Move to Jagran APP

अब बाढ़ में नहीं बहेंगे नदियों पर बने पुल, अमृतसर इंजीनियरिंग कालेज के प्रोफेसर उपेन ने तैयार किया विशेष डिजाइन

अमृतसर इंजीनियरिंग कालेज (Amritsar Engineering College) के प्रो. उपेन कुमार भाटिया ने पुल का विशेष डिजाइन तैयार किया है। इसकी खासियत यह है कि इस तकनीक से बने पुल बाढ़ की स्थिति में भी अपनी जगह पर टिके रहेंगे।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Mon, 07 Dec 2020 08:16 PM (IST)Updated: Mon, 07 Dec 2020 08:16 PM (IST)
अब बाढ़ में नहीं बहेंगे नदियों पर बने पुल, अमृतसर इंजीनियरिंग कालेज के प्रोफेसर उपेन ने तैयार किया विशेष डिजाइन
प्रो. उपेन भाटिया द्वारा तैयार पुल का डिजाइन।

अमृतसर [रविंदर शर्मा]। अब भारी बारिश के बाद पानी के तेज बहाव या बाढ़ से बहने वाले पुलों को बचाया जा सकेगा। इससे करोड़ों रुपये की बचत होगी। यह संभव हो पाया है अमृतसर इंजीनियरिंग कालेज (Amritsar Engineering College) के सिविल इंजीनियर डिपार्टमेंट के प्रो. उपेन भाटिया के शोध से। उन्होंने पुलों के निर्माण के लिए विशेष डिजाइन तैयार किया है।

loksabha election banner

यह भी पढ़ें : IAS रानी नागर ने वापस लिया इस्तीफा, हरियाणा नागरिक संसाधन सूचना विभाग में मिली नई नियुक्ति

इस डिजाइन के अनुसार पुलों के दोनों तरफ अबेटमेंट (खंभों) के साथ उसकी चौड़ाई से तीन गुना लंबी सामान्य दीवार लगाकर पानी की गति को रोका जाएगा। यह दीवार पुलों के आस-पास की मिट्टी और पुल के लिए सहारा बनेगी। इस शोध को भारत सरकार ने मान्यता दे दी है। प्रो. भाटिया और उनके गाइड व एनआइटी कुरुक्षेत्र के प्रो. बलदेव सेतिया को 20 साल के लिए यानी यानी वर्ष 2033 तक का पेटेंट भी मिल गया है।

यह भी पढ़ें : पंजाब में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर फिर दिखा पाकिस्तानी ड्रोन, बीएसएफ ने की फायरिंग, सुरक्षा एजेंसियां अलर्ट

इससे मिलती-जुलती पुरानी तकनीक के मुकाबले यह तकनीक पुलों को सुरक्षित करने में तीन गुना ज्यादा सक्षम है। पुरानी तकनीक का कोई पेटेंट नहीं किया था। इस तकनीक का पहली बार पेटेंट किया गया है। इसके लिए उन्हें रायल्टी भी मिलेगी।

हरियाणा के यमुनानगर के रहने वाले सिविल इंजीनियर प्रो. भाटिया ने बताया कि उन्होंने अमेरिका के पांच पेटेंट और दक्षिण कोरिया व ताइवान के एक-एक पेटेंट का गहराई से अध्यन किया। इस दौरान उन्होंने पाया कि उनका शोध अन्य सभी से बेहतर व हर मापदंड पर खरा उतरा। नेशनल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी से पीएचडी करते हुए उन्होंने पाया कि बाढ़ आने के दौरान 75 फीसद पुलों के किनारों में से 27 फीसद पिल्लर बाढ़ के पानी के तेज बहाव के साथ बह जाते हैं।

यह भी पढ़ें : ये है हरियाणा का बनवाला गांव, महिला सरपंच सुमन ने कर दिखाया कमाल, किसान की जमीन उगल रही 'सोना'

इसके बाद उन्होंने अपने गाइड प्रो. बलदेव सेतिया की मदद से अंबाला की महर्षि मार्कंडेश्वर यूनिवर्सिटी की लैब में छह से सात तकनीकों पर काम किया। उन्होंने एक साधारण तकनीक खोजी, जिसमें पुल के अंतिम छोर के दोनों खंभों के साथ उनकी लंबाई से तीन गुना लंबी दीवार बनाई और पाया कि खंभों से टकराने के बाद पानी दो हिस्सों में बंट जाता है। दीवार के अंदरुनी हिस्से का पानी वहीं ठहर जाता है, जबकि दूसरे हिस्से वाला पानी आगे निकल जाता है।

क्या है नई और पुरानी तकनीक में अंतर

पुरानी तकनीक में छोटी सी दीवार बनाई जाती थी। इसका आधार क्षेत्र बहुत कम होता था, जबकि नई तकनीक का आधार क्षेत्र तीन गुना ज्यादा है। यह दीवार पानी के घनत्व से एक चौथाई बाहर और शेष जमीन के अंदर होती है। यह दीवार तीन गुना तेजी से आने वाले पानी को भी पुल की अबेटमेंट के आधार तक नहीं पहुंचने देती।

80 फीसद तक रोका जा सकता है कटाव

इस शोध में प्रो. भाटिया ने पाया कि इस तकनीक से जमीन का 80 फीसद कटाव रोका जा सकता है। उन्होंने इसे 'प्रोजेक्ट लिप' नाम दिया। इस तकनीक से पुराने पुलों के साथ-साथ नए पुलों में इसका प्रयोग करके उन्हेंं बचाया जा सकता है। अपनी पीएचडी की डिग्री के दौरान उन्होंने छह साल की मेहनत से साल 2013 में शोध मुकम्मल किया था।

यह भी पढ़ें : निशाने पर आए तो पूर्व क्रिकेटर योगराज सिंह ने दी सफाई, बोले- गलती से किया हिंदूू का जिक्र, माफी मांगता हूं


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.