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एमआरआइ मशीन में फंसा आक्सीजन सिलेंडर निकाला, दर्जा चार कर्मी व दो टेक्निशियन्स कसूरवार

गुरुनानक देव अस्पताल स्थित रेडियोलाजी विभाग में इंस्टाल एमआरआइ मशीन में फंसा आक्सीजन सिलेंडर सोमवार को तकनीकी टीम ने निकाल लिया।

By JagranEdited By: Published: Mon, 16 Nov 2020 04:46 PM (IST)Updated: Mon, 16 Nov 2020 04:46 PM (IST)
एमआरआइ मशीन में फंसा आक्सीजन सिलेंडर निकाला, दर्जा चार कर्मी व दो टेक्निशियन्स कसूरवार
एमआरआइ मशीन में फंसा आक्सीजन सिलेंडर निकाला, दर्जा चार कर्मी व दो टेक्निशियन्स कसूरवार

जागरण संवाददाता, अमृतसर : गुरुनानक देव अस्पताल स्थित रेडियोलाजी विभाग में इंस्टाल एमआरआइ मशीन में फंसा आक्सीजन सिलेंडर सोमवार को तकनीकी टीम ने निकाल लिया। मशीन का एक हिस्सा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुका है। इसमें से हीलियम गैस खत्म हो गई है। सिलेंडर निकालने के बाद तकनीकी टीम एमआरआइ मशीन के क्षतिग्रस्त पा‌र्ट्स की जांच कर रही है। इसे आन करने के लिए तकरीबन पंद्रह लाख रुपये का खर्च आएगा। मामले की जांच कर रही कमेटी ने अपनी रिपोर्ट मेडिकल सुपरिटेंडेंट को सौंप दी है। रिपोर्ट में रेडियोलाजी विभाग के दो टेक्निशियन व एक दर्जा चार कर्मचारी पर आरोप सिद्ध हुए हैं।

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दरअसल, 5 नवंबर को एक मरीज को स्ट्रेचर पर लिटाकर एमआरआइ कक्ष तक लाया गया। स्ट्रेचर पर आक्सीजन सिलेंडर था। दर्जा चार कर्मचारी ने आक्सीजन सिलेंडर स्ट्रेचर से उतारा एवं एमआरआइ कक्ष के प्रवेश द्वार पर रख दिया। एमआरआइ मशीन ने सिलेंडर को चुंबकत्व बल से अपनी ओर खींच लिया। आक्सीजन सिलेंडर सीधे एमआरआइ से टकराया और इसमें फंस गया। एमआरआइ मशीन के बाहरी व अंदरूनी पा‌र्ट्स डैमेज हो गए। तब से आज तक यह मशीन बंद पड़ी है और मरीज परेशान हो रहे हैं। इस मशीन से प्रतिदिन दस से 15 एमआरआइ टेस्ट किए जाते थे। वर्तमान में मरीजों को निजी डायग्नोस्टिक सेंटरों पर जाकर टेस्ट करवाने के लिए चार से पांच हजार रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं।

वहीं रेडियोलाजी विभाग में कार्यरत दो टेक्निशियनों ने सिलेंडर सहित स्ट्रेचर को अंदर आने दिया। एमआरआइ कक्ष में लोहे की वस्तु न आए, इसके लिए बाकायदा दो मैटल डिटेक्टर लगाए गए हैं, पर टेक्निशियनों ने मरीज को मैटल डिटेक्टर से निकालने की बजाय बाइपास यानी दूसरी साइड से अंदर पहुंचाया। इन्हें मालूम था कि यदि मैटल डिटेक्टर से स्ट्रेचर को अंदर लाए तो लोहे का आक्सीजन सिलेंडर की वजह से बीप की आवाज आएगी। इस लापरवाही का दुष्परिणाम यह निकला कि आक्सीजन सिलेंडर को एमआरआइ मशीन ने अपनी ओर खींच लिया।

जांच के लिए हुई थी कमेटी गठित

पांच नवंबर को घटना के दिन ही मेडिकल सुपरिटेंडेंट ने मामले की जांच के लिए कमेटी का गठन किया था। कमेटी में पीडिएट्रिक विभाग की प्रोफेसर डा. मनमीत कौर सोढी, सर्जरी- के इंचार्ज डा. सुमितोज धारीवाल, असिस्टेंट प्रोफेसर डा. पिशोरा सिंह, आर्थो वार्ड-2 के प्रो. डा. राजेश कपिला को शामिल किया गया है। जांच कमेटी ने रेडियोलाजी विभाग में कार्यरत कर्मचारियों के बयान कलमबंद किए और रिपोर्ट एमएस को सब्मिट कर दी।

पांच लाख की हीलियम गैस, दस लाख रिपेयर का खर्च

एमआरआइ मशीन में सबसे महत्वपूर्ण हीलियम गैस है। सिलेंडर टकराने से हीलियम गैस का स्त्राव हो गया। सिर्फ गैस भरने पर ही पांच लाख रुपये खर्च होंगे। वहीं मशीन की रिपेयरिग में तकरीबन दस लाख का खर्च आएगा। चंडीगढ़ से आई तकनीकी टीम ने हीलियम गैस तो भर दी है, पर रिपेयर में अभी एक सप्ताह लग सकता है। मेडिकल सुपरिटेंडेंट डा. जेपी अत्री ने बताया कि यूजर चार्जेज से पंद्रह लाख रुपये निकाले गए हैं। दर्जा चार कर्मचारी व दो टेक्निशिन्यस पर कार्रवाई की तैयारी की जा रही है। टेक्निशियन्स का काम होता है कि एमआरआइ कक्ष में लोहे का बारीक कण भी अंदर न जाए, तो फिर भारी भरकम सिलेंडर इन्होंने अंदर क्यों आने दिया। सिलेंडर को मैटल डिटेक्टर से बाइपास क्यों किया। विभाग ने इन्हें चार्जशीट करने को कहा है।


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