बीआरटीएस प्रोजेक्ट हर माह झेल रहा 80 लाख का घाटा, आमदनी नाममात्र
। देश में बेस्ट प्रोजेक्ट का खिताब हासिल कर चुका बीआरटीएस लगातार घाटा सहन कर रहा है। मौजूदा समय में 58 बसें अलग-अलग रूटों पर चल रही हैं।
जागरण संवाददाता, अमृतसर
देश में बेस्ट प्रोजेक्ट का खिताब हासिल कर चुका बीआरटीएस लगातार घाटा सहन कर रहा है। मौजूदा समय में 58 बसें अलग-अलग रूटों पर चल रही हैं। जिनमें रोजाना 1.60 लाख रुपये की डीजल खपत हो रहा है। इसके अलावा प्रोजेक्ट में 300 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं। इनका भी हर महीने 35 लाख रुपये वेतन बनता है। यह दोनों ही खर्च निकाल पाना सरकार के समक्ष एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। आसान शब्दों में कहें तो हर महीने करीब 80 लाख का खर्च हो रहा है। जबकि आमदनी नाममात्र है। जिस कारण विभाग में इसे बंद करने को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। हालांकि प्रोजेक्ट बंद करने संबंधी पंजाब बस मेट्रो सोसायटी का कोई भी अधिकारी पुष्टि नहीं कर रहा है।
मौजूदा समय में हालात यह हैं कि कोरोना के कारण यात्री भी अब बसों में सफर करने से परहेज कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि केवल बीआरटीएस बसें, बल्कि अन्य प्राइवेट चलने वाली मिनी बसों में भी यात्रियों की संख्या में कमी आई है। ट्रांसपोर्टर लाली रंधावा का कहना है कि फिलहाल कोरोना के कारण ज्यादा यात्री सफर से गुरेज कर रहे हैं। जिस कारण बस ऑप्रेटरों को काफी नुकसान झेलना पड़ रहा है। वेतन की जगह अब दिहाड़ी के हिसाब से मिल रहे पैसे
बीआरटीएस प्रोजेक्ट के अंतर्गत 300 से ज्यादा मुलाजिम काम करते हैं। इनमें ड्राइवर, टिकट काउंटर वाले, सुरक्षा गार्ड आदि शामिल हैं। सभी का महीने का वेतन करीब 35 लाख रुपये के करीब बनता है। मगर लॉकडाउन के बाद से किसी को वेतन नहीं दिया गया। इसी बात को लेकर बीते सोमवार को भी कर्मचारी धरने पर बैठे थे। अब कर्मचारियों को पक्के तौर पर वेतन की बजाए प्रतिदिन की दिहाड़ी के हिसाब से पैसे देने तय हुए हैं। इससे पहले ड्राइवर को 12800 रुपये प्रति माह वेतन मिलता था। मगर अब उनका प्रतिदिन का 409 रुपये के हिसाब से वेतन बन रहा है। इसी तरह अन्य श्रेणियों के कर्मचारियों का अलग-अलग स्केल है। 84 की जगह चलाई जा रही 58 बसें
प्रोजेक्ट में कुल 93 बसें हैं। इनमें से 84 को अलग-अलग रूट पर उतारा जाता है। मगर लॉकडाउन खुलने के बाद पहले 40 बसें चलाई गई थी। बाद में इनकी संख्या 72 कर दी। अब घाटा देखते हुए संख्या कम कर 58 कर दी है। इन बसों में करीब 1.60 लाख रुपये का प्रतिदिन का डीजल खपत हो रहा है। केवल रविवार को बसें डिपो में खड़ी रहती हैं।
कब शुरू हुआ था प्रोजेक्ट
बीआरटीएस प्रोजेक्ट अकाली सरकार के समय शुरू हुआ था। करीब 650 करोड़ रुपये की लागत के इस प्रोजेक्ट को अकाली सरकार ने 2017 के चुनावों से पहले फायदा लेने के लिए अधूरा ही शुरू कर दिया था। इसके बाद कांग्रेस की सरकार आई तो प्रोजेक्ट को पूरा करवाया गया। जिसके बाद 27 जनवरी 2019 को दोबारा से प्रोजेक्ट को शुरू किया गया। उसके बाद कई बार कर्मचारियों के वेतन को लेकर मुश्किलें आती रहीं और हड़ताल भी की जाती रही। प्रोजेक्ट पहले ही दिन से घाटे में चल रहा है : इंद्रजीत सिंह
बीआरटीएस के सीईओ इंद्रजीत सिंह चावला का कहना है कि यह बात सही है कि प्रोजेक्ट पहले दिन से ही घाटे में चल रहा है। मगर इसे बंद करने को लेकर अभी कोई बात नहीं है। कर्मचारियों को वेतन देने की भी समस्या पेश आ रही है। उसे जल्द ही हल कर लिया जाएगा। बाकी सारे फैसले सरकार के स्तर पर होने हैं।