के साथ पोटाश, फासफोरस, नाईट्रोजन की मात्रा बहुत बढ़ जाती है, अगर सीधे शब्दों में कहें तो खेतों में जोती हुई पराली खाद खुराक का काम करती है। जिससे मित्र कीड़ों की संख्या में भी विस्तार होता है। दुश्मन कीड़ों के साथ लड़ने की फसल की साम‌र्थ्य भी दोगुना हो जाता है। उन्होंने किसान भाइयों को कहा कि पूसा-44 व पीली पूसा का प्रयोग ना करो, जिससे पानी की बचत हो सके व पराली को जातने के लिए समय मिल सकें। अत्री ने बताया कि जब वह पहली बार अपने खेतों में पराली जोतने का काम शुरू किया था, तो उसे भी गांव के लोगों ने ऐसा करने से रोका था, परन्तु उसके पिता सरदार परमजीत ¨सह अत्री ने हौसला देकर, पवन गुरू पानी पिता, के सिद्धांत पर चलने के लिए प्रेरित किया, जिससे पर्यावरण को शुद्ध साफ करने में अपना बनता योगदान डाल सकें। उन्होंने किसान भाईयों से अपील की कि वह पराली को नहीं जलाएं, इसमें जोते जिससे जमीन की पैदावार बढ़े व पर्यावरण को बचाया जा सकें।

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