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लोगों को मौलिक अधिकारों के प्रति कर रहे जागरूक पं. नरेश शर्मा

अपने विचारों को प्रकट करना ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 21 Jan 2020 12:56 AM (IST)Updated: Tue, 21 Jan 2020 06:10 AM (IST)
लोगों को मौलिक अधिकारों के प्रति कर रहे जागरूक पं. नरेश शर्मा
लोगों को मौलिक अधिकारों के प्रति कर रहे जागरूक पं. नरेश शर्मा

रविदर शर्मा, अमृतसर : अपने विचारों को प्रकट करना ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। यही अभिव्यक्ति जब जनहित का कार्य करे तो इससे बड़ा कोई काम नहीं हो सकता। इसकी मिसाल पेश कर रहे हैं 54 वर्षीय पं. नरेश शर्मा। नीलकंठ संगठन बनाकर वह पिछले तीस साल से लोगों को अभिव्यक्ति के अधिकार पर जागरूक कर रहे हैं।

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लोगों को जागरूक करने के लिए गली-मोहल्ले में नुक्कड़ बैठकें करते हैं। शहर की स्लम बस्तियों में लोगों को उनके मौलिक अधिकार बताते हैं। साथ ही शहर की कॉलोनियों पर यूनिफॉर्म टैक्स की मुहिम चलाकर भी लोगों को जागरूक किया। हालांकि पंजाब सरकार ने इस मामले में कोई खास स्थाई नीति की घोषणा नहीं की। पुतलीघर निवासी पं. नरेश शर्मा कहते हैं-सरकार को शीर्ष अदालत से संविधान की रक्षा करना सीखना चाहिए। जहां हमारी अभिव्यक्ति किसी को आहत करती है, वहीं हमारी यह आजादी खत्म हो जाती है। संविधान ने हमें अभिव्यक्ति की आजादी दी तो हमारा सामाजिक और राष्ट्रीय धर्म हमें देश के खिलाफ बोलने की आजादी नहीं देता। इंद्रपुरी में डिस्पोजल लगवाकर लोगों को दी गंदगी से आजादी

पं. नरेश शर्मा ने कहा-जब उन्होंने प्रभाकर की पढ़ाई पूरी की तब शहर का विकास कार्य चरम पर था। शहर में बनने वाली नई कॉलोनियों की शुरुआत हो चुकी थी। गरीब शहर से बाहर छोटे-छोटे प्लॉट लेकर घर बना कर रहे लगे, लेकिन वहां न तो पीने के लिए पानी, न सड़कें और न ही सीवरेज की व्यवस्था थी। साल 1998 में वह कोट खालसा स्थित इंद्रपुरी इलाके में पहुंचे। लोगों को अभिव्यक्ति की आजादी के बारे बताया। उन्होंने खुद वहां डिस्पोजल लगाकर सीवरेज का गंदा पानी निकाला। इसके लिए खुद ही मुख्य सड़क के पास नाला खुदवाया। पाइपें तक अपने कंधों पर उठाई। विकास की नीतियों में लोगों को शामिल करे सरकार

पं. नरेश शर्मा कहते हैं-शहर के विकास की जो कल्पना की गई थी वह नहीं हो रही है। इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि सरकार विकास की नीतियों में लोगों को शामिल नहीं करती। यहां के विधायक और सांसद भी ऐसी कॉलोनियों के विकास में कोई भूमिका अदा नहीं कर सकते। ऐसे में जब जनता की बात रखने वाला कोई नहीं होगा तो इस शहर की बुनियादी जरूरत को कैसे समझा जा सकता है। ऐसे ही मूलभूत अधिकारों की जानकारी देकर वह उन्हें पीड़ित होने से रोक रहे हैं। उनके अधिकार दिलाने के लिए सरकार के खिलाफ आंदोलन चलाने से भी नहीं हिचक रहे हैं।


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