'प्लास्टिक बेबी' का जन्म, सब रह गए दंग, मुस्कुराने पर फटने लगती है त्वचा
अमृतसर में एक अद्भूत प्लास्टिक बच्ची का जन्म हुआ है। इस बच्ची के शरीर पर जन्म से प्लास्टिक जैसा आवरण चढ़ा हुआ है। वह हंसती है या रोती है तो उसकी त्वचा फटने लगती है।
अमृतसर, [नितिन धीमान]। आपने प्लास्टिक की गुड़िया देखी होगी लेकिन अमृतसर में एक 'प्लास्टिक बेबी' ने जन्म लिया है। इस अद्भुत बच्ची की त्वचा पर प्लास्टिक जैसा आवरण चढ़ा है। वह हंसती या रोती है तो उसके मुंह के आसपास की त्वचा फटने लगती है। इस बच्ची को देखकर लोग दंग हैं। डॉक्टरों के अनुसार वह दुर्लभ कोलोडियन बीमारी से ग्रस्त है। बच्ची को जन्म देने के बाद उसकी मां रेडक्रास भवन में छोड़कर चली गई थी।
दुर्लभ कोलोडियन बीमारी से ग्रस्त है बच्ची, मां जन्म देने के बाद मां छोड़ कर चली गई
डॉक्टरों का कहना है कि कोलोडियन बीमारी जेनेटिक डिसऑर्डर के कारण होती है। दुनिया भर में छह लाख बच्चे के जन्म पर एक ऐसा बच्चा पैदा होता है। जिंदगी और मौत से जद्दोजहद कर रही यह बच्ची जिला प्रशासन द्वारा संचालित रेडक्रॉस भवन में पंगूड़े (पालना) से मिली है।
दरअसल, एक महिला जन्म देने के बाद इस बच्ची को पंगूड़े में छोड़कर चली गई। रेडक्रॉस के स्टाफ ने बच्ची की किलकारियां सुनीं तो पंगूड़े तक पहुंचे। बच्ची की शक्ल सूरत देखकर स्टाफ भी हैरान रह गया। उसके चेहरे से लेकर पैरों तक प्लास्टिक रूपी आवरण चढ़ा हुआ था। देखने में वह एक डॉलफिन की तरह लग रही थी।
रेडक्रॉस भवन के कर्मचारियों के अनुसार बच्ची को छूने पर वह रोने लगती है। उसकी आंखें और होंठ सुर्ख लाल हैं। रेडक्रॉस स्टाफ ने उसे बाइपास स्थित एक निजी अस्पताल में दाखिल करवाया है। वहां उसका ट्रीटमेंट जारी है। जिला प्रशासन ने बच्ची की निगरानी के लिए डॉक्टरों को हिदायतें जारी कर दी हैं।
यह कोलोडियन बीमारी
वर्ष 2014 व 2017 में अमृतसर मे दो कोलोडियन बच्चों का जन्म हुआ था। दुर्भाग्यवश दोनों की चंद दिनों बाद ही मौत हो गई थी। चिकित्सा जगत में हुई शोध के अनुसार कोलोडियन बेबी का जन्म जेनेटिक डिस्आॅर्डर की वजह से होता है। ऐसे बच्चों की त्वचा में संक्रमण होता है। कोलोडियन बेबी का जन्म क्रोमोसोम (शुक्राणुओं) में गड़बड़ी की वजह से होता है।
सामान्यतः महिला व पुरुष में 23-23 क्रोमोसोम पाए जाते हैं। यदि दोनों के क्रोमोसोम संक्रमित हों तो पैदा होने वाला बच्चा कोलोडियन हो सकता है। इस रोग में बच्चे के पूरे शरीर पर प्लास्टिक की परत चढ़ जाती है। धीरे-धीरे यह परत फटने लगती है और असहनीय दर्द होता है।
यदि संक्रमण बढ़ा तो उसका जीवन बचा पाना मुश्किल होगा। कई मामलों में ऐसे बच्चे दस दिन के भीतर प्लास्टिक रूपी आवरण छोड़ देते हैं। इससे ग्रसित 10 प्रतिशत बच्चे पूरी तरह से ठीक हो पाते हैं। उनकी चमड़ी सख्त हो जाती है और इसी तरह जीवन जीना पड़ता है।