सौ साल पहले... सात वर्ष के इस बच्चे ने देखी थी अंग्रेजों की ऐसी बर्बरता, 'तमाशा' में लिखी आंखों देखी
जलियांवाला बाग की घटना ने बालक मंटो के मन को इतना गहरा आघात पहुंचाया कि युवा होने पर उन्होंने इस पर तमाशा नाम की एक कहानी लिखी।
अमृतसर [दुर्गेश मिश्र]। 'सोलह सौ पचास गोलियां, चली हमारे सीने पर।
पैरों में बेड़ी डाल, बंदिशें लगी हमारे जीने पर।
रक्तपात करुणाक्रंदन, बस चारों ओर यही था।
पत्नी के कंधे लाश पति की, जड़ चेतन में मातम था।
इन्क्लाब का ऊंचा स्वर, इस पर भी यारो दबा नहीं।
भारत का जयकारा, बंदूकों से डरा नहीं।
ये चंद पंक्तियां जलियांवाला बाग हत्याकांड की बर्बरता बताने के लिए काफी हैं। 13 अप्रैल 1919, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का एक ऐसा दिन, जिसे इतिहास की तारीख में जलियांवाला बाग नरसंहार के रूप में जाना जाता है। ब्रिटिश इंडिया के इतिहास के जब पन्ने पलटे जाएंगे तो उसके एक सफे पर बर्तानवी हुकूमत का यह स्याह अध्याय हर भारतीय को अंग्रेजों के जुल्म की कहानियां सुनाएगा।
वक्त की दीवार पर टंगे तारीख के पन्ने बेशक बदलते गए, लेकिन जलियांवाला बाग की दरक रही दीवारों पर लगे जनरल डायर के हुक्म पर चलाई गई गोलियों के निशान नश्तर की तरह आज भी हर भारतीय के सीने में चुभते हैं, जिसे अंगेजों ने दिया था। देश के सपूतों के रक्त से सिंचित जलियांवाला बाग की दीवारों पर लगी गोलियों के निशान देखने वालों के मन में सिहरन सी पैदा करते हैं।
जलियांवाला बाग हत्याकांड में कितने लोग शहीद हुए। इसका सही आंकड़ा आज भी नहीं मिलता। अलग-अलग अभिलेखों में अलग-अलग संख्या दर्ज है, लेकिन इस घटना ने गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर को भी हिलाकर रख दिया था। यही नहीं, जनरल डायर की इस क्रूरता को करीब से महसूस करने वालों में उधम सिंह और नानक सिंह के बाद एक सात वर्ष बच्चा भी था। जो उस समय अपने वालिद की गोद में बैठकर उनसे तरह-तरह के सवाल कर रहा था। यह बच्चा कोई और नहीं बल्कि सआदत हसन मंटो था। मंटो लुधियाना के समराला के रहने वाले थे और 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन वालिद अमृतसर आए थे। ठीक इसी दिन जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था।
मंटो ने लिखा 'तमाशा'
जलियांवाला बाग की इस घटना ने बालक मंटो के मन को इतना गहरा आघात पहुंचाया कि युवा होने पर उन्होंने इस पर तमाशा नाम की एक कहानी लिखी। ऊर्दू के प्रसिद्ध लेखकों में शुमार मंटों ने 'तमाशा' नाम से लिखी इस कहानी में जलियांवाला बाग की घटना जिक्र किया है। उन्होंने बालपन में जो देखा महसूस किया उसे लिखा। कहानी में वे पूछते हैं-' अब्बा आप मुझे स्कूल क्यों नहीं जाने देते '' मास्टर साहिब ने तो हमें बताया नहीं। जलियांवाला बाग में चल रही गोलियों की आवाज सुन कहता है अब्बा- उठो चलो पटाखे फूट रहे हैं, तमाशा शुरू हो गया है।'' कुछ इसी तरह के मार्मिक दृश्यों को उन्होंने अपनी इस 'तमाशा' नाम की कहानी में लिखा है, जिसे उन्होंने उस समय महसूस किया था। शायद मंटो की यह पहली कहानी थी।
कई लेखकों ने लिखी हैं किताबें
बहरहाल, काल के कपाल पर कभी न भरने वाले इस जख्म के बारे में मंटो सहित इन सौ सालों में नानक सिंह से लेकर सलमान रुशदी तक कई उपन्यासकारों ने किताबें लिखी हैं। इनमें प्रसिद्ध किताबें हैं-सगा ऑफ दे फ्रीडम मूवमेंट एंड जलियांवाला बाग मैसकेयर, गाडन ऑफ बुलेट्स, किम एक मैग्नर अमृतसर 1919, द जलियांवाला बाग मैसकेयर 1919, आई विटनेस ऐट अमृतसर, जलियावाला बाग द रियल स्टोरी और 1981 में सलमान रुशदी की मिडनाइट चिल्ड्रन सहित दर्जनों किताबें हिंदी और अंग्रेजी में लिखी गई। यही नहीं इस घटना पर आधारित कई फिल्में भी बन चुकी हैं।