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शहीदों की चिताओं पर लगे मेले, लेकिन इन सपूतों के परिवार रह गए अकेले

शहीदों की चिताओं पर मेले लगे लेकिन उनके परिवार उपेक्षित रह गए। जलियांवालाबाग में नरसंहार के सौ साल पूरे होने पर शताब्‍दी श्रद्धांजलि समारोह में शहीदों के परिवार उप‍ेक्षित रह गए।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sun, 14 Apr 2019 11:54 AM (IST)Updated: Sun, 14 Apr 2019 11:54 AM (IST)
शहीदों की चिताओं पर लगे मेले, लेकिन इन सपूतों के परिवार रह गए अकेले
शहीदों की चिताओं पर लगे मेले, लेकिन इन सपूतों के परिवार रह गए अकेले

अमृतसर, [नितिन धीमान]। शहीदों की चिताओं पर मेले तो लगे, पर शहीदों के परिवार यहां रह गए अकेले। शहीदी स्थल जलियांवाला बाग नरसंहार के शताब्दी समारोह में पहुंचे शहीदों के परिवारों को समारोह स्थल के भीतर जाने की आज्ञा नहीं दी गई। ये परिवार अपने शहीद पूर्वजों की फोटो लेकर समारोह में शामिल होने आए थे, लेकिन कड़ी सुरक्षा की वजह से इन्हें पंडाल में जाने नहीं दिया गया। गुस्साए परिजनों ने आयोजन स्थल के बाहर खड़े होकर वंदेमातरम् और भारत माता की जय के नारे लगाए।

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शहीदों के परिवारों को पंडाल से बाहर खड़े रखा, रामजस मल्ल के पौत्र सहित कई को नहीं मिली जगह

दरअसल, शनिवार दोपहर तकरीबन सवा तीन बजे उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू और पंजाब के राज्यपाल बीपी बदनौर सहित अन्य नेता पंडाल में पहुंचे। इन नेताओं के आगमन से पूर्व ही शहीदों के परिवार भी यहां आ चुके थे। पंडाल के दूसरे हिस्से में लोगों के बैठने के लिए बिछाए गए गद्दे पूरी तरह भर चुके थे। इसी बीच दिल्ली से आए मनीष खन्ना वीवीआइपी पंडाल में जाने लगे, पर सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें रोक दिया।

बोले- शहादत का क्या यही सिला है, वोट बैंक की राजनीति करने आए हैं राजनेता

मनीष खन्ना ने बताया कि उनके दादा रामजस मल्ल जलियांवाला बाग नरसंहार में गोलियों का शिकार बने थे, लेकिन सुरक्षा कर्मचारियों ने साफ किया कि उपराष्ट्रपति के पंडाल में केवल वही व्यक्ति जा सकता है जिसका नाम उनकी सूची में है। यह सूची सरकार द्वारा ही तय की गई है। इस पर मनीष खन्ना ने अपना विरोध दर्ज करवाया। उन्होंने 'वंदेमातरम्' और 'भारत माता की जय' के घोष किए।

'यह शहीदों का सम्मान नहीं, राजनीति से प्रेरित ड्रामा है'

'' यह शहीदों का सम्मान नहीं राजनीति से प्रेरित ड्रामा है। मैं दिल्ली से अमृतसर आया हूं। घर जाकर अपने बच्चों को क्या जवाब दूंगा कि मुझे आयोजन स्थल तक जाने ही नहीं दिया गया। कैसे अपने बच्चों को देशभक्ति का पाठ पढ़ाऊंगा। यह वह धरती है जहां अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की चिंगारी फूटी। इस धरती में राष्ट्रभक्ति का भाव उत्पन्न होता है। दुखद कि सरकारें हमारा गला घोंटना चाहती हैं। ये नेता राष्ट्रभक्ति की बातें करते हैं, पर शहीदों के परिवारों को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखतीं।

                                                                - मनीष खन्ना, गोलीकांड में घायल हुए रामजस मल्ल के पौत्र।

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'हम पहले अंग्रेजों के गुलाम थे, आज अपनों के'

'' राजनीतिज्ञों को अंदर जाने दिया गया और शहीदों के परिवारों को इधर से उधर भगाया गया। पुलिसकर्मियों के के पास गए तो वे एसडीएम से बात करने को कहते रहे। एसडीएम के पास गए तो वह पुलिस के पास भेज देते थे। जलियांवाला बाग में हमारा जो तिरस्कार हुआ, उससे साफ है कि ताकत वालों की मर्जी चलती है।  हम पहले अंग्रेजों के गुलाम थे और आज अपनों के।

                                                                                  - टेकचंद, नरसंहार में शहीद हुए खुशीराम के पौत्र।

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हमने समारोह के बाद दी अपनों को श्रद्धांजलि : बहल

'' हमने इस समारोह का बायकाट किया। जलियांवाला बाग हमारे पूर्वजों के खून से सिंचित है। इसका कण-कण बलिदान की गाथा का वर्णन करता है। हमने उपराष्ट्रपति के जाने के बाद शहीदों को श्रद्धांजलि दी क्योंकि चारों तरफ सुरक्षा कर्मचारी थे। शहीदों के परिवारों के लिए न कुर्सियां हैं और न ही पानी की व्यवस्था। हम सुबह से जलियांवाला बाग में अपने बुजुर्गों को नमन करने आए थे।

                                                                      - ननिश बहल, नरसंहार में शहीद हुए रहिराम बहल के पौत्र।

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फूट-फूट कर रोई रचना, चिल्लाती रही-साहब मेरी बात सुन लें

स्वतंत्रता सेनानी चुन्नीलाल झंडेवाला की बेटी रचना भी जलियांवाला बाग पहुंची थीं। जैसे ही आयोजन खत्म हुआ, रचना ने जोर से चिल्लाकर उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को रुकने को कहा। रचना ने कहा-साहब एक बार मेरी बात सुन लीजिए। हालांकि सुरक्षा कर्मचारी बड़ी तेजी से उपराष्ट्रपति को आयोजन स्थल से बाहर ले जा चुके थे। अमृतसर के छेहरटा में रहने वाली रचना फूट-फूट कर रोने लगी।

उसने बताया कि पिताजी ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। एक साल जेल भी काटी। इसके बाद वह भयानक रूप से बीमार पड़ गए। दस साल तक उनका इलाज चला और अंतत: उन्होंने दम तोड़ दिया। पिताजी की मृत्यु के पश्चात हमारा परिवार मुफलिसी में जिंदगी जीता रहा। मैं उपराष्ट्रपति से यह मांग करना चाहती थी कि उसे या उसके पारिवारिक सदस्य को नौकरी पर लगवा दें, पर मेरी सुनी नहीं गई। इसी बीच पूर्व स्थानीय निकाय मंत्री अनिल जोशी ने रचना के पास आकर उसकी बात सुनी। आश्वासन दिया कि वह परिवार के लिए कुछ जरूर करेंगे।


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