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पर्यटन व्यवसाय को मरने से बचा सकती है सरकारी संजीवनी

पौने माह चले कफ्यू और अभी के लॉकडाउन के चलते शहर के 440 छोटे—बड़े होटल बंद पड़े है। होटलों का नब्बे फीसद स्टाफ अपने घरों को चला गया है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 25 May 2020 12:33 AM (IST)Updated: Mon, 25 May 2020 06:08 AM (IST)
पर्यटन व्यवसाय को मरने से बचा  सकती है सरकारी संजीवनी
पर्यटन व्यवसाय को मरने से बचा सकती है सरकारी संजीवनी

विपिन कुमार राणा, अमृतसर

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कोरोना वायरस ने पयर्टन व्यवसाय तबाह करके रख दिया है। 22 मार्च को जनता क‌र्फ्यू से पहले ही पर्यटन व्यवसाय का अहम हिस्सा होटल इंडस्ट्री प्रभावित होनी शुरू हो गई थी। पौने दो माह चले क‌र्फ्यू और मौजूदा लॉकडाउन-4 के चलते शहर के 440 छोटे-बड़े होटल बंद पड़े हैं। होटलों का नब्बे फीसद स्टाफ अपने घरों को चला गया है। अगस्त 2020 से मार्च 2021 तक चलने वाले सीजन की फिलहाल उन्होंने कोई संभावना दिखाई नहीं दे रहे। लोकल टूरिज्म जैसी अमृतसर में कोई बात न होने की वजह से होटल इंड्रस्टी को एकमात्र सरकारी संजीवनी की ही दरकार है।

शहर की होटल इंड्रस्टी की बात करें तो वॉल्ड सिटी यानी अंदुरुण शहर में ही वाल्ड सिटी में 350 छोटे-बड़े होटल हैं, जबकि सिविल लाइन व रेलवे स्टेशन के आसपास के होटलों की संख्या 60 से 70 होटल हैं। शहर में लगभग 63 के करीब सराय हैं और इनमें सभी में लगभग 9585 कमरे हैं। देश-विदेश से गुरुनगरी में आने वाले सभी होटल श्रद्धालुओं व पर्यटकों के दम पर ही चल चलते हैं और इससे लगभग 13 हजार लोगों का परिवार पलता है। विडंबना यह है कि केंद्र सरकार द्वारा घोषित किए गए 20 हजार करोड़ के पैकेज में देश की इस महत्वपूर्ण इंडस्ट्री को नजरअंदाज कर देने से उनके समक्ष वजूद का संकट खड़ा हो गया है। अपना वजूद बचान के लिए होटल इंड्रस्टी से जुड़ी एसोसिएशन प्रधानमंत्री कार्यालय, वित्त मंत्री तक अपनी मांगों को पहुंचा चुके हैं, लेकिन अभी तक न तो केंद्र सरकार और न ही प्रदेश सरकार ने उनकी सुनवाई की है। बंद होटलों को पड़ रही सरकार की मार

22 मार्च को जनता क‌र्फ्यू से पहले ही कोरोना संक्रमण के चलते पयर्टकों की आमद नाममात्र की होने शुरू हो गई थी। अब जब होटल इंड्रस्टी बिल्कुल बंद पड़ी हुई है और सरकार सुध नहीं ले रही, ऐसे में सरकारी खर्च ही उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती बने हुए हैं। इंडस्ट्री पर किन सरकारी खर्चो का भार है, उनकी सरकार से कुछ इस कदर उम्मीदें हैं..

—होटल बंद पड़े होने के बावजूद बिजली विभाग के उन्हें फिक्सड चार्जेस देने पड़ रहे हैं। जबकि होटलों में बिजली की लागत न के बराबर हुई पड़ी है। ऐसे में वह इसमें सरकार से रिलीफ चाहते है।

—एक्साइज ड्यूटी में भी कम से कम छह माह की उन्हें राहत की दरकार है। बार बंद पड़े हैं और खुलते भी हैं तो डरे लोग आने को फिलहाल तैयार नहीं है। ऐसे में वार्षिक एक्साइज ड्यूटी भी उन पर किसी भार से कम नहीं है।

—निकाय विभाग से संबंधित प्रॉपर्टी टैक्स, कंजरवेंसी टैक्स, वाटर सप्लाई व सीवरेज चार्जिज, कूड़े की लिफ्टिंग के यूजर चार्जेस आदि भी इस समय बिना किसी आमदन के उन पर भार बने हुए हैं।

—फूड एंड सेफ्टी स्टैंडर्ड अथारिटी आफ इंडिया व पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की वार्षिक रिन्यूवल भी इस विकट खड़ी में उन्हें परेशान कर रही है। होटल इंड्रस्टी के समक्ष वजूद का संकट

