आज शुरू होगा लंगूर मेला, लाल चोला पहनकर लंगूर बने बच्चें होंगे नतमस्तक
जय श्रीराम जय बजरंगबली के जयकारों से दस दिनों तक चलने वाला श्री लंगूर मेला रविवार को श्री दुग्र्याणा तीर्थ स्थित श्री बड़ा हनुमान मंदिर में शुरू होगा।
कमल कोहली, अमृतसर
जय श्रीराम, जय बजरंगबली के जयकारों से दस दिनों तक चलने वाला श्री लंगूर मेला रविवार को श्री दुग्र्याणा तीर्थ स्थित श्री बड़ा हनुमान मंदिर में शुरू होगा। लंगूर बनने वाले बच्चे अपने अभिभावकों के साथ तीर्थ परिसर में आकर लंगूर बनने के लिए लाल चोला पहनकर दस दिन तक कठिन तपस्या से गुजरेंगे। इस लंगूर मेले में करीब पांच हजार से अधिक बच्चे लंगूर बनने की संभावना है। श्री दुग्र्याणा कमेटी द्वारा मंदिर परिसर में उमड़ने वाली भीड़ को देखते हुए सभी प्रबंध पूरे किए गए हैं। लंगूरों के माथा टेकने के लिए मुख्य रास्ते का प्रबंध किया गया है, वहीं बजरंगी सेना के लिए अलग से रास्ता बनाया गया है। इस बार जहां पूरे भारत से भक्तजन अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए बच्चों को लंगूर बनाने के लिए आएंगे, वहीं विदेशों से भी कई भक्तजनों द्वारा अपने बच्चों को लंगूर बनाने के लिए आने की संभावना है।
मेले में लगाई गई ड्यूटी के कमेटी के प्रधान रमेश शर्मा व महासचिव अरुण खन्ना ने बताया कि लंगूर मेले के प्रथम दिन लंगूर बनने वाले बच्चों व वस्त्रों की पूजा के लिए सौ पंडितों की ड्यूटी लगाई गई है। जो तीर्थ परिसर में बैठकर पूजा करेंगे। श्री बड़ा हनुमान मंदिर के पूरा दिन खुले रहेंगे द्वार
कमेटी के प्रधान रमेश शर्मा ने बताया कि लंगूर मेले के दिनों में मंदिर के द्वार प्रात: चार बजे खुल जाएंगे। देर रात तक भक्तजन दर्शन कर सकेंगे। इस बार लंगूरों व उनके परिजनों के लिए लंगर की व्यवस्था की गई है। भीड़ को देखते हुए बेरिकेड लगाए गए हैं। भक्तजनों के लिए मुख्य गेट श्री सत्यनारायण मंदिर, श्री तुलसीदास मंदिर, श्री बड़ा हनुमान मंदिर वाला मार्ग बनाया गया है। बजरंगी सेना के लिए भी अलग मार्ग का इंतजाम किया गया। मंदिर का इतिहास : श्री दुर्गयाणा तीर्थ में स्थित वेद कथा भवन से सटा हुआ श्री बड़ा हनुमान मंदिर है। वास्तव में यह मंदिर श्री दुर्गयाणा मंदिर परिसर में अपनी अलग-अलग पहचान रखता है। परिक्रमा पथ से एक द्वार के अतिरिक्त श्री दुर्गयाणा परिसर के बाहर से इसका मुख्य द्वार है। यह मंदिर रामायण कालीन युग से है। इस मंदिर में श्री हनुमान जी की बैठी अवस्था में मूर्ति है और यह मूर्ति श्री हनुमान जी द्वारा स्वयं निर्मित है अर्थात यह मूर्ति का स्वंभू अस्तित्व है। जब लव व कुश ने श्रीराम के अश्व मेघ यज्ञ घोड़े को रोक कर श्रीराम जी की सत्ता को ललकारा था तो उनका सामना हनुमान जी से हुआ था। दोनों बच्चों के तेज और साहस को देखकर श्री हनुमान जी समझ गए थे कि यह बच्चे श्रीराम की ही छवि है। जब लव-कुश ने उन्हें बांधना चाहा तो वह सहर्ष एक बड़े वट वृक्ष के साथ बैठ गए और मुस्कुराते हुए लव-कुश के हाथों खुद को बंधवा लिया। क्योंकि पवन स्वरूप श्री हनुमान जी को किसी बंधन में बांधना तो असंभव था। यह वट वृक्ष आज भी श्री दुर्गयाणा मंदिर परिसर में स्थित है। युद्ध के पश्चात श्रीराम जी ने स्वयं आकर हनुमान जी को बंधनमुक्त किया और आशीर्वाद दिया कि जिस तरह इस जगह उनका अपनी संतानों से मिलन हुआ है। उसी तरह यहां आकर जो प्राणी श्री हनुमान जी से संतान प्राप्ति की मन्नतकरेगा। उसे संतान अवश्य ही प्राप्त होगी। लंगूर बनने की प्रथा : श्री दुर्गयाणा मंदिर में अश्विन मास के नवरात्र में संतान प्राप्ति की कामना करने वाले दंपती श्री बड़ा हनुमान मंदिर में मन्नत मांग कर जाते हैं कि जब हमारे घर संतान की प्राप्ति होगी तब हम लाल चोला पहनाकर लंगूर बनाकर मंदिर में माथा टिकाने आएंगे। जिसकी भी संतान रत्न की मन्नत पूरी होती है वह उसे लंगूर बनाकर ढोल नगाढ़ों के साथ इन दिनों श्री दुर्गयाणा मंदिर में देखने वाला नजारा होता है। श्री दुग्र्याणा कमेटी ने किए सभी प्रबंध पूरे
कमेटी के प्रधान रमेश शर्मा ने कहा कि लंगूर मेले व नवरात्र को देखते हुए सभी प्रबंध पूरे किए गए हैं। वहीं, सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मंदिर परिसर में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। प्राइवेट सुरक्षा एजेंसी भी हायर की गई है। इसके अलावा कई वालंटियर भी सुरक्षा की दृष्टि से तीर्थ में पूरी नजर रखेंगे। श्रद्धालुओं के लिए प्रात: चाय व लंगर का भी प्रबंध किया गया है।