पंजाब के कृषि विशेषज्ञ एसएस छीना बोले- कांट्रैक्ट फसल का होना है, जमीन का नहीं
पंजाब में केंद्र सरकार के कृषि कानूनों पर हंगामा मचा हुआ है। कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल ने किसान संगठनों के साथ इसके विरोध में मोर्चा खोल रखा है। इसके बीच कृषि विशेषज्ञ एसएस छीना ने कहा है कि कांट्रैक्ट फसल का होना है जमीन का नहीं।
अमृतसर, जेएनएन। पंजाब में केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनोंपर सियासी घमासान मचा हुआ है। किसान संगठनों के साथ कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल सड़कों पर हैं। ये दल और संगठन कांट्रैक्ट खेती को लेकर अपनी चिंता जता रहे हैं। इन सबके बीच राज्य के कृषि विशेषज्ञ किसानों की चिंता से मुक्त होने की सीख दे रहे हैं। अमृतसर के खालसा एग्रीकल्चर कॉलेज के पूर्व डीन (फैकल्टी ऑफ एग्रीकल्चर) डाॅ. एसएस छीना का कहना है कि कांटैक्ट खेती को लेकर टेंशन लेने की जरूरत नहीं है। कांट्रैक्ट फसल का होगा न कि जमीन का।
कांट्रैक्ट खेती को लेकर किसानों को भ्रमित किया जा रहा है
डॉ. छीना का कहना है कि कुछ कानूनी सुधार हो जाएं तो कांट्रैक्ट फार्मिग के कई फायदे हैं। नए कृषि कानूनों को गहराई से समझने की जरूरत है। इसे लेकर भ्रम के हालात तो बने हुए हैं। इन्हें जिन मायनों में समझा जा रहा है, वह ठीक नहीं है। न तो सरकार एमएसपी खत्म कर सकती हैं और न ही सरकारी खरीद। खरीद में प्राइवेट कांट्रैक्टर की सहभागिता हो सकती है, जो पहले से ही जारी है। पंजाब में ज्यादा पैदावार गेहूं व धान की ही है, इसलिए इसमें सरकार की भूमिका जरूरी है।
एमएसपी व सरकारी खरीद खत्म नहीं हो सकती
उनका कहना है कि सरकार की भूमिका रहेगी तो एमएसपी भी रहेगा और सरकारी खरीद भी होती रहेगी। केंद्र सरकार की मंशा किसानों की आय दोगुना करने की है। इसके लिए प्रयास हुए हैं, लेकिन इसमें समझने वाली बात यह है कि 60 फीसद किसान 14 फीसद जीडीपी में अपना हिस्सा डालते हैं। अगर आय बढ़ानी है तो वैकल्पिक खेती को बढ़ावा देना होगा। परंपरागत गेहूं व धान की खेती छोड़कर कृषि से जुड़े सहायक धंधों को अपनाना होगा। कर्ज और आत्महत्याओं का कारण भी यही है।
उन्होंने कहा कि कांट्रैक्ट फार्मिग को लेकर भी भ्रमित किया जा रहा है कि इससे किसानों की जमीन मल्टीनेशनल कंपनियां व बड़े घरानों के यहां गिरवी हो जाएगी, जबकि कांट्रैक्ट फार्मिग में फसल का कांट्रैक्ट होना है न कि जमीन का। विदेश में कांट्रैक्ट फार्मिग का पैट्रन बहुत सफल है। इसके कानूनी पहलुओं में थोड़ा सुधार करके ज्यादा लाभ लिया जा सकता है। आढ़तियों की भूमिका खत्म करने की बात भी व्यावहारिक नहीं है।
डॉ. छीना ने कहा कि फसल की खरीद-बेच के लिए कोई न कोई तो मिडिलमैन चाहिए ही।ओपन मार्केट व ई-ट्रेडिंग अभी दूर की बातदेश के 86 फीसद किसान पांच एकड़ व 74 फीसद किसान ढाई एकड़ जमीन से कम वाले हैं। अभी किसान ओपन मार्केट के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं। वह पुराने व परंपरागत पैट्रन से बंधे हैं। वे अपनी पुरानी मार्केट के अलावा दूसरी मार्केट में जाने को तैयार नहीं हैं, ऐसे में ओपन मार्केट की सोच विकसित करने में अभी समय लगेगा। ई-ट्रेडिंग कामर्शियल फसलों के लिए ज्यादा लाभदायक है।