कोरोना संक्रमण में लंबा लॉकडाउन झेल रही होटल इंड्रस्टी इस समय वजूद की लड़ाई लड़ रही है। जैसे तैसे छोटे-बड़े होटल वालों ने मार्च-अप्रैल का वेतन तो कर्मचारियों को दे दिया है, पर मई के बाद उनके लिए भी यह चुनौती से कम नहीं है। यही वजह है कि उन्होंने स्टाफ को घर भेजना ही उचित समझा है। इतना ही नहीं लीज पर चल रहे होटलों में विवाद उठने शुरू हो गए हैं और सूत्रों के मुताबिक इस वित्तीय वर्ष के लिए हुई डीलिग एडवांस के साथ ही खत्म हो गई है और कइयों ने किराया न भर पाने के कारण लीज एग्रीमेंट ही वापस कर दिए हैं। टेक- अवे व होम डिलीवरी पर ढाबे-रेस्टोरेंट

गुरुनगरी वर्तमान में पयर्टन की हब बना हुआ है। ऐसे में उससे जुड़े तमाम कारोबार भी प्रभावित हो रहे हैं। पर्यटकों की आमद जीरो हो गई है और शारीरिक दूरी नियम को लागू करना कठिन होने की वजह से अभी तक प्रशासन ने पयर्टन स्थलों पार्टिशिन म्यूजियम, वार मेमोरियल, साडा पिड, किला गोबिदगढ़, अटारी बार्डर पर रिट्रीट सेरेमनी खोलने का निर्णय नहीं लिया है। यही आलम होटल इंड्रस्टी को लेकर भी है। विदेश से आने वाले लोगों को होटलों में क्वारंटाइन करने का प्रावधान तो किया गया है, पर वह भी इंड्रस्टी को घाटे वाला सौदा लग रहा है। रियायत न मिली तो नहीं बचेगा पर्यटन व्यवसाय

कोविड-19 में लॉकडाउन जरूरी था, पर इससे पर्यटन व्यवसाय खत्म होकर रह गया है। पर्यटकों की आमद खत्म होने से नब्बे फीसद संस्थान बंद पड़े है ओर स्टाफ जा चुका है। ऐसे में सरकार खर्चे को लेकर हम सरकार से माफी नहीं चाहते, पर सरकार अगर हमें उनमें ही रियायत कर दे तो यह इंड्रस्टी बची रहेगी, वर्ना इसे बचाना मुश्किल हो जाएगा।

—पीयूश कपूर, महासचिव अमृतसर होटल एंड रेस्टोरमेंट एसोसिएशन

सीजन तो दूर अपना आप बचाना मुश्किल

मई महीने की बात करें तो यह पीक सीजनों में से एक माना जाता है। वर्तमान में शहर पूरी तरह से खाली पड़ा हुआ है और पर्यटन की निकट भविष्य में भी कोई संभावना नहीं दिख रही। होटल वालों के लिए अपना बचा हुआ स्टाफ तक बचाना मुश्किल हुआ पड़ा है। अगर यह क्रम ओर लंबा चला तो यह इंडस्ट्री तबाह हो जाएगी।

—सुरिदर सिंह गांधी, प्रधान फेडरेशन आफ होटल एंड गेस्ट हाउस एसोसिएशन

दुकानें खुली हैं, पर कोई पर्यटक नहीं

श्री दरबार साहिब और वाल्ड सिटी की दुकानदारी देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों पर ही निर्भर करती है। प्रशासन ने चाहे जोन बनाकर दुकानें खोलने को तो कह दिया है, लेकिन दुकानें खुलने से हमारा खर्चा बढ़ा है, आमदन नहीं। नाममात्र के ही पर्यटक भी नहीं है, ऐसे में बिक्री का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।

—परमिदर राजा, डायरेक्टर मुटियार पंजाबी जुत्ती टेक-अवे, होम डिलीवरी ही सराहना

होटल इंड्रस्टी के साथ ही रेस्टोरेंट व ढाबे चलते है। पर्यटक की आमद बंद होने से ढाबे-रेस्टोरेंट वालों के लिए अपना व्यवसाय बचाना भी मुश्किल हुआ पड़ा है। बचे खुचे स्टाफ को बचाने के लिए टेक-अवे व होम डिलीवरी जैसे विकल्पों का सहारा लेना पड़ रहा है, पर उसमें भी जितने ऑर्डर आ रहे हैं, उससे भी आय तो दूर खर्चे निकालने भी मुश्किल है।

—कुलदीप ठाकुर बंटी, मालिक फौजी ढाबा


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