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अव्यवस्था या सख्ती? दिव्यांगों व कैंसर का शिकार कर्मचारियों को नहीं मिली इलेक्शन ड्यूटी से मुक्ति

अमृतसर यह जिला प्रशासन की अव्यवस्था है या फिर चुनाव आयोग की सख्ती कि लोकसभा चुनाव संपन्न करवाने के लिए उन सरकारी कर्मचारियों की इलेक्शन ड्यूटी लगा दी गई जो दिव्यांग बीमार व कैंसर जैसे गंभीर रोग का शिकार हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 01 May 2019 12:39 AM (IST)Updated: Wed, 01 May 2019 12:39 AM (IST)
अव्यवस्था या सख्ती? दिव्यांगों व कैंसर का शिकार  
कर्मचारियों को नहीं मिली इलेक्शन ड्यूटी से मुक्ति
अव्यवस्था या सख्ती? दिव्यांगों व कैंसर का शिकार कर्मचारियों को नहीं मिली इलेक्शन ड्यूटी से मुक्ति

— कैंसर का शिकार दो महिलाएं, छह गर्भवती महिलाओं सहित 200 से ज्यादा सरकारी कर्मचारी ने इलेक्शन ड्यूटी कटवाने की लगाई गुहार

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— इलेक्शन ड्यूटी कटवाने के अंतिम दिन प्रशासनिक अधिकारी सिविल सर्जन कार्यालय नहीं पहुंचे

— ऐसे में 200 से अधिक सरकारी कर्मचारियों के मेडिकल सर्टिफिकेट की नहीं हुई जांच

फोटो — 69 से 72

नितिन धीमान, अमृतसर

यह जिला प्रशासन की अव्यवस्था है या फिर चुनाव आयोग की सख्ती कि लोकसभा चुनाव संपन्न करवाने के लिए उन सरकारी कर्मचारियों की इलेक्शन ड्यूटी लगा दी गई जो दिव्यांग, बीमार व कैंसर जैसे गंभीर रोग का शिकार हैं। ये सरकारी कर्मचारी मंगलवार को सिविल सर्जन कार्यालय में सुबह से लेकर शाम तक बैठे रहे। इलेक्शन ड्यूटी कटवाने की गुहार लगाते रहे, पर किसी ने इनकी करुणामयी पुकार नहीं सुनी। केस— 1 सर! मैं 100 प्रतिशत दिव्यांग हूं। वॉकर के सहारे बड़ी मुश्किल से चल पाता हूं। मेरी इलेक्शन ड्यूटी लगा दी गई है। मुझ पर रहम कीजिए। सिविल सर्जन कार्यालय में अपनी बीमारी का हवाला देकर इलेक्शन ड्यूटी कटवाने की गुहार लगा रहे नगर निगम में कार्यरत भूपिदर सिंह ने कहा कि उन्हें स्पाइनल कोड इंजरी है। वह न तो चल सकते हैं और दिमागी रूप से भी ठीक नहीं। केस — 2

डाक विभाग में कार्यरत सतनाम सिंह के हाथ में मेडिकल सर्टिफिकेट था। इस सर्टिफिकेट पर उन्हें 100 प्रतिशत दृष्टिहीन बताया गया था। सतनाम के अनुसार उन्हें कुछ दिखता नहीं। डाक विभाग के अधिकारियों ने जिला प्रशासन को लिखकर भेजा था कि मैं दृष्टिहीन हूं, इसके बावजूद मुझे इलेक्शन ड्यूटी में झोंक दिया गया। केस — 3 शिक्षा विभाग में कार्यरत एक महिला कर्मचारी कैंसर रोग से पीड़ित है। सिविल सर्जन कार्यालय में पहुंची इस महिला कर्मचारी ने अपनी बीमारी का हवाला देते हुए अधिकारियों से कहा कि उसे नियमित रूप से कीमोथैरेपी करवाने जाना पड़ता है। 18 दिन तक इलेक्शन ड्यूटी करना उनके लिए संभव नहीं। ऐसे अनेकानेक कर्मचारी थे जो हाइपरटेंशन, हृदय रोग, क्रोनिक डिजीज आदि के शिकार भी थे। सिविल सर्जन कार्यालय में पहुंचे तकरीबन 200 सरकारी कर्मचारियों ने मेडिकल सर्टिफिकेट दिखाते हुए चुनावी ड्यूटी से मुक्ति पाने की गुहार लगाई, पर जिला प्रशासन द्वारा गठित की गई कमेटी के सदस्य सिविल सर्जन कार्यालय नहीं पहुंचे। ऐसे में ये कर्मचारी सुबह आठ बजे से शाम पांच बजे तक सिविल सर्जन कार्यालय के बाहर खड़े रहे। सिविल सर्जन डॉ. हरदीप सिंह घई ने कमेटी में शामिल अधिकारियों को फोन किया तो उन्हें बताया गया कि इलेक्शन ड्यूटी का रोस्टर बन चुका हूं, इसलिए आज किसी भी मेडिकल सर्टिफिकेट की जांच नहीं होगी। जिन कर्मचारियों की सूची जिला प्रशासन द्वारा भेजी गई है, उन्हें इलेक्शन ड्यूटी करनी ही पड़ेगी। गर्भवती महिलाओं को भी इलेक्शन ड्यूटी में झोंका

