Move to Jagran APP

भारत-पाक सीमा पर 'नशेड़ी' कबूतरों का खेल

सीमा पर स्थित गांव दाउके के लोगों ने मनोरंजन को धंधा बना लिया है। ये लोग कबूतर को नशा देकर उड़ाते हैं और लाखों कमाते हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Fri, 17 Jun 2016 09:53 PM (IST)Updated: Sat, 18 Jun 2016 09:58 PM (IST)
भारत-पाक सीमा पर 'नशेड़ी' कबूतरों का खेल

अमृतसर, [अशोक नीर]। पाकिस्तान से तीन तरफ से घिरे अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित भारतीय गांव दाउके में कबूतरों का एक अनोखा खेल होता है। 225 घरों वाले इस गांव में नौजवान न सिर्फ कबूतर उड़ा कर अपना मनोरंजन करते हैं, बल्कि पैसे भी कमाते हैं। अंतरराष्ट्रीय सीमा होने के चलते यहां पाकिस्तान से हेरोइन की तस्करी भी होती है। इस खेल में शामिल कबूतरों को नशीला पदार्थ खिलाया जाता है।

loksabha election banner

जुलाई में गांव में कबूतरबाजी के शौकीनों के बीच होने वाली प्रतियोगिताओं में एक लाख से अधिक की राशि की शर्तें लगाई जाती हैं। इस शर्त को जीतने के लिए कबूतरों को साल भर ठीक से पाला जाता है। एक साथ दस से पंद्रह कबूतर उड़ाकर उन पर लाखों रुपये की शर्त लगाई जाती है।

इन कबूतरों को उड़ाने से पहले उन्हें नशीली वस्तु खिला दी जाती है, ताकि वह कई घंटे तक उड़ते रहें। माना जाता है कि इससे उनकी उडऩे की क्षमता बढ़ जाती है। जिस प्रतिभागी के कबूतर जल्दी अपने घरों को लौट आते हैं। उसी आधार पर जीत-हार का फैसला होता है।

पढ़ें : अब एसवाइएल नहर के विरोध में उतरीं पंचायतें, किया प्रदर्शन

कबूतरों के लिए खास खुराक

घरों की छतों के ऊपर कबूतरों के लिए लकड़ी के स्टैंड जगह-जगह दिखाई देते हैं। गर्मियों में उन्हें ग्राउंड फ्लोर में कच्चे फ्लोर बनाकर पाला जाता है। इनको प्रतिदिन सात तरह कर अनाज दिया जाता है, जिसमें गेहूं का दाना प्रमुख है।


मनोरंजन बन गया धंधा

गांव के जागीर सिंह ने बताया कि यहां के नौजवान बेरोजगार हैं। अब धान की बुआई का समय है। इसलिए सभी नौजवान रोजी-रोटी कमाने में व्यस्त हैं। नौजवानों ने मनोरंजन के साथ साथ कबूतरबाजी को धंधे के रूप में अपना लिया है। इन कबूतरों के नाम भी रखे होते है। जिसमें बहरा, जानसर, साइरा, बग्गा, चीना, दबाज, गाडीछीनी, लाल सिरा, लाखा, फुल रूफ व सुरखा जैसे शामिल हैं। जब कबूतर उड़ाए जाते हैं, तो सीमा के साथ सटे पाकिस्तान के एक दर्जन गांवों के लोग भी कबूतर उड़ाते हैं। इससे दोनों तरफ के कबूतर एक-दूसरे देश के गांव वालों के पास पहुंच जाते हैं। जागीर सिंह ने बताया कि लाहौर में भी कबूतरों का खेल होता है। वहां मई-जून व सितंबर-अक्टूबर में बड़ी प्रतियोगिताएं होती हैं।


एक कबूतर की कीमत चार से दस हजार

गांववासियों के पास बहुत महंगे कबूतर हैं। एक कबूतर की कीमत चार हजार से दस हजार रुपये तक होती है। इन कबूतरों के खरीददार भी पंजाब भर से यहां आते हैं। अमृतसर शहर से भी कुछ लोग इस शौक के लिए कबूतर खरीदने पहुंचते हैं। लोग पाकिस्तानी कबूतरों की मांग करते हैं। जागीर सिंह ने कहा कि पाकिस्तान के कबूतरों का रंग भारतीय कबूतरों से अलग होता है। पाकिस्तानी कबूतर की कीमत भी ज्यादा होती है। भारतीय कबूतर सस्ते भाव में मिल जाता है।

पढ़ें : ब्रिटेन ने कहा, नहीं देंगे शहीद ऊधम सिंह की रिवॉल्वर और डायरी


देर तक उड़ता है मलवई कबूतर

एक अनुमान के अनुसार इस गांव में विभिन्न घरों में एक हजार से अधिक कबूतर हैं। इसमें मलवई कबूतरों की संख्या अधिक है। ऐसा माना जाता है कि मलवई कबूतर देर तक उड़ता है। बीते दो वर्ष पूर्व रमदास में पाकिस्तान से आए कुछ कबूतर पकड़े गए थे। इन कबूतरों के पांवों में एक उर्दू से लिखा हुआ संदेश था। इन कबूतरों को पंजाब पुलिस के जवानों ने पकड़ा था। बाद में इस संदेश की जांच भी हुई थी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.