प्रोफेसरों को सताने लगी एक्टेंशन की नौकरी छूटने की टेंशन
फोटो — 11 सरकार ने मेडिकल कॉलेज के 12 री-इंप्लाइड प्रोफेसरों को चलता करने की तैया
नितिन धीमान, अमृतसर : सरकारी मेडिकल कॉलेज अमृतसर में सेवानिवृत्ति के बाद री-इंप्लाइमेंट का सुख भोग रहे 12 प्रोफेसरों पर सरकार की तिरछी निगाहें घूम रही हैं। इन प्रोफेसरों को किसी भी समय मेडिकल कॉलेज से रुख्सत कर घर भेजा जा सकता है। अपनी नौकरी बचाने के लिए अब ये प्रोफेसर साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपना रहे हैं। कोई चंडीगढ़ तक पहुंच कर रहा है तो कोई स्थानीय विधायकों एवं मंत्रियों की शरण में पहुंच रहा है।
दरअसल, मेडिकल शिक्षा एवं खोज विभाग ने पिछले दिनों डिपार्टमेंटल प्रमोशन कमेटी की मी¨टग करके प्रमोशन सूची जारी कर दी है। इस सूची में 17 प्रोफेसरों एवं 52 सहायक प्रोफेसरों का चयन किया है। इन्हें तीनों मेडिकल कॉलेजों में भेजने की प्रक्रिया भी लगभग पूरी कर ली गई है। कुछ प्रोफेसरों को तो नियुक्ति प्रदान भी की गई है। विभाग ने सरकारी मेडिकल कॉलेज अमृतसर में एमबीबीएस की 50 अतिरिक्त सीटें बचाने के लिए यह प्रक्रिया पूरी की गई है। असल में मेडिकल कौंसिल ऑफ इंडिया ने मेडिकल कॉलेज 50 एमबीबीएस की सीटें कई शर्तें रखकर प्रदान की थी। इनमें स्टाफ की संख्या पूरी करना भी शामिल था। कौंसिल के अधिकारी छह बार मेडिकल कॉलेज अमृतसर पहुंचे, पर स्टाफ की कमी हर बार संज्ञान में आइ। यही वजह है कि कौंसिल ने साफ कर दिया था कि यदि स्टाफ भर्ती न किया गया तो निश्चित ही मेडिकल कॉलेज को 50 एमबीबीएस सीटों से हाथ धोना पड़ेगा। कौंसिल इन सीटों को वापस भी ले सकती है। मेडिकल कॉलेज में अब 250 एमबीबीएस सीटें हैं और कॉलेज प्रशासन इन सभी सीटों पर एमबीबीएस स्टूडेंट्स को चिकित्सा शास्त्र का पाठ पढ़ा रहा है। कौंसिल की झिड़की के बाद इस डर से कि कहीं एमबीबीएस की सीटें वापस न हो जाएं, मेडिकल शिक्षा एवं खोज विभाग ने डिपार्टमेंटल प्रमोशन कमेटी की मी¨टग करवाकर पदोन्नति सूची जारी कर दी। इसके बाद प्रोफेसरों व सहायक प्रोफेसरों को अमृतसर, फरीदकोट व पटियाला मेडिकल कॉलेजों में लगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
डिपार्टमेंटल कमेटी की मी¨टग के बाद हुई अचानक हुई पदोन्नति से उन प्रोफेसरों पर सरकारी तलवार लटक रही है जो सेवानिवृत्ति के बाद अपने असर-रसूख से दो—दो साल की एक्टेंशन पा गए। सरकारी मेडिकल कॉलेज में ऐसे 12 प्रोफेसर हैं जो एक्टेंशन लेने के बाद मजे कर रहे थे, लेकिन अब उन्हें इस बात की टेंशन है कि सरकार उन्हें किसी भी वक्त घर भेज सकती है।
रोचक पहलू यह है कि 59 साल की नौकरी पूरी करने के बाद भी 'सरकारी मेहमान' बनकर ये प्रोफेसर कॉलेज में हर रोज आते हैं और कुछ घंटे काम करके घर लौट जाते हैं। पीडिएट्रिक वार्ड के एक प्रोफेसर ने तीन माह पूर्व एक नवजात शिशु की धड़कन की जांच करने से ही इंकार कर दिया था। इस प्रोफेसर ने कहा था कि बच्चे को तीसरी मंजिल से उठाकर उनके पास लाएं, तब जांच करूंगा। यह मामला चिकित्सा जगत को शर्मसार कर गया था। क्योंकि बच्चा नवजात था और उसकी मां प्राइवेट रूम में डिलीवरी के बाद दर्द से कराह रही थी। परिवार का कोई भी सदस्य बच्चे को तीसरी मंजिल से नीचे लाने में इसलिए असमर्थ था क्योंकि बच्चा प्रीमैच्योर था। यह एक घटना ही काफी है यह बताने के लिए कि एक्सटेंशन की नौकरी प्रोफेसर कैसे करते हैं। ठीक ऐसे ही ज्यादा री-इंप्लाइड प्रोफेसर सरकारी वेतन का लुत्फ उठा रहे हैं।