खुद उठाया बीड़ा और बन गए सिचंदर के 'सिकंदर'... नशे नहीं, इनको लग गई ऐसी लत
गांव सिचंदर कभी ग्रांट के लिए सरकार की कृपा पर निर्भर था लेकिन आज यहां युवा नशे की लत से दूर अपने बनाए पचास लाख के जिम में कसरत करते हैं।
अमृतसर [हरीश शर्मा]। स्वच्छ भारत-स्वस्थ भारत की तस्वीर देखनी हो तो अमृतसर के इस गांव में आइए। युवा सोच थी, कनाडा में बसे सपूत का अपनी मिट्टी से लगाव और ग्रामीणों में अपने बूते अपना जीवन संवारने की ललक। अजनाला रोड पर स्थित गांव सिचंदर कभी ग्रांट के लिए सरकार की कृपा पर निर्भर था, लेकिन आज यहां युवा नशे की लत से दूर अपने बनाए पचास लाख के जिम में कसरत करते हैं, तीस लाख की लागत से बने स्टेडियम में खेलते हैं। हर घर में शौचालय है और पानी के लिए खुद एक बडे टैंक का निर्माण किया गया है। पक्की गलियां, स्ट्रीट लाइट... नए ग्रामीण भारत की नींव ऐसे ही गांवों में रखी जा रही है।
शामलात जमीन बेच खोली गांव के विकास की राह
गांव के कारज सिंह कनाडा में रहते थे। उनमें अपने गांव का विकास करने की ललक थी। वह वर्ष 2007 में गांव आए थे। गांव के लोगों ने उन्हें सरपंच चुना। इसके बाद कारज के सामने गांव का विकास करने की चुनौती थी। इस कार्य के लिए पैसे की कमी बड़ी समस्या थी। विकास के लिए पैसे कहां से आएंगे, इस पर कारज सिंह ने मंथन किया। उनकी नजर गांव की बेकार पड़ी शामलात जमीन पर पड़ी।
उन्होंने बैठक कर गांव के लोगों से विचार-विमर्श कर नौ एकड़ शामलात जमीन नौ करोड़ में बेच दी गई। इस पैसे की बैंक में एफडी करवा दी गई। जमा राशि पर हर साल 85 रुपये ब्याज आने लगा। इस राशि से गांव का विकास करवाया जाने लगा। इस समय गांव की पंचायत के नाम सात करोड़ की एफडी है। इस पर वर्ष में 65 लाख रुपये ब्याज मिलता है। इस राशि से गांव में विकास कार्य करवाए जाते हैं। साथ ही 12 लाख की राशि सरकार के खाते में जमा करवाई जाती है। पूर्व सरपंच कारज सिंह फिर से कनाड़ा जाकर बस गए हैं, लेकिन उनके दिखाई राह पर चलकर गांव लगातार तरक्की कर रहा है।
215 युवक जिम में बना रहे शरीर
गांव की युवा पीढ़ी नशे से दूर रहे, इसके लिए गांव में जिम का निर्माण करवाया गया। जिम में आधुनिक तकनीक की मशीनें हैं। जिन पर करीब 50 लाख रुपये का खर्च आया। गांव के करीब 95 युवक जिम में कसरत करते हैं। इसके अलावा आसपास के पांच गांवों हेरां, अदलीवाल, बुआ नंगली, मीराकोट, मिगलानी कोर्ट से 120 युवक यहां पर कसरत करने आते हैं। जिम सुबह पांच बजे से लेकर सुबह नौ बजे तक और शाम को चार बजे से रात नौ बजे तक खुला रहता है। सिचंदर गांव के युवाओं के लिए यह पूरी तरह से मुफ्त है। अन्य गांव से आने वाले युवकों से मामूली सी फीस वसूली जाती है, ताकि जिम और मशीनों की रखरखाव में किसी तरह की परेशानी न हो।
15 से ज्यादा युवक छोड़ चुके हैं नशा
जिम में आकर कसरत करने से 15 से ज्यादा युवक नशा करना छोड़ चुके हैं। नशा छुड़वाने के लिए पंचायत ने सबसे पहले उन युवाओं का इलाज करवाया। इसके बाद इनको जिम में कसरत करने की प्रेरणा दी। जिम में कसरत करने से ये युवक शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत हुए। परिणामस्वरूप उन्होंने नशा करना छोड़ दिया।
हर घर में पानी और टॉयलेट की दी सुविधा
पूर्व सरपंच कारज सिंह की सोच थी कि हर घर पीने का साफ पानी पहुंचना चाहिए। टॉयलेट जरूर होना चाहिए। इसके तहत 45 लाख रुपये की लागत से पानी की टंकी बनवाई गई। हर घर को पानी का कनेक्शन मुहैया करवाया गया। टॉयलेट का कनेक्शन भी दिया गया। गांव की सारी गलियां पक्की कंक्रीट की बनाई गईं। स्ट्रीट और सोलर स्ट्रीट लाइटें भी लगवाई गईं।
पूर्व सरपंच कारज सिंह ने बनवाया था जिम
गांव के पूर्व सरपंच कर्म सिंह और जिम की देखरेख कर रहे युवराज सिंह बताते हैं बताया कि यह सब कुछ पूर्व युवा सरपंच कारज सिंह के कारण संभव हो पाया है। कारज सिंह की ही सोच थी कि युवाओं की सेहत का ध्यान रखा जाए। उन्होंने ही पंचायत में प्रस्ताव पास करवा जिम को तैयार करवाया था।
जिम से बदल गई इनकी जिंदगी
नशा छोड़ने वाले युवकों ने बताया कि हमें नशे की लत बुरी तरह लग गई थी। हम नशा छोड़ना चाहते थे, लेकिन यह लत छूट नहीं रही थी। पंचायत ने सबसे पहले इलाज करवाया। इसके बाद जिम जाने की प्रेरणा दी। नशे की लत छूटने से आज हमारी जिंदगी काफी आसान हो गई है। नशा करने से हमारी जिंदगी नरक हो गई थी।
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