इंटरनेट के युग में भी लोगों को रहता है डाकिये की घंटी का इंतजार
। कुछ दशक पहले की बात है तब संचार का माध्यम केवल चिट्ठी होती थी।
जागरण संवाददाता, अमृतसर : कुछ दशक पहले की बात है, तब संचार का माध्यम केवल चिट्ठी होती थी। डाकिया की साइकिल की घंटी बजने का सबको इंतजार रहता था। समय बदला, इंटरनेट का दौर आया है। डाक घर ने डिजीटल युग में कदम रखा। देखते-देखते सब हाईटेक हो गया। सब कुछ बदल गया, लेकिन डाकिये की साइकिल नहीं बदली है। वे आज भी पुराने समय की तरह साइकिल से घर-घर चिट्ठी पहुंचा रहे हैं।
यही नहीं डाक विभाग में कुछ लोग पैदल भी अपनी डाक बांट रहे हैं। गांधी बाजार स्थित डाक घर में पिछले दो सालों से डाक वितरक करके अपनी ड्यूटी निभाने वाले महिला डाकिया अनु बाला ने बताया कि शहर के अंदरून हिस्से में लगभग पांच किलोमीटर का एरिया बनता है, जहां 200 से लेकर 300 के करीब रजिस्ट्री, पार्सल, पत्र व स्पीड पोस्ट का वितरण करती हैं। उन्होंने बताया कि पिता की मृत्यु होने के बाद डाक विभाग में उनकी बतौर डाकिया की भर्ती हुई थी। वर्तमान समय में वह ड्यूटी के साथ-साथ अपने घर की जिम्मेदारी बाखूबी निभा रही हैं। गांधी बाजार स्थित डाक घर के डिप्टी पोस्ट मास्टर (डीपीएम) दीपक कुमार का कहना है कि एक परिवार हर साल उनके पास राष्ट्रीय डाक कर्मचारी दिवस की बधाई व शुभकामनाएं देने के लिए आता है, जिससे डाक विभाग के कर्मचारियों का मनोबल बढ़ता है। विभाग को करनी चाहिए डाकियों की नई भर्ती
डाकिया रछपाल सिह का कहना है कि हरेक दिन एक डाकिया को लगभग 30 से 40 किलोमीटर साइकिल चलानी पड़ती है। इतनी साइकिल चलाने पर उन्हें भत्ते के रूप में केवल 180 रुपये ही महीना मिलते हैं। यह केवल एक डाकिया की कहानी नहीं है, बल्कि जिले के सभी डाकियों और डाक सेवकों की यह कहानी है। विभाग हरेक साल एक जुलाई को राष्ट्रीय डाक कर्मचारी दिवस मनाता है, इसके बाद भी कर्मचारियों के हालात नहीं बदल पा रहा है। सब चाहते हैं कि सरकार डाकियों की तरफ ध्यान दे। प्रतिस्पर्धा के दौर में जल्द सर्विस देने के लिए साइकिल की जगह पेट्रोल भत्ता दिया जाना चाहिए, जिसकी मदद से तेज सर्विस दी जा सके और साथ ही साथ डाकियों की नई भर्ती की जानी चाहिए। कुछ लोग अपने खर्च से चला रहे मोटरसाइकिल
सरकार भले ही डाकिया को मोटरसाइकिल की सुविधा नहीं दे पाई, लेकिन कुछ डाकियों ने बाइक से डाक बांटने का काम शुरू कर दिया है। वह अपने खर्च पर बाइक से काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि कोई डाक 30 किलोमीटर दूर की होती है, यदि साइकिल से काम किया तो एक दिन में एक ही डाक बांट पाएंगे। उन्हें पूरे दिन में 200 से ज्यादा डाक बांटनी होती है, जोकि साइकिल से मुश्किल काम है। सरकार को डाकिया पर ध्यान देना चाहिए। साइकिल भत्ते के रूप में कम से कम 2500 रुपए मिलने चाहिए, जिससे डाकिया मोटरसाइकिल का प्रयोग कर सकें, जोकि विभाग के लिए लाभदायक साबित होगा।