Move to Jagran APP

गंदगी से भर गया जलाशय, अब तो जानवरों को भी नहीं मिलता आश्रय

शहरीकरण की आंधी अब गांवों तक पहुंचने लगी है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 20 Jun 2018 08:29 PM (IST)Updated: Wed, 20 Jun 2018 08:29 PM (IST)
गंदगी से भर गया जलाशय, अब तो जानवरों को भी नहीं मिलता आश्रय
गंदगी से भर गया जलाशय, अब तो जानवरों को भी नहीं मिलता आश्रय

नितिन धीमान, अमृतसर

loksabha election banner

शहरीकरण की आंधी अब गांवों तक पहुंचने लगी है। किसी जमाने में कच्चे घरौंदों में रहने वाले गांववासी अब पक्की ईंटों के घरों में जीवनयापन कर रहे हैं। गांवों में आलीशान कोठियां भी बन गई हैं। जीवनशैली में आधुनिकता की चमक दिखने लगी है। जिस प्रकार कच्चे घरों का अस्तित्व मिट रहा है, ठीक वैसे ही ऐतिहासिक धरोहरें भी अपने अस्तित्व के आखिरी चरण में हैं। ऐतिहासिक धरोहरों से अर्थ केवल इमारतें नहीं, इंसान की ¨जदगी का आधार जलाशय भी हैं। गांवों के मेहनतकश लोगों को तृप्त करने वाले जलाशय आज सूख चुके हैं। वर्षा का जल कभी कभार इन जलाशयों के आंचल की गर्मी शांत करता है, लेकिन बाद में यही जल कीचड़ बनकर गांव की शुद्ध हवा में प्रदूषण का कारण बनता है।

अमृतसर के गांव थांदे में ऐसा ही एक ऐतिहासिक जलाशय है। इसे सिर्फ जलाशय कहना ही न्यायोचित्त नहीं, क्योंकि किसी जमाने में पानी से लबालब रहने वाले जलाशय में इंसान, पशु—पक्षी तृप्त होते थे। किसानों के खेतों को सींचने का एकमात्र जरिया यही जलाशय था। किसान सब्जियों का उत्पादन करके मंडियों में बेचते और अपना रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करते। किसान गाजर, मूली, शलगम आदि सब्जियां इसी जलाशय में धोकर मंडी ले जाते थे। अमृतसर के बाकियों जलाशयों की तरह ही इस जलाशय को भी सरकारी उदासीनता की नजर लग गई। लोगों ने अपने घरों में सबमर्सिबल पंप लगवाकर भूमिगत जल का दोहन शुरू कर दिया। इस इसके बाद ही जलाशय की तबियत बिगड़ गई। जलाशय के आसपास मिट्टी और गंदगी जमा होने लगी और कुछ वर्ष पूर्व वर्षा का पानी भी जलाशय में समाहित होना बंद हो गया। आज यह जलाशय बारिश की सीधी बूंदें गिरने से तृप्त होता है, लेकिन किसी की प्यास नहीं बुझा पाता। अब तो पक्षियों का आवागमन भी इस ओर नहीं होता। जलाशय में गंदगी व कीचड़ के अंबार लगे हैं। गांव के लोग जलाशय में कूड़ा फेंकते हैं।

पानी का अब कोई सहारा नहीं

कुलदीप ¨सह का कहना है कि भीषण गर्मी में जलाशय सूख गए हैं। मवेशियों को पानी का अब कोई सहारा नहीं। जिला प्रशासन जलाशयों में आवश्यकतानुसार पानी भर दे और इसकी समय समय पर सफाई करवा दे तो जलाशयों का अस्तित्व बचा जा सकता है। दुख की बात है कि जिम्मेदार अधिकारियों का इस ओर ध्यान नहीं जा रहा है।

सरकार ध्यान देती तो ऐसी हालत न होती

राहुल शर्मा का कहना है कि जलाशयों में पानी नहीं है। गांव के लोग पशुओं को पानी पिलाने में असमर्थ हैं। घरों में बाल्टियां भरकर पशुओं की प्यास बुझाते हैं। पूर्व के वर्षों में यह जलाशय पानी से लबालब था। अगर सरकार ने थोड़ा सा ध्यान दिया होता तो निश्चित ही इसकी ऐसी हालत न होती।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.