श्री करतारपुर साहिब कॉरिडोर खुलने की बंधी आस, शुरू हुई हलचल
भारत और पाकिस्तन के बीच श्री करतारपुर साहिब कॉरिडोर शीघ्र खुल जाने की उम्मीद बंधी है। पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त ने श्री करतारपुर साहिब गुरुद्वारे का दौरा किया है।
जेएनएन, अटारी बॉर्डर (अमृतसर)। भारत और पाकिस्तान के बीच श्री करतारपुर साहिब कॉरिडोर के खुलने की उम्मीद बढ़ गई है। इसको लेकर राजनयिक स्तर पर हलचल बढ़ गई है। पाकिस्तान में भारतीय उच्चायुक्त अजय बसारिया ने छह सदस्यीय दल के साथ श्री करतारपुर साहिब नारोवाल स्थित गुरुद्वारा साहिब का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने भारत से इस गुरुद्वारे तक के रास्ते का भी जायजा लिया।
पाकिस्तान में भारतीय उच्चायुक्त पहुंचे गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब
यह पहला अवसर है जब किसी भारतीय उच्चायुक्त ने वहां का दौरा किया है। बसारिया ने गुरुद्वारे में जपजी साहिब का पाठ करवाया और अरदास करवाई। इस मौके उन्होंने श्री करतारपुर साहिब गुरुद्वारे की इमारत से भारत स्थित डेरा बाबा नानक सीमा को देखा। इस मौके पर ग्रंथी भाई ग्रंथी भाई गोबिंद सिंह ने उनको गुरुद्वारे साहिब के इतिहास की जानकारी दी।
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छह सदस्यीय दल ने दोनों देशों के बीच रास्ते का लिया जायजा
गौरतलब है कि दुनिया भर की सिख संगत के सहयोग से 2019 में पाकिस्तान श्री गुरु नानक देव जी का 550वां प्रकाश पर्व मना रहा है। सिख संगत की तरफ से मांग की जा रही है कि भारत-पाकिस्तान में श्री करतारपुर साहिब कॉरिडोर खोला जाए। भारतीय उच्चायुक्त के दौरे के बाद ऐसा लगता है कि अब इस मांग को पूरी करने की दिशा में प्रयास तेज हो गए हैैं।
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बताया जाता है कि बसारिया भारत सरकार के निर्देश पर यहां पहुंचे और करतारपुर साहिब तक के रास्ते को उन्होंने देखा। गौरतलब है कि यह गुरुद्वारा भारतीय सीमा से केवल चार किलोमीटर है। गुरुद्वारा साहिब में भारतीय दल को ग्रंथी भाई गोबिंद सिंह ने सम्मानित किया। उन्होंने श्री करतारपुर साहिब नारोवाल स्थित गुरुद्वारा साहिब का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने भारत से इस गुरुद्वारे तक के रास्ते का जायजा भी लिया।
सिखों का पहला गुरुद्वारा है श्री करतारपुर साहिब, यहीं से हुई थी लंगर प्रथा की शुरुआत
भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास पाकिस्तान के जिला नारोवाल स्थित गुरुद्वारा साहिब सिख जगत का पहला गुरुद्वारा है। करतारपुर शहर की नींव भी उस समय श्री गुरुनानक देव जी ने रखी थीं। उनका जन्म भले ही ननकाना साहिब में हुआ, लेकिन उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 18 साल इसी स्थान पर बिताए और यहीं ज्योति जोत समाए थे। इतना ही नहीं, गुरुनानक देव जी ने लंगर परंपरा की शुरूआत भी यही पर की थी।