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Union Budget 2019 : केंद्रीय करों से UP सरकार भरेगी अपना खजाना, अब विकास कार्यों पर ज्यादा होगा खर्च

उप्र को केंद्रीय करों में हिस्सेदारी के जरिये पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में इस साल 13628.81 करोड़ रुपये ज्यादा मिलने का अनुमान है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Fri, 05 Jul 2019 08:34 PM (IST)Updated: Sat, 06 Jul 2019 08:18 AM (IST)
Union Budget 2019 : केंद्रीय करों से UP सरकार भरेगी अपना खजाना, अब विकास कार्यों पर ज्यादा होगा खर्च
Union Budget 2019 : केंद्रीय करों से UP सरकार भरेगी अपना खजाना, अब विकास कार्