Move to Jagran APP

जिले के 4 जवान हुए थे 1971 के युद्ध में शहीद

1971 में हुए भारत पाकिस्तान के युद्ध में बरनाला के चार जवानों ने शहादत दी थी।

By JagranEdited By: Published: Sun, 15 Dec 2019 11:14 PM (IST)Updated: Mon, 16 Dec 2019 06:12 AM (IST)
जिले के 4 जवान हुए थे 1971 के युद्ध में शहीद
जिले के 4 जवान हुए थे 1971 के युद्ध में शहीद

संवाद सहयोगी, बरनाला: 1971 में हुए भारत पाकिस्तान के युद्ध में देश भर के हजारों जवानों ने अपनी शहादत दी व पाकिस्तान को नाकाम साबित किया, उसी दिन को 16 दिसंबर के दिन विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। जिला बरनाला के चार जवानों ने इस युद्ध में अपनी शहादत दी, जिसमें अलकड़ा गांव के शहीद मुख्त्यार सिंह दयोल, महल कलां के शहीद आत्मा सिंह, गांव तलवंडी के शहीद बलवीर सिंह, गांव मूंम के शहीद बलदेव सिंह सेखों हैं। शहीद मुख्तयार सिंह: छाती पर खाई थी देश के लिए गोली

loksabha election banner

शहीद मुख्त्यार सिंह दयोल का जन्म जिला बरनाला के गांव अलकड़ा में 1950 में हुआ, जो 10वीं तक

की शिक्षा हासिल करने के बाद फौज में भर्ती हुए। शहीद मुख्तयार सिंह के परिवार में उसकी बहन जसवीर कौर, भाई जगतार सिंह ने बताया कि मुख्तयार सिंह दयोल बचपन से ही मेहनती, हिम्मत वाले व दलेर थे। 1968 में वह फौज में भर्ती हुए, जो पांच सिख बटालियन का सदस्य बना। जिसके बाद 1971 में पाकिस्तान भारत के हुए युद्ध में कश्मीर के छंब सेक्टर में छाती पर गोली लगने के बाद वह लापता हो गए और कुछ दिन बाद घने जंगलों के बीच बर्फ में दबा हुआ उनका पार्थिव शरीर मिला। शहीद के बचपन के दोस्त मास्टर मलकीत सिंह फौजी, दर्शन सिंह, भाई जगराज सिंह व गांव निवासियों के मदद से उसकी याद में लाइब्रेरी बनाई गई व हर वर्ष संत बाबा सरदूल सिंह स्पो‌र्ट्स एंड वेलफेयर क्लब द्वारा उनकी याद में टूर्नामेंट करवाया जाता है। शहीद बलवीर सिंह कलेर : आखिरी बार चेहरा भी नहीं देख सका था परिवार

जिले के गांव तलवंडी के शहीद बलवीर सिंह कलेर का जन्म पिता करतार सिंह के घर माता करतार कौर की कोख से 1944 में हुआ। शहीद बलवीर सिंह गांव के ही प्राइमरी स्कूल से शिक्षा प्राप्त करके मैट्रिक के बाद फौज में भर्ती हुआ। शहीद बलवीर सिंह के भतीजे महेंद्र सिंह, पौत्र बूटा सिंह व गांव निवासी गुरसेवक सिंह ने बताया कि बलवीर सिंह बचपन से ही मिलनसार, मेहनती व देश की सेवा के प्रति समर्पण था। बचपन से ही उसका फौज में रुझान था व देश की सेवा करना चाहता था। 1962 में हुई भर्ती में वह फौज में भर्ती हुआ, जिसके 3 वर्ष बाद बलवीर सिंह का विवाह मलकीत कौर पुत्री राम सिंह के साथ किया गया। उनके घर में दो बेटी शिदर पाल कौर व बलविदर कौर ने जन्म लिया। 1970 में वह छुट्टी पर भी आया व पूरा परिवार हंसी खुशी रहा। परंतु छुट्टी के वापिस जाने के बाद 1971 में हुए युद्ध में बलवीर सिंह जम्मू कश्मीर में 17 दिसंबर को तैनात कर दिया व 27 दिसंबर को शहीद हो गया। जिसके बाद उसके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार भी फौज द्वारा ही किया गया, जिसका अंतिम चेहरा भी उसके परिवार को देखने को नहीं मिला व परिवार आज भी उसकी याद में डूबा है। शहीद बलवीर सिंह की याद में यादगारी प्रतिभा बनवाने के लिए उसकी माता को जगह-जगह की ठोकरें खानी पड़ी, परंतु किसी ने शहीद के परिवार की मदद नहीं की। जिसके बाद उसकी मां द्वारा खुद ही अपने खर्च पर शहीद बलवीर सिंह की प्रतिभा बनाई गई। शहीद आत्मा सिंह: डेढ़ माह के बेटे का नहीं देख पाए चेहरा

महलकलां के शहीद आत्मा सिंह का जन्म 9 जनवरी 1947 को पिता मेहर सिंह के घर माता नसीब कौर की कोख से हुआ। शहीद आत्मा सिंह के चार भाई मलकीत सिंह, जीता सिंह, जीत सिंह ल अजैब सिंह व बहन बीवो कौर के बाद परिवार में सबसे छोटा था। उनकी साल की उम्र में 9 जनवरी 1963 में मैट्रिक करके फौज में सिख रेजीमेंट में भर्ती हुआ, जिसके 5 वर्ष बाद शहीद आत्मा सिंह का विवाह गांव पत्ती सेखवां की परमजीत कौर के साथ किया गया। 1971 के युद्ध के दौरान 16 दिसंबर को युद्ध में दुश्मनों का सामना करते हुए शहीद हो गया। शहीद आत्मा सिंह की शहीदी के समय उसका बेटा अवतार सिंह डेढ़ माह का था व उसे अपने बेटे का चेहरा तक देखने को नहीं मिला। शहीद आत्मा सिंह की याद में शहीद की प्रतिभा के लिए 8 अप्रैल 2011 को पंचायत द्वारा 10 विसवा की जगह पर बनवाई गई, जिसके लिए साबका सैनिक विग द्वारा 5 लाख व मुख्यमंत्री द्वारा 2 लाख दिया गया। अब शहीद का परिवार पत्ती सेखवां में रह रहा है। शहीद बलदेव सिंह सेखों: 17 वर्ष की आयु में ही हो गए थे भर्ती

शहीद बलदेव सिंह सेखों का जन्म 1952 में पिता पूरन सिंह के घर माता अजैब कौर की कोख से गांव मूंम में हुआ। 10वीं के बाद 17 वर्ष की आयु में ही शहीद बलदेव सिंह सेखों फौज में भर्ती हुए व 1971 के हुए युद्ध में शहीद हो गए। शहीद बलदेव सिंह सेखों घर की आर्थिक तंगी से बाहर निकलने और देश सेवा के जज्बे के कारण फौज में भर्ती हुआ था, जिनके पास ढाई एकड़ जमीन होने के कारण परिवारिक हालात ठीक नहीं थे। परंतु हालत सुधारने की जगह और बिगड़ गए। शहीद के परिवार को सरकार द्वारा कोई भी सहायता नहीं दी गई व आज भी शहीद का परिवार परेशानियों का सामना कर परिवार चला रहा है, लेकिन शहीद की शहादत का न तो सरकार व ना ही अन्य ने सम्मान किया।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.