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शेर-ए-पंजाब की बरसी पर सिख श्रद्धालुओं का जत्था नहीं जाएगा पाकिस्तान

सुरक्षा न मिलने के कारण शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की बरसी कार्यक्रम के आयोजन में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अपना जत्था पाक नहीं भेजेगी।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Fri, 23 Jun 2017 08:18 PM (IST)Updated: Fri, 23 Jun 2017 08:19 PM (IST)
शेर-ए-पंजाब की बरसी पर सिख श्रद्धालुओं का जत्था नहीं जाएगा पाकिस्तान
शेर-ए-पंजाब की बरसी पर सिख श्रद्धालुओं का जत्था नहीं जाएगा पाकिस्तान

जेएनएन, अमृतसर। पाकिस्तान में इस बार शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की बरसी कार्यक्रम के आयोजन में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) अपना जत्था नहीं भेज रही है। कहा जा रहा है कि भारत सरकार ने पाकिस्तान भेजे जाने वाले जत्थे के सदस्यों को आवश्यक सुरक्षा उपलब्ध करवाने के लिए असमर्थता जाहिर की है।

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एसजीपीसी के अध्यक्ष प्रो किरपाल सिंह बडूंगर ने कहा कि  इस मामले को लेकर एसजीपीसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को पत्र भी भेजे हैं, परंतु भारत सरकार की ओर से जत्थे के सदस्यों की पाकिस्तान में सुरक्षा की जिम्मेवारी न उठाए जाने के कारण इस बार एसजीपीसी महाराजा रणजीत सिंह की बरसी पर जत्था पाकिस्तान भेजने का फैसला वापस ले लिया है। भारत और पाकिस्तान के मध्य चल रहे तनाव भरे हालातों के कारण यह स्थिति इस बार पैदा हुई है।

पाकिस्तान ओकॉफ बोर्ड की ओर से शेर-ए-पंजाब की बरसी पर श्री अखंड पाठ साहिब के भोग का कार्यक्रम 29 जून को रखा है। 28 जून को भारत से श्रद्धालुओं का जत्था पाकिस्तान पहुंचना था। बरसी संबंधी धार्मिक कार्यक्रम गुरुद्वारा डेरा साहिब लाहौर में आयोजित किया जाना हैं। भारत से करीब अलग-अलग संस्थाओं की ओर से 3 हजार के करीब सिख श्रद्धालुओं को अलग-अलग जत्थों के माध्यम से पाकिस्तान भेजा जाना था। जत्थों के सदस्यों का 7 जुलाई को भारत वापस आने का कार्यक्रम था।

उधर, भाई मरदाना यादगारी कीर्तन दरबार सोसायटी के नेता हरपाल सिंह भुल्लर का कहना है कि पाकिस्तान जाने वाले जत्थों के सदस्यों की सुरक्षा की जिम्मेदारी पाकिस्तान सरकार की है। इसके लिए भारत को पाकिस्तान सरकार के साथ बातचीत करनी चाहिए। ननकाना साहिब सिख यात्री जत्था के नेता स्वर्ण सिंह गिल का कहना है कि एसजीपीसी और भारत सरकार दोनों को पाकिस्तान सरकार के साथ बात करके जत्थे के श्रद्धालुओं की सुरक्षा की मांग उठानी चाहिए थी।

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