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सात लोगों को बचा हनुमान भक्त कर गया अपनी जान निसार

अमृतसर : धार्मिक विचारों वाले परिवार के संस्कारों के कारण दलबीर ¨सह गुग्गू बचपन से ही हनुमान का भक्त रहा।

By JagranEdited By: Published: Sun, 21 Oct 2018 02:37 AM (IST)Updated: Sun, 21 Oct 2018 02:37 AM (IST)
सात लोगों को बचा हनुमान भक्त  कर गया अपनी जान निसार
सात लोगों को बचा हनुमान भक्त कर गया अपनी जान निसार

नवीन राजपूत, अमृतसर

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धार्मिक विचारों वाले परिवार के संस्कारों के कारण दलबीर ¨सह गुग्गू बचपन से ही हनुमान का भक्त रहा। और यही कारण रहा कि वह दूसरों की सहायता करना अपना फर्ज समझता था। शायद अपनी इसी हनुमान जी की भक्ति के कारण दलबीर बचपन से इलाके में होने वाली रामलीला में कोई न कोई किरदार निभाता चला आ रहा था। इस बार राम लीला प्रबंधन कमेटी ने दलबीर को रावण की भूमिका अदा करने की जिम्मेदारी उसे सौंपी थी। लेकिन उसे यह नहीं पता था कि रावण जलने के दौरान उसे भी मौत अपने साथ ले जाएगी। आज दलबीर (मृत) की मां स्वर्ण कौर और पत्नी नवप्रीत कौर को मलाल है कि हनुमान भक्त दलवीर रावण का किरदार न अदा करता तो शायद जिंदा होता।

जोड़ा फाटक स्थित कृष्णा नगर की गली नंबर - 3 निवासी स्वर्ण कौर के घर के बाहर लोगों की भीड़ रही। दलबीर की आठ महीने की बच्ची बिलख रही थी। मासूम को पता नहीं था कि बचपन में ही वह अनाथ हो चुकी है। सिर से पिता का साया उठने के बाद मां नवप्रीत कौर को उसके लालन पालन में परेशानी होगी। मौके पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शी बता रहे थे कि शुक्रवार की रात रावण का किरदार निभाने के बाद दलबीर अपने दोस्तों के साथ रेलवे ट्रैक पर जलता हुआ रावण देखने पहुंच गया था। उसके दोस्त अपने-अपने मोबाइलों से जल रहे रावण की वीडियो बना रहे थे। इस बीच जालंधर-अमृतसर ट्रैक पर तेज रफ्तार डीएमयू को आता देख लिया था। ट्रैक पर भीड़ काफी थी। क्यों कि कुछ सैकेंड पहले ही वहां साथ लगते ट्रैक पर से अमृतसर-हावड़ा ट्रेन निकली थी। उसके जाते ही दर्शक घटना स्थल पर मौजूद तीनों ट्रैक पर बिखर गए। उसी दौरान डीएमयू भी पहुंच गया। डीएमयू को देखते ही दलबीर ने ट्रैक पर खड़े अपने दोस्तों को धक्का देकर वहां से हटाना शुरू कर दिया था। लेकिन उसका अपना पैर ट्रैक में फंस गया और डीएमयू ने अन्य लोगों के साथ उसे भी बुरी तरह से कुचल दिया।

मां तलाशती रही बजरंगी भक्त को ट्रैक पर

स्वर्ण कौर शुक्रवार की रात दलबीर को रेलवे ट्रैक पर तलाशती रही। आधी रात को उसे पता चला कि उसका बेटा इस दुनिया में नहीं रहा। स्वर्ण कौर की रात से ही हालत पागलों जैसी हो चुकी थी। मन ही मन उसके मन में शंकाएं पैदा होने लगी थी कि कहीं अनहोनी उसके बेटे को लील तो नहीं गई। लेकिन ईश्वर पर अटल विश्वास के कारण वह मन में उत्पन्न होने वाले प्रत्येक बुरे विचार को हटाती जा रही थी।


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