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संस्कारशाला : तर्कसंगत और वैज्ञानिक सोच

---------- पूर्व युग सा आज का जीवन नहीं लाचार आ चुका है दूर द्वापर से बहुत संसार यह समय तर्क

By Edited By: Published: Tue, 29 Sep 2015 06:46 PM (IST)Updated: Tue, 29 Sep 2015 06:46 PM (IST)
संस्कारशाला : तर्कसंगत और वैज्ञानिक सोच

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पूर्व युग सा आज का जीवन नहीं लाचार

आ चुका है दूर द्वापर से बहुत संसार

यह समय तर्क विज्ञान का सब भांति पूर्ण समर्थ

खुल गए हैं गूढ़ रहस्यों के समस्त अर्थ।

चांद रात को ही क्यों निकलता है? पक्षी सुबह ही क्यों चहचहाते है? बसंत ऋतु के आगमन पर कलियां खिल कर क्यों सुमन बन जाती हैं? सूर्य निकलने पर तारे कहां छिप जाते हैं? आदि आदि आदि।

ऐसे ही मानव मन में तैर रहे अनेक प्रश्नों ने जन्म दिया ज्ञान को और विशेष ज्ञान विशेष विषयों के साथ जुड़ कर बन गया विज्ञान।

विज्ञान को तर्कसंगत ज्ञान भी कहा जा सकता है। वैज्ञानिक क्यों, कैसे, कब कहां की गुत्थियों को सुलझाते सुलझाते जो समाधान संसार के समक्ष लेकर आए उन्होंने न केवल मानव जीवन को सहज और सरल बनाया, बल्कि धरती की गोद में छिपे रहस्यों को परत दर परत खोल कर अध्ययन व मनन के पन्नों में जोड़ा। धरती से ऊपर अनंत आकाश और सुदूर व्योम से ऊपर अंतरिक्ष में जीवन का अस्तित्व हो सकता है या नहीं। कई अंतरिक्ष यात्रियों को आकर्षित कर अपने पास अंतरिक्ष यात्रा के लिए बुलाने लगा।

पक्षियों की तरह उड़ने की चाह, मानव को न केवल कल्पना के पंख लगा कर बल्कि बाकायदा पेराशूट, ग्लाइडर, विमान जैसी वैज्ञानिक खोजों की सवारियों में बिठा कर ले गयी। वहां भी तर्कशील बुद्धि में बिठा कर इंसान ले आया बहुत से रहस्यों का समाधान।

गौरव की भाषा नई सीख

प्रश्नों की आवाज बदल

जिज्ञासु विवेकी मनुज के आगे

पर्वत भी झुक सकते हैं

पृथ्वी, पाताल की क्या कहते हो

1945 में वेनेवर बुश नामक वैज्ञानिक ने तर्कसंगत बुद्धि के प्रयोग से अलग अलग दस्तावेजों के मध्य संबंध स्थापित करने संबंधी एक लेख लिखा। 1972 में कंप्यूटर और संचार के बारे में पहली अंतर्राष्ट्रीय सभा वाशिंगटन में हुई और वैज्ञानिकों ने अपनी तर्कशील बुद्धि का लोहा मनवाते हुए चालीस कंप्यूटरों को जोड़ कर दिखाया। इस विकास यात्रा के चलते चलते जिस विधि का जन्म हुआ उसे ही ई मेल का नाम दिया गया। इंटरनेट अर्थात भीतरी जाल तथ्यों को एक दूसरे से जोड़ने की प्रक्रिया में क्या शानदार सफलता पा ली। तर्कसंगत बुद्धिस्वातियों ने, लेकिन..

हो रहा है जो जहां वह हो रहा

यदि वही मानव ने किया तो क्या किया

किंतु होना चाहिए कब, क्या कहां?

वो ही न, तो क्या किया?

