यह गौरवपूर्ण इतिहास नसों में भर देगा जोश व जज्बा, जानें बहादुरी की यह कहानी
वीरों की धरती पंजाब में गौरव की अनेकों गाथाएं हैं। इसमें से एक कूका आंदोलन ने अंग्रेजी शासन की नींव हिला दी थी। शौर्य-बलिदान की यह कहानी आज भी नसों में जोश व जज्बा भर देती है।
अमृतसर, [दुर्गेश मिश्र]। पंजाब एवं देश के इस गौरव पूर्ण और वीरता के इस अध्याय से अाज की पीढ़ी शायद ही जानती होगी। यह गाथा आज भी जोश एवं जज्बा भर देती है। यह बात बहुत पुरानी है। द्वितीय एंग्लो-सिख युद्ध के बाद सन 1849 में पंजाब पूरी तरह से ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन हो गया था। या यूं कहें कि पूरा हिंदुस्तान ब्रिटिश हुकूमत के अधीन था। अंग्रेजों को शायद यह पता नहीं था कि उनकी इस जीत के 22 साल बाद ही 1871 में इसी पंजाब में विद्रोह शुरू हो जाएगा। हम बात कर रहे हैं कूका आंदोलन की। इस आंदोलन से अंग्रेज शासक कांप गए थे।
कूका आंदोलन से कांप गए थे अंग्रेज शासक, 22 जिलों में चलती थी समानांतर सरकार
शुरुआती दिनों में यह विद्रोह गो हत्या को लेकर था, लेकिन बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ हो गया। इस आंदोलन की शुरूआत महान समाज सुधारक व नामधारी संत सतगुरु राम सिंह जी ने अपने अनुयायियों के साथ 15 जून 1871 को अमृतसर में बूचडख़ाने से गायों को मुक्त करवा कर की थी।
सतगुरु राम सिंह जी ने 1871 में जगाई थी आजादी की अलख, सबसे पहले दिया था भारत छोड़ो का नारा
नामधारी संप्रदाय से जुड़े लोगों, विचारकों व इस संप्रदाय पर शोध कर चुके इतिहासकारों के अनुसार, इस आंदोलन की नींव सतगुरु राम सिंह जी ने बहुत पहले ही रख दी थी। उस समय उन्होंने तत्कालीन पंजाब को 22 जिलों में बांटकर सूबे (धार्मिक प्रचारक) नियुक्त किए थे। बेशक ये सूबे धर्म प्रचार के लिए नियुक्त किए गए थे, लेकिन इसके साथ-साथ वे अंग्रेजों के खिलाफ लोगों का संगठित भी कर रहे थे। कूका आंदोलन पर शोध करने वाले विद्वानों का कहना है तत्कालीन ब्रिटिश सरकार हूकुमत के लिए कूकाओं को सबसे बड़ा खतरा मानती थी।
लुधियाना के डीआइजी व अंबाला के कमिश्नर ने राम सिंह को बताया था खतरनाक
कूका आंदोलन पर शोध कर चुके डीएवी कॉलेज होशियारपुर के प्रो. डॉक्टर रजनीश खन्ना बताते हैं कि कूकाओं का खौफ अंग्रेजों में काफी था। यही कारण था कि 5 अगस्त 1963 को सियालकोट के डिप्टी कमिश्नर ने ब्रिटिश उच्चाधिकारियों को भेजी अपनी रिपोर्ट में कूका आंदोलन का जिक्र करते हुए ब्रिटिश सरकार के लिए खतरा बताया था। यही नहीं 4 नवंबर 1857 को लुधियाना के डीआइजी कैकेंडरयू व अंबाला के कमिश्नर जेडब्ल्यू मैकनाब ने भी सतगुरु राम सिंह व उनके सहयोगियों को खतरनाक बताया था।
कूका आंदोलन के वीरों को इसी जगह पर अंग्रेजों ने फांसी दी थी।
गांधी जी से पहले कूकाओं ने दिया था भारत छोड़ो का नारा
