World Cancer Day 2020: दिव्यांग बेटे की खातिर कैंसर को दी मात, जानें एक महिला के हौसले कहानी
एक महिला ने पति को खो दिया और फिर खुद कैंसर की चपेट में आ गई। इसके बाद उसने दिव्यांग बेटे की खातिर हौसले को थामा और कैंसर को मात दे दी।
अमृतसर, [नितिन धीमान]। मौत को मात देने वाली मंजू की कहानी बहुत ही मार्मिक व संघर्षमय है। एक सड़क हादसे ने सुहाग दिन गया तो सरकारी स्कूल की अध्यापिका मंजू गुप्ता की जिंदगी तन्हा हो गई। मंजू ने इकलौते दिव्यांग बेटे के लिए जीने की कोशिश की, लेकिन आठ साल बाद खुद कैंसर की चपेट में आ गईं। हर उम्मीद टूटती नजर आई। सोचा अब सब कुछ खत्म हो गया, लेकिन बेटे के मासूम चेहरे को देख एक बार फिर जीने की ललक जगी। बेटे की मासूमियत ने आत्मबल दिया। इसके बाद कैंसर जैसी गंभीर बीमारी को मात देकर उन्होंने नई जिंदगी पाई।
वर्ष 1995 में सड़क हादसे में पति की मौत बाद टूट गई थीं अध्यापिका मंजू
दरअसल, वेरका स्थित सरकारी गल्र्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल की हिंदी की अध्यापिका मंजू गुप्ता के पति राजीव गुप्ता की वर्ष 1995 में एक सड़क हादसे में मौत हो गई। उस वक्त उनका बेटा दानिश सवा सवा साल का था। पति की मौत के बाद मंजू गुप्ता अकेली पड़ गईं। इकलौता बेटा दानिश भी जुबर्ट सिंड्रोम यानी 100 फीसद दिव्यांगता का शिकार था। ससुराल छूटने के बाद मंजू अपने मायके नहीं गई।
वर्ष 2003 में कैंसर का हो गईं शिकार तो हर उम्मीद टूटती नजर आई
उन्होंने मजीठा रोड पर मकान लिया और बेटे के साथ रहने लगीं। किसी तरह खुद को स्थापित कर वह बेटे की परवरिश कर रही थीं कि वर्ष 2003 में अचानक बीमार हो गईं। मेडिकल जांच करवाने पर पता चला कि उन्हें कैंसर है। मंजू बताती हैं कि उन्हें लगा कि अब सब कुछ खत्म हो गया। बेटे के मासूम चेहरे ने उन्हें जीने की राह दिखाई दी। बकौल मंजू, मैं सोचती थी कि अगर मुझे कुछ हो गया तो दानिश का क्या होगा। मैंने अपने भीतर आत्मविश्वास पैदा किया। डॉक्टर द्वारा बताई गई सभी दवाएं नियमित रूप से लीं। धीरे-धीरे मैंने कैंसर से जंग जीत ली।
बेटे के साथ मंजू गुप्ता।
बेटे की मासूमियत से मिला आत्मबल और दिव्यांग बेटे को बनाया काबिल
आमतौर पर जुबर्ट सिंड्रोम से ग्रसित बच्चा बिस्तर से उठ नहीं पाता। वह ज्यादा से ज्यादा 18 साल की आयु तक ही जीवित रह पाता है। मंजू गुप्ता नेे दानिश के भीतर न केवल जीने का जज्बा पैदा किया, अपितु सामान्य बच्चों की कतार में भी खड़ा कर दिया। दानिश बेशक आम बच्चों से भिन्न है, लेकिन वह हर वो काम कर सकता है जो सामान्य बच्चे भी नहीं कर पाते।
मंजू गुप्ता बताती हैं कि सामान्यत: ऐसे बच्चों को स्पेशल स्कूल में भेजा जाता है, लेकिन उन्होंने उसे सरकारी स्कूल में ही दाखिला दिलवाया। दानिश ने दसवीं और बारहवीं की परीक्षा में क्रमश: 66 से 70 प्रतिशत अंक हासिल किए। इसके बाद सामान्य बच्चों की तरह ही आइटीआइ में प्रवेश लिया। यहां 89 अंक अर्जित किए। आज दानिश 23 वर्ष का हो चुका है। राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित दौड़ प्रतियोगिताओं में दानिश ने दो स्वर्ण एवं एक रजत पदक प्राप्त किया है। 15 अगस्त 2017 को पंजाब सरकार ने दानिश को विशेष पुरस्कार से नवाजा।
मंजू बताती हैं, दानिश ने सरकारी स्कूल में वालंटियर के रूप में बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा भी उठाया है। ईटीटी करने के बाद अब दानिश ने साधारण बच्चों की कतार में बैठ कर अध्यापक योग्यता की परीक्षा दी है। शाम को वह अपने घर में स्लम क्षेत्रों के बच्चों को निश्शुल्क पढ़ाता है। मंजू कहती हैं कि वह दानिश को उस मुकाम तक लेकर जाएंगी, जहां वह औरों के लिए प्रेरणा बने।
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