अभिप्राय यह है कि केवल तार्किक विवेकशीलता ही तो मानव मात्र का लक्ष्य नहीं, आदमी को इंसान बनाना, बुद्धि पक्ष के साथ साथ हृदय पक्ष को भी समृद्ध बनाना,्र उतना ही जरूरी है जितना सुंदरता के संग श्रृंगार। शिक्षा के क्षेत्र में केवल वाणिज्य व वैज्ञानिक विषय ही शिक्षार्थी को मन भावन शिक्षा न दे पाएंगे। ये विषय विद्यार्थी का भविष्य निर्माण तो करेंगे लेकिन चरित्र निर्माण बहुत क्षीण रह जाएगा। वैज्ञानिक सोच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति तो देगी, लेकिन आंतरिक स्तर पर आत्मतुष्टि न दे पाएगी। व्यक्तित्व निखार बाहरी व शारीरिक रूप से तो हो जाएगा। लेकिन आत्मिक, नैतिक, आध्यात्मिक व सात्विकी पक्ष कही खो जाएगा

देश जो है आज उन्नत

और सब संसार से

चौंका रहे है नित्य सबको

नव आविष्कार से

विज्ञान बल से ही गगन में

चढ़ सके है वे वहां

नैतिक, सदाचार, सभ्य

भावनाओं को छोड़ आए है कहां?

अंत तार्किंग व वैज्ञानिक सोच तब तक निरर्थक है जब तक भावना पक्ष का बुद्धि पक्ष के साथ समन्वय न हो, आज आवश्यकता इस बात की है कि माता-पिता अथवा अभिभावक गण के अतिरिक्त शिक्षण संस्थान किस सीमा तक अपने दायित्व का निर्वाह करते है। विद्यालयों में नैतिक मूल्यों की शिक्षा, सभ्यता संस्कृति से जोड़ने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्रार्थना सभाएं, बुद्धि के मकड़जाल में फंसे आदमी को इंसान बनाने में सहायक सिद्ध हो सकतेहैं। वस्तुत हमारा प्रयास है

जमीं पर ही तारे सजाना

फरिश्तों को जमीं पर लाना।

अंजना सेठ, डायरेक्टर होली हार्ट प्रेजीडेंसी स्कूल अमृतसर।

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ईश्वर ने मनुष्य को धड़कन रहित एक मस्तिष्क व धड़कन सहित एक हृदय प्रदान किया है। मस्तिष्क की तार्किक शक्ति से उसने अपने दैनिक कार्यो को अति सरल व सहज बना लिया है। केवल अपने विवेक व बुद्धि से उसने स्व निर्मित मशीनों पर नियंत्रण तो प्राप्त कर लिया है किंतु हृदय पक्ष को अनसुना कर परिणाम की चिंता किए बिना अगर वह कार्य करेगा तो परिणाम विध्वंसकारी होंगे। शिक्षा का साधारण अर्थ है सीखना शिक्षा। व्यक्ति के आंतरिक व बाहरी गुणों का विकास करती है उसे जीवन संघर्ष के लिए तत्पर करती है।

विक्रम सेठ, प्रिंसिपल होली हार्ट प्रेजीडेंसी स्कूल अमृतसर।

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छात्रा अमृतप्रीत कौर का कहना है कि मनुष्य का पहला सवाल किसी चीज को देख कर होता है क्यों, कैसे कब कहां? अगर एक छोटे से बच्चे को देखे जो छह सात का है वह सूरज को देख कर पूछेगा यह क्या है कैसे बना? तारों को देखेगा तो पूछेगा यह कैसे चमकते है? मानव हर काम को परखता है फिर ही वह कुछ करता है। वह दिल का उपयोग कम और दिमाग का उपयोग अधिक करता है।

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छात्र दमन का कहना है कि मनुष्य वैज्ञानिक युग में पहुंच गया है। इस वैज्ञानिक युग में चाहे बच्चा हो या बूढ़ा हर कोई वैज्ञानिक सोच लेकर जीने लगा है।

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छात्र वरुण का कहना है कि न्यूटन ने जब देखा कि सेब धरती पर गिरा है तो पहला प्रश्न उसके मन में आया कि यह धरती पर ही क्यों गिरा? उसके इस तर्कशील क्यों? ने उसे इस रहस्य की खोज करने के लिए मजबूर कर दिया।

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ईश अरोड़ा का कहना है कि आज की वैज्ञानिक सोच ने मनुष्य के जीवन को बदल दिया है। हर जगह हमें उसके बनाए यंत्र दिखाई देते हैं, जिनसे हमारे काम सरल हो गए है।

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आरुषि शर्मा का कहना है कि मनुष्य अपनी बुद्धि तर्कशीलता और वैज्ञानिक सोच का इस्तेमाल करके नई नई वस्तुएं बनाता जा रहा है पर वह अपनी मन की भावनाओं को पीछे छोड़ता जा रहा है।


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