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उत्तराखंड में फंसे पिता से बोला बेटा, हैलो पापा! आप ठीक हो ना, जल्दी से घर आओ, बहुत चिंता हो रही

हैलो पापा! आप कहां हो? आप ठीक हो ना वहां पहाड़ टूट रहे हैं। जल्दी से घर आओ. हमें बहुत चिंता हो रही है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Oct 2021 06:30 AM (IST)Updated: Fri, 22 Oct 2021 06:30 AM (IST)
उत्तराखंड में फंसे पिता से बोला बेटा, हैलो पापा! आप ठीक हो ना, जल्दी से घर आओ, बहुत चिंता हो रही
उत्तराखंड में फंसे पिता से बोला बेटा, हैलो पापा! आप ठीक हो ना, जल्दी से घर आओ, बहुत चिंता हो रही

नितिन धीमान, अमृतसर: हैलो पापा! आप कहां हो? आप ठीक हो ना, वहां पहाड़ टूट रहे हैं। जल्दी से घर आओ.' हमें बहुत चिंता हो रही है। अपने पिता दलबीर पुंडीर से मोबाइल पर बात करते वक्त उनके बेटे समर्थ पुंडीर के चेहरे पर चिता का भाव था। दरअसल, उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा में पहाड़ों के दरकने से कई जिदगियां खत्म हो गई हैं। शहर से उत्तराखंड गए 18 लोग फंसे हुए हैं। इनमें श्री राम एवेन्यू में रहने वाले राष्ट्रीय उत्तराखंड सभा के उपाध्यक्ष दलबीर पुंडीर सहित मंच के 18 लोग शामिल हैं। 14 अक्टूबर को दलबीर पुंडीर के साथ संजीव नेगी, सुरिदर रावत, मकान सिंह कोहली, गोकल देव धस्माना, पितांबर पटवाल, अमरदीप राणा, संत सिंह चौधरी, महीपाल रावत, चंदन सिंह, राजीव कैंतुरा, मातबर सिंह, चंदर सिंह, सरिता भंडारी, चेतना कंडारी, आशा रावत, जागृति काला रवाना हुए थे। मंच द्वारा प्रतिवर्ष अपनी धरती उत्तराखंड में निश्शुल्क चिकित्सा शिविर लगाया जाता है।

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16 और 17 अक्टूबर को उत्तराखंड के बागेश्वर में मंच ने चिकित्सा शिविर लगाया। 18 अक्टूबर को सभी वापसी के लिए बस में सवार हुए। अभी कैंची धाम भवानी क्षेत्र में पहुंचे थे कि अचानक मूसलाधार बारिश शुरू हुई और पहाड़ दरकने लगे। भलाई क्षेत्र से निकलने से पहले ही बस के आगे पहाड़ का मलबा आ गया। बस चालक ने पीछे मुड़ने का प्रयास किया तो वहां भी पहाड़ की शिलाएं आ गिरीं। दलबीर के अनुसार सौ मीटर आगे स्थित एक दुकान पर मलबा गिरा। उनकी आंखों के सामने दो लोगों की मौत हो गई। बस के पीछे भी मलबा गिर चुका था। हम हिम्मत करके बस से बाहर निकले। भारी बरसात के बीच पहाड़ों से पानी आ रहा था। आसपास कहीं सुरक्षित जगह नहीं थी, जहां हम पनाह ले सकते। 200 मीटर दूरी पर पैदल पहुंचे। वहां पहाड़ नहीं थे, पर बारिश ऐसी थी कि एक-दूसरे का चेहरा तक नहीं देख पा रहे थे। दूर-दूर तक जलथल हो चुका था। हमारे मोबाइल में नेटवर्क गायब था। सारी रात हमने डर-डर का काटी। बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी और स्थानीय प्रशासन से हमारा संपर्क नहीं हो पाया। मंगलवार की शाम तक भी हम तक मदद नहीं पहुंची। भूख से हमारा हाल बेहाल हो चुका था। अमृतसर में रहने वाले पारिवारिक सदस्य चितित होंगे, यह सोचकर मैं मदद मांगने के लिए आगे बढ़ा। तेज बारिश में छह किलोमीटर चलने के बाद एक गांव दिखाई दिया। यहां एक घर में मदद मांगी। उनके मोबाइल से अपने घर फोन किया। पत्नी हेमा पुंडीर और बेटा समर्थ घबराए हुए थे। मैंने उन्हें कुशल होने की बात कहकर जल्दी लौटने का भरोसा दिया। सेना की गाड़ी रात को पहुंची और फिर अमृतसर के लिए चले

बकौल दलबीर पुंडीर, इसी बीच रात को सेना की गाड़ी हम तक पहुंची। उन्होंने हमें राहत सामग्री दी। इसके बाद हम बस में बैठ कर वहां से निकले। रास्ते में जगह-जगह लोग फंसे हुए थे। मंच के सदस्यों ने दुकानों से जरूरी सामान खरीदकर इन तक पहुंचाया। दो दिन तक हम वहीं रुके और राहत एवं बचाव कार्य में जुटे रहे। वीरवार को वह अमृतसर के लिए रवाना हुए हैं। शुक्रवार दोपहर तक यहां पहुंच जाएंगे। वहीं मंच के सभी सदस्यों ने लोगों से अपील की कि उत्तराखंड में फिलहाल न आएं।


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