इस्तीफे पर ट्वीट के बाद सिद्धू की कोठी पर रही 'नो एंट्री'
। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिदर सिंह के साथ बने गतिरोध के बाद कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू लगातार सियासी हाशिये पर हैं।
विपिन कुमार राणा, अमृतसर
मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिदर सिंह के साथ बने गतिरोध के बाद कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू लगातार सियासी हाशिये पर हैं। 14 जुलाई को सिद्धू ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को 10 जून को भेजा अपना इस्तीफा ट्वीट के जरिये 35 दिनों बाद सार्वजनिक किया। इस्तीफा का मामला उठते ही जैसे ही मीडिया होली सिटी स्थित उनकी कोठी पर हलचल जानने पहुंचा तो वहां 'नो एंट्री' वाले हालात दिखे। कोठी में आने वाला कोई नहीं था। अंदर लगी सिद्धू परिवार और सिक्योरिटी की गाड़ियों से कयास लगाए जाते रहे कि वह घर पर ही है, पर इसकी पुष्टि किसी ने नहीं की।
सिद्धू निवास के बैक साइड पर उनका सियासी कार्यालय भी है, जहां विधानसभा हलका पूर्वी ही नहीं, बल्कि शहरभर से लोग अपना काम करवाने आते हैं। सिद्धू समर्थकों और करीबियों का भी जमावड़ा आफिस में लगा रहता है, मगर आज कोठी के सारे गेट सबके लिए बंद थे। न तो आफिस खुला था और न ही सिक्योरिटी में तैनात गार्द ही कुछ बोल रहे थे। इतना ही नहीं जब उनसे पूछा गया कि क्या सिद्धू घर पर हैं, तो वह अंदर चले गए। इतना ही नहीं सिद्धू, उनकी धर्म पत्नी सहित आज उनके सभी करीबियों के मोबाइल बंद मिले या फिर उन्होंने फोन उठना उचित नहीं समझा। सियासी हताशा में सिद्धू खेमे के नेता
सिद्धू की कांग्रेस में आमद के बाद उनके साथ ही भाजपा में सक्रिय कई नेता उनके साथ कांग्रेस में आ गए थे। हालांकि इसमें टकसाली वर्कर शामिल नहीं थे, पर सिद्धू के साथ दाज में आए नेता कांग्रेसियों को भी पचते नहीं रहे हैं। नगर निगम में अपने करीबियों को टिकट दिलवाने में तो सिद्धू सफल रहे, पर इसमें हुई टकसाली वर्करों के उपेक्षा के बाद से ही वह कांग्रेसियों के निशाने पर थे। अब कांग्रेस द्वारा उन्हें हाशिये पर डाले जाने के बाद सिद्धू खेमा भी सियासी हताशा में हैं। करीबियों की सिद्धू के सियासी करियर पर निगाह है, क्योंकि उनका सियासी करियर उस पर ही निर्भर करता है। विरोध करने पर मेयर, अब विरोधी चेयरमैन
कांग्रेस द्वारा पहले ही सूची में शहर के दिग्गज कांग्रेसियों को दरकिनार कर सिद्धू को कैबिनेट मंत्री बना दिया गया। यह बात कइयों को हजम नहीं हुई। निगम चुनाव में ही सिद्धू अपने समर्थकों की टिकटों को लेकर हाईकमान से उलझ गए। यही वजह रही कि निकायमंत्री होने के बावजूद मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिदर सिंह ने उनसे पूछे बिना कर्मजीत सिंह रिटू को अमृतसर का मेयर बना दिया। जैसे तैसे रिटू से उनकी ट्यूनिग ठीक हुई, पर अब जब नगर सुधार ट्रस्ट की चेयरमैनी की घोषणा की गई तो सिद्धू के चिर विरोधी दिनेश बस्सी को इससे नवाज दिया गया। बस्सी की चेयरमैनी के बाद से ही ट्रस्ट में सुर्खियां बनते रहे सिद्धू के करीबियों के मामले बाहर आने को लेकर भी चर्चा बनी हुई है। लोकल आए कैबिनेट मंत्रियों ने भी नहीं पूछा
शनिवार को नगर सुधार ट्रस्ट के चेयरमैन की ताजपोशी के अलावा कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश सोनी के पारिवारिक प्रोग्राम में आधा दर्जन से ज्यादा कैबिनेट मंत्री पहुंचे। ताजपोशी समारोह में पहुंचे ब्रह्म मोहिद्रा ने जहां सिद्धू को पदग्रहण करने की नसीहत दी थी, वहीं कैबिनेट मंत्री सुक्खी रंधावा ने तो इसे पुराना मामला बताते हुए बात तक करने से मना कर दिया था। रात को भी शहर में रहे मंत्रियों ने सिद्धू के घर जाने या फिर उससे बातचीत तक करने की जहमत नहीं उठाई। इसे लेकर भी शहर में खासी चर्चा बनी हुई है। अपनी मनवाने के लिए कई बार रूठे सिद्धू
सिद्धू का रूठना कोई नया काम नहीं है। 2004 में भाजपा में आए सिद्धू कई बार रुठे। कभी उनकी सुई विधानसभा या निगम की टिकट फला को दी जाए, पर फंस तो कभी अपने चहेतों को मनमर्जी के ओहदे दिलवाने के लिए वह अज्ञातवास पर जाते रहे। राजिदर मोहन सिंह छीना को नगर सुधार ट्रस्ट का चेयरमैन लगाए जाने के बाद भी वह शहर से दूर चले गए थे। अपने एक समर्थक को निगम चुनाव में टिकट दिलवाने के लिए उनकी पूर्व कैबिनेट मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया से भी कहा सुनी हुई और बाद में वह आपसी विवाद का कारण भी बनी। ऐसे एक नहीं अनेक एपीसोड है, जब सिद्धू अपनी मनवाने के लिए रूठे।