नानकशाही ईंटों से बना गांव भकना का तालाब हो गया बे-आब
वर्तमान में देश के कई हिस्से गहरे जल संकट से जूझ रहे हैं। लोग बूंद-बूंद को मोहताज हैं।
नितिन धीमान, अमृतसर :
वर्तमान में देश के कई हिस्से गहरे जल संकट से जूझ रहे हैं। लोग बूंद-बूंद को मोहताज हैं। राजस्थान जैसा गर्म प्रांत और शिमला जैसी ठंडी राजधानी जल बिन व्याकुल है। यह एक संकेत है, जिसे समझना ही होगा वरना जमीन की गहराइयों से पानी निकालकर गला तृप्त कर रहे लोग इससे वंचित हो जाएंगे।
भीषण गर्मी में गिरता भूगर्भ जल स्तर ¨चताजनक स्तर पर पहुंच गया है। इस पर अभी से ¨चतन न किया गया तो भविष्य की तस्वीर और भयावह होगी। भूगर्भ जल को बरकरार रखने में जलाशयों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। तालाब, पोखर या छप्पड़, ताल-तलैया आदि ऐसे जरिया हैं जिनसे इंसान तृप्त होते और भूगर्भ जल का स्तर बना रहता था। अफसोस, हमने जलाशयों को बड़ी बेरहमी से भुला दिया। अमृतसर में ऐसे ज्ञात-अज्ञात ऐसे जलाशय हैं जो लोगों की अनदेखी और सरकार की बेरुखी का शिकार हैं।
खासा रोड पर स्थित गांव भकना में ऐसा ही एक ऐतिहासिक तालाब है जो तकरीबन पांच सौ साल पहले अस्तित्व में आया। नानकशाही ईंटों से निर्मित यह तालाब अपने भीतर इतिहास का खजाना समेटे है। वर्गाकार आकार का यह तालाब वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। संभवत: जिस वास्तुकार ने इसका निर्माण किया, उसने बड़ी ही शिद्दत से काम किया। तालाब के चारों और ढलान है, जिससे नहरी व बारिश का पानी इसमें बड़ी आसानी से समाहित हो जाता था। इस तालाब को भी सरकारी उपेक्षा ने निगल लिया। ईंटें उखड़ रही है। गांववासियों ने चंदा एकत्रित कर सरोवर की चारदीवारी करवा दी। इससे गांव की गंदगी से तो सरोवर को मुक्ति मिली, पर बारिश के बाद यह तालाब कीचड़ से भर जाता है। फिर पूरे गांव में बदबू उठने लगती है। पानी विहीन होने से तालाब में पशु-पक्षियों व राहगीरों का अब जमावड़ा नहीं लगता। चबूतरा व सीढि़यां भी क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। गांववासी बताते हैं कि पिछले तीस वर्षों से यह तालाब वीरान है। कभी यहां सुबह शाम गांव के लोग एकत्रित होते थे। तालाब के साथ बने प्राचीन मंदिर में नतमस्तक होते, पर आज सब कुछ बदल गया है। अब पशु-पक्षियों को पानी की तलाश में भटकना पड़ रहा है।
पानी का स्त्रोत था तालाब
कुलबीर कौर का कहना है कि यह तालाब पानी का बड़ा स्त्रोत था। आज भूमिगत जल स्तर जिस गति से गिरा रहा है वह खतरे की घंटी है। इसलिए तालाबों को संरक्षित करना ही होगा। सरकार सिर्फ तालाब के आसपास जमा मिट्टी को हटवा दे। ढलान उभर आएगी तो पानी स्वत: ही तालाब तक पहुंच सकेगा।
सरकार नहीं संभाल रही
ऐतिहासिक तालाब
पर¨मदर कौर का मानना है कि जल ही जीवन का नारा तभी सार्थक हो पाएगा जब नदी तालाब व झील को बचाया जाएगा। शहर के कई तालाबों पर अवैध कब्जे हो चुके हैं। जो कब्जों से बचे हैं उन्हें सरकार संभाल नहीं रही। तालाबों को सरकारी संरक्षण चाहिए। इसमें सरकार को ज्यादा राशि भी खर्च नहीं करनी पड़ेगी। गांव के लोग भी चंदा एकत्रित कर देने को तैयार हैं।