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कवि और कवियित्रियों ने अपने ढंग से मनाया शिक्षक दिवस

अनुगूंज साहित्यिक पटल ने शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में आनलाइन काव्य संध्या आयोजित करवाई। संस्थापिका निवेदिता चक्रवर्ती ने मंच पर उपस्थित कवि और कवियित्रियों का स्वागत किया। नीरू मेहता ने मंच संचालन का दायित्व संभाला।

By JagranEdited By: Published: Tue, 07 Sep 2021 05:43 PM (IST)Updated: Tue, 07 Sep 2021 05:43 PM (IST)
कवि और कवियित्रियों ने अपने ढंग से मनाया शिक्षक दिवस
कवि और कवियित्रियों ने अपने ढंग से मनाया शिक्षक दिवस

जागरण संवाददाता, अमृतसर : अनुगूंज साहित्यिक पटल ने शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में आनलाइन काव्य संध्या आयोजित करवाई। संस्थापिका निवेदिता चक्रवर्ती ने मंच पर उपस्थित कवि और कवियित्रियों का स्वागत किया। नीरू मेहता ने मंच संचालन का दायित्व संभाला।

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मंच की शोभा बढ़ाने में निवेदिता के साथ-साथ डा. शैली जग्गी, डा. गौरी चावला, डा. पलविदर सिंह व प्रोफसर नीलम प्रभा देवगण अपना विशेष सहयोग दिया। डा. शैली जग्गी ने अपनी कविता में भगवान कृष्ण को भारत की वर्तमान शोचनीय स्थिति से उबारने के लिए बहुत ही सुन्दर प्रार्थना गाकर सुनाई। डा. गौरी चावला ने कविता के विराट स्वरूप पर प्रकाश डाला। डा. पलविदर सिंह ने पर्यावरण पर हो रहे मानव के आघातों का दिल को छू लेने वाला निरूपण किया। नीरू ने मिलन की सुंदरता का मनमोहक चित्रण किया। निवेदिता ने अपनी अति संवेदनशील कविता के माध्यम से उन लोगों की कृष्णनुमा भूमिका की बात की, जोकि समाज में व्याप्त हर तरह की बुराई का उन्मूलन करने हेतु निस्वार्थ भाव से प्रयासरत रहते हैं। नीलम प्रभा देवगण ने सभी रचनाकारों की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए अपनी कविता उन सपनों को समर्पित की जो लगभग हर नारी अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के लिए दफन कर देती है। इन्होंने पेश की यह रचनाएं

निवेदिता चक्रवर्ती ने बेइंतिहा सितम की चट्टानों के नीचे, बह रहा है इक दरिया धीरे-धीरे, किसी के आंसुओं का हिसाब मांगता, खड़ा है कोई जुल्मों के आंगन में, डा शैली जग्गी ने हे कृष्ण तुम्हें आना होगा, फिर-फिर द्वापर लाना होगा, मैं कथा कहूं नन्द नन्दन की, वाणी को व्यास करना होगा। डा पलविदर सिंह ने कुदरत कहे इंसान से, दिखाया तूने जोर, जिसने तेरा सृजन किया, क्यों उससे लिया मुख मोड़, डा गौरी चावला ने सोचा एक कविता लिखूं, भावों की सरिता लिखूं, नीरू मेहता ने चेहरे से उदासी, शिकन माथे से हटा लो दर्द को उफनने, आंखों को बरसने की इजाजत नहीं है, प्रो नीलम प्रभा देवगण ने मैं तो बिल्कुल फीनिक्स निकली, राख से निर्मित होने लगी हूं पेश किया।


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