गुरबचन सिंह नामधारी कूका आंदोलन पर लिखी अपनी किताब में उल्लेख करते हैं कि 1867 में 500 नामधारी क्रांतिकारियों ने फिरोजपुर में यह नारा -'ऐत्थो चुक लै फिरंगिंया छावनी, के खालसे ने राज करना' लगाते हुए अंग्रेजों के खिलाफ नारे लगाते हुए प्रदर्शन किया था। गुरबचन सिंह के अनुसार, इसी नारे का प्रयोग 75 साल बाद अंग्रेजों भारत छोड़ो के लिए किया गया था।
22 जिलों में चलाई थी समानांतर सरकार
सतगुरु राम सिंह जी पर शोध कर चुके गुरुनानक देव विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व प्रोफसर डॉ. जोगिंदर सिंह ने अपनी दो पुस्तकों 'ए सॉल्ट हिस्ट्री ऑफ द नामधारी सिख्स' और 'बायोग्राफी ऑफ द गुरु राम सिंह' में कूका आंदोलन का विस्तार से उल्लेख किया है। वह लिखते हैं कि कूका आंदोलन 1857 की क्रांति के बाद पंजाब में बड़ी क्रांति थी, क्योंकि 22 जिलों में सतगुरु राम सिंह जी ने अंग्रेजों के समानातर सरकार चलाई थी।
अंग्रेजों को 'मलेक्ष' बोलते थे सतगुरु
कूका आंदोलन के बारे में बठिंडा के केंद्रीय यूनिवर्सिटी में स्थापित सतगुरु राम सिंह चेयर के अध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह का कहना है कि राम सिंह अंग्रेजों को 'मलेक्ष' मानते थे। राम सिंह जी पर दो पुस्तकें 'नामधारी गुरु राम सिंह एंड कूका मूवमेंट' और 'अंडरस्टैंडिंग नाम धारी मूवमेंट 1857-1959' लिख चुके हैं।
डॉ. कुलदीप सिंह कहते हैं कि समानंतर सरकार चलाने का मतलब यह कि सरकारी नौकरी, कपड़े, रेल व डाक सेवा सहित उन तमाम वस्तुओ का वहिष्कार कर दिया, जो किसी न किसी रूप में अंग्रेजों से जुड़ा हुआ था। डॉ. सिंह कहते हैं कि कूका सूरमाओं की संख्या सात लाख से अधिक थी, लेकिन अधूरी तैयारी में ही विद्रोह भड़क उठा और इसी कारण वह दबा दिया गया। इसके बाद इस आंदोलन के कई वीरों ने अपनी शहादत दे दी थी। क्रूर अंग्रेज शासकों ने एक कूका वीरों को फांसी पर लटका दिया था।
सतगुरु राम सिंह ने अपनाई खादी
प्रसिद्ध लेखक खुशवंत सिंह अपनी पुस्तक 'सिखों का इतिहास' में लिखते हैं, ' बाबा राम सिंह पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने स्वदेश में बनी वस्तुओं को अपनाना शुरू किया था। मसलन सरकारी स्कूलों, सरकारी अदालतों, विदेशी कपड़ों, रेल व डाक सेवाओं का वहिष्कार कर हाथ कते व हाथ बुने खद्दर के कपड़ों का 1860 में ही प्रयोग शुरू किया था, जिसे 60 वर्ष बाद महात्मा गांधी ने अपना लिया।'
संयोग जो इतिहास बना
1849 में सिख-एंग्लो द्वितीय युद्ध के बाद पंजाब पूरी तरह से अंग्रेजों के अधीन हो गया था। इसके ठीक 22 वर्ष बाद 1871 में नामधारियों ने विद्रोह कर दिया। इसे इतिहास में कूका विद्रोह के नाम से जाना जाता है। इससे पहले सतगुरु राम सिंह जी ने तत्कालीन पंजाब को 22 जिलों में बांट कर अंग्रेजों के समानांतर सरकार चलाई थी। अब संयोग है कि 90 साल के कड़े संघर्षों के बाद स्वतंत्र भारत में भी पंजाब में 22 जिले हैं।