जिला प्रशासन ने चुनावी ड्यूटी में छह गर्भवती महिलाओं को भी झोंक दिया। सिविल सर्जन कार्यालय में पहुंचीं दो महिला कर्मचारी तो नौ माह की गर्भवती थीं। इनकी डिलीवरी का समय भी निकट है। इसी प्रकार तीन महिला कर्मचारी ऐसी थीं जिनकी दो से तीन माह पूर्व डिलीवरी हुई थी और वे मैटरनिटी लीव पर चल रही थीं। इन महिलाओं को भी इलेक्शन ड्यूटी में झोंक दिया गया। कमेटी के सदस्य नहीं पहुंचे सिविल सर्जन कार्यालय

जिला प्रशासन को शंका थी कि इलेक्शन ड्यूटी कटवाने के लिए सरकारी कर्मचारी मेडिकल सर्टिफिकेट प्रस्तुत करेंगे। यही वजह है कि इन सर्टिफिकेट्स की जांच के लिए जिला प्रशासन ने बीते सप्ताह सिविल सर्जन के नेतृत्व में कमेटी का गठन किया था। कमेटी में सिविल सर्जन, डिस्ट्रिक्ट वेलफेयर ऑफिसर, डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम ऑफिसर व डिस्ट्रिक्ट स्माल सेविग ऑफिसर को शामिल किया गया था। वहीं मंगलवार को सिविल सर्जन के अतिरिक्त कमेटी के सदस्य सिविल सर्जन कार्यालय नहीं पहुंचे। ऐसे में दिव्यांग और अन्य बीमारियों से पीड़ित सरकारी कर्मचारियों को इलेक्शन ड्यूटी से मुक्ति नहीं मिल पाई। इन कर्मचारियों ने इसका विरोध भी दर्ज करवाया, पर उनकी एक न सुनी गई। यह है प्रक्रिया

इस बार प्रशासन ने सरकारी विभागों में कार्यरत उन कर्मचारियों की सूची मंगवाई थी सरकारी वेतनभोगी हैं। चाहे वे स्थायी हैं, ठेके की नौकरी कर रहे हैं या फिर आउटसोर्सिंग के तहत रखे गए हैं। यह नहीं कहा गया कि दिव्यांगों, बीमारों का नाम सूचीबद्ध न किया जाए। यही वजह है कि सभी सरकारी विभागों से जो सूची भेजी गई उसमें एक—एक कर्मचारी का नाम दर्ज कर दिया गया। बॉक्स.

इसी बीच सिविल सर्जन डॉ. हरदीप सिंह घई ने एडीसी हिमांशु अग्रवाल को फोन कर सारी स्थिति की जानकारी दी। डॉ. घई ने कहा कि यह 'जेनुअन 'केस हैं, पर एडीसी ने साफ कहा कि अब ड्यूटी रोस्टर बन चुका है। कोट: वीरवार व शुक्रवार को विचार करेगी कमेटी

इलेक्शन ड्यूटी में कटौती बहुत मुश्किल हैं। हमने पहले ही साफ कर दिया था कि यदि कोई मुलाजिम ड्यूटी कटवाना चाहता है तो वह 19 अप्रैल तक संपर्क करे। अब कर्मचारी हर रोज ड्यूटी कटवाने के लिए आ रहे हैं। फिलहाल हमने इसके लिए वीरवार व शुक्रवार का दिन तय किया है। इन दो दिनों में शाम चार से पांच बजे तक सरकारी अपनी ड्यूटी करवाने के लिए आ सकते हैं। इस दौरान उन्हें कर्मचारियों को राहत दी जाएगी जो गंभीर रूप से बीमार हैं अथवा गर्भवती महिलाएं हैं। जो लोग सिफारिश करवाकर ड्यूटी कटवाने की कोशिश करेंगे, उनके खिलाफ सख्त एक्शन होगा।

— हिमांशु अग्रवाल

एडीसी।


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