एक साथ जली 31 चिताएं, 50 साल में पहली बार रोए भूतनाथ
अमृतसर आम तौर पर माना जाता है कि चिता सजाने और शवों को जलाने वाले श्मशान के कर्मचारी कभी रोते नहीं हैं।
दुर्गेश मिश्र, अमृतसर
आम तौर पर माना जाता है कि चिता सजाने और शवों को जलाने वाले श्मशान के कर्मचारी कभी रोते नहीं हैं। वह श्मशान में ही जश्न भी मनाते हैं, जैसा कि मोक्षदायिनी काशी में मणिकर्णिका घाट पर देखने को मिलता है। जौड़ा फाटक रेल हादसे में मरे लोगों का अंतिम संस्कार करते समय यहा तो श्मशान का सबसे पुराना कर्मी भूतनाथ फूट-फूट कर रो पड़ा।
19 अक्टूबर को विजयदशमी की मनहूस शाम को दशानन को जलते हुए देखने की चाह में दिल्ली-अमृतसर रेल ट्रैक पर खड़े सैकड़ों लोगों में से 60 से अधिक लोग एक झटके में ट्रेन के नीचे आ गए। दशहरे की रौनक चीख-पुकार में बदल गई। चारो तरफ भगदड़ मच गई। सौ से अधिक लोग जख्मी हो गए। जिधर देखो उधर पत्तों की तरह बिखरे मानव अंगों व मास व लोथड़ों पर मृत्यु तांडव कर रही थी। इससे भी कहीं अधिक भयावह मंजर पोस्टमार्टम हाउस व श्मशानघाट का था। जहा कुछ शव तो साबूत और कुछ टुकड़ों में कटे कपड़ों बंध कर आए थे। यह भयावह मंजर पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों और श्मशान में चिता जलाने वालों को भी विचलित कर रहा था।
ऐसा मंजर मैंने पहले कभी नहीं देखा : अमृतसर के सबसे बड़े श्मशानघाट शिवपुरी में पिछले 50 सालों से शवों को पंचतत्व में मिलाने वाले भूतनाथ कहते हैं कि उनकी उम्र 70 साल से भी अधिक हो चुकी है। आज तक उन्होंने ऐसी स्थिति नहीं देखी जब 31 चिताएं एक साथ सजी हों। भूतनाथ कहते हैं कि यहा 60 शवों का एक साथ संस्कार करने की व्यवस्था है, लेकिन यह पहला ऐसा मौका था, जब एक साथ इतनी चिताएं सजाई गईं।
कलेजे को चीर रही थीं चीखें : भूतनाथ कहते हैं कि आम तौर पर हम लोग रोते नहीं हैं। क्योंकि चिता सजाना और जलाना यह जीविका का साधन है। शवों को लेकर लोग चीखते-चिल्लाते आते हैं। मुखाग्नि देकर चले जाते हैं। इसके बाद की सारी प्रक्रिया हम लोगों को पूरी करनी होती है। रेल हादसे के बाद 20 अक्टूबर का मंजर ही ऐसा था कि श्मशान में मौजूद हर शख्स रो पड़ा।
फफक-फफक कर रो पड़े भूतनाथ : चिता की आग की लपटें थोड़ी कम हो गई थीं। फिर भी जलते जलता शव गज भर का रह गया था। लट्ठ से उसकी राख झाड़ते हुए भूतनाथ कहते हैं कि इस रेल हादसे में वह सब कुछ देखने को मिला जो मैंने पहले कभी नहीं देखा। वह कहते हैं 24 वर्ष की घायल पत्नी आरती अपने 27 वर्षीय पति जितेंद्र दास और डेढ़ साल के बच्चे शिवम को संस्कार के लिए लेकर आई थी। उसका रोना कलेजे को इस कदर विदीर्ण कर रहा था कि 24 घटे शवों को जलाने वाला यह भूतनाथ फफक-फफक कर पहली बार रोया।
सोचा भी न होगा कि यहां आकर मौत मिलेगी : शिवपुरी के इंचार्ज धमेंद्र बताते हैं कि पति और बच्चे के शव को लेकर आई इस महिला की विपदा इससे भी दारूण है। बिहार के भागलपुर जिले में स्थित तहसील और थाना सवौर गाव मलरवा निवासी जितेंद्र दास पुत्र सालिग राम पत्नी और बच्चे के साथ अमृतसर मजदूरी करने आया था। उसे क्या पता था कि यहा से उसकी पत्नी घर तो जाएगी पर पति व बच्चे की राख लेकर। यानी सुहागन आई थी और विधवा होकर जाएगी।