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बजट में अमृतसर को नहीं मिला नया हेल्थ प्रोजेक्ट

सरकारी अस्पतालों में डाक्टरों का भारी अभाव है वहीं चिकित्सा उपकरण व सहयोगी स्टाफ की गिनती भी कम है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 28 Jun 2022 01:30 AM (IST)Updated: Tue, 28 Jun 2022 01:30 AM (IST)
बजट में अमृतसर को नहीं मिला नया हेल्थ प्रोजेक्ट
बजट में अमृतसर को नहीं मिला नया हेल्थ प्रोजेक्ट

जासं, अमृतसर: जिले के सरकारी अस्पतालों में डाक्टरों का भारी अभाव है, वहीं चिकित्सा उपकरण व सहयोगी स्टाफ की गिनती भी कम है। पंजाब सरकार के पहले बजट में अमृतसर को स्वास्थ्य सेवाओं के रूप में कोई सौगात नहीं मिली। हां, सरकार ने राज्य में मोहल्ला क्लीनिक खोलने की घोषणा की, लेकिन लोगों की मांग थी कि मोहल्ला क्लीनिक से पहले सिविल अस्पताल, गुरु नानक देव अस्पताल सहित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व कम्युनिटी स्वास्थ्य केंद्रों में मरीजों को सुविधाएं दी जाएं। दिल्ली की तर्ज पर अमृतसर में मोहल्ला क्लीनिक तैयार किए जाएंगे। अमृतसर में 43 स्थानों का चयन किया गया है। आठ स्थानों पर मोहल्ला क्लीनिक बनाए जा रहे हैं। हालांकि जिले में पूर्व में ही 144 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर कार्यान्वित हैं। ज्यादातर हेल्थ एंड वेलनेस सेंटरों को ही मोहल्ला क्लीनिकों का रूप दिया जाएगा।

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पंजाब सरकार सरकारी अस्पतालों की दशा व दिशा में सुधार नहीं कर रही। शहर में 2012 में घोषित किए गए सार्क अस्पताल का बजट में जिक्र तक नहीं हुआ। खंडहर में तब्दील हो रहे जिला टीबी अस्पताल के नवीनीकरण, सरकारी अस्पतालों में डाक्टरों की कमी, चिकित्सा उपकरणों का अभाव, आयुष्मान भारत सरबत सेहत योजना का बंद होना, गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी के बाद मिलने वाली 1000 रुपये की राशि आदि मुद्दे बजट से गायब रहे। स्वास्थ्य विभाग का मानना है कि मोहल्ला क्लीनिकों के कार्यान्वयन के साथ ही सिविल अस्पताल व गुरुनानक देव अस्पताल में मरीजो की संख्या में कमी आएगी। खांसी, जुकाम अथवा बुखार से पीड़ित मरीज इन्हीं सेंटरों में टेस्ट करवा सकेंगे और दवा ले सकेंगे। डायबिटीज, कैंसर, दांत, नाक, कान व गले के अलावा नान कम्युनिकेबल डिजीज जैसे मलेरिया, डेंगू, बुखार व अन्य सामान्य बीमारियों से पीड़ित मरीजों की जांच कर दवाएं देंगे। गंभीर मरीजों को जिला अस्पतालों में रेफर किया जाएगा। सबसे बड़ी समस्या सरकारी अस्पतालों के डाक्टरों व निजी दवा कंपनियों की सांठ-गांठ है। अस्पतालों में दवाएं न होने की वजह से सरकारी डाक्टर निजी कंपनियों की महंगी दवाएं लिखते हैं। इससे डाक्टरों को कंपनी से मोटी कमीशन व उपहार मिलते हैं, पर मरीज के साथ यह बहुत बड़ा अत्याचार है। सिविल अस्पताल में स्थित देश का पहला जन औषधि केंद्र पिछले तकरीबन एक वर्ष से बंद है। इसे खुलवाने या मरीजों को जेनरिक दवाएं उपलब्ध करवाने पर भी चर्चा नहीं की गई। इस बात से शहरवासियों में खासा रोष है।


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