शहर के साहित्यकारों ने रखी राय, बेरोजगारी की समस्या हल करने वालों की ही करें वोट
विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के प्रत्याशियों ने अपने-अपने स्तर पर वोटरों को वादों से आकर्षित करना शुरु कर दिया है
जासं, अमृतसर: राज्य में चुनाव आचार संहिता लागू होते ही विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के प्रत्याशियों ने अपने-अपने स्तर पर वोटरों को वादों से आकर्षित करना शुरु कर दिया है, जोकि आचार संहिता लागू से पहले ही जारी था।वर्तमान समय में शहर के साहित्यकारों का कहना है कि बेरोजगारी आज के समय में बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है। रोजगार नहीं होने के कारण युवा विदेश जा रहे हैं। ऐसे में उसी पार्टी के उम्मीदवारों को वोट करनी चाहिए जो बेरोजगारी की समस्या हल करने में सहयोग करें और रोजगार के साधन पैदा करने पर फोकस रखें ताकि युवाओं को रोजगार के लिए विदेश की ओर रुख न करना पड़े। राजनीतिक पार्टियों के मुफ्तखोरी के वादों में आकर वोट नहीं डालना चाहिए, जोकि अपनी वोट को बेचने के बराबर है। चुनावी दिनों में मुफ्तखोरी का भ्रम फैलाने वाले लोगों की बातों में फंसने की बजाय उन्हें नेताओं द्वारा मिले आश्वासनों के खिलाफ असलियत का शीशा दिखाना चाहिए।
दीप दविदर सिंह, साहित्यकार आम लोगों को पढ़ी-लीखी पीढ़ी के साथ हर चुनाव में होने वाले शोषण को जरूर ध्यान में रखना चाहिए। कई राजनीतिक दलों ने सरकारी रोजगार को खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। युवाओं को काम नहीं मिलने के कारण विदेश में धक्के खाने के लिए मजबूर किया है।
देव दर्द, साहित्यकार पंजाब वसदा गुरां दे नाम के जैसे संयुक्त सभ्याचार में जीवन जीने वाले पंजाब वासियों को नशे के छठे दरिया में धकेला गया है। रिवायती राजनीतिक पार्टियों के नेताओं की पहचान करनी चाहिए, ताकि देश को तरक्की के मार्ग से रोकने वाले सफेदपोश चेहरे नंगे हों।
डा. शैली जग्गी, साहित्यकार वोट के हक का इस्तेमाल करते हुए हम अपने आने वाले पांच साल का भविष्य निर्धारित करते हैं। अपने व अपनों के भविष्य को संवारने के मकसद से मिले अवसर का सही ढंग से इस्तेमाल करें। जो बेरोजगारी की समस्या का हल करे, उसे ही वोट करनी चाहिए।
मलविदर, साहित्यकार वोट का इस्तेमाल करते हुए हमें उन लोगों को नकारना चाहिए, जोकि देश व समाज में बसने वाले लोगों की मां बोली के साथ दुश्मनी करके द्रोह कमाते हों। संविधान ने हमें एकता के सूत्र में पिरोकर रखा है, जिसके लिए हर धर्म और जाति का सम्मान होना चाहिए।
पूनम शर्मा, साहित्यकार जो लोग गली-मोहल्ले में नशाखोरी व पैसे के साथ-साथ किसी अन्य ढंग से भ्रमित करके वोट हासिल करना चाहते हैं, उन्हें कभी लालच में आकर मुंह नहीं लगाना चाहिए। चुनावी दिनों में नशे के साथ-साथ पैसे बांटकर कुर्सी पर बैठने वाले लोगों को नकारें।
सर्गी, साहित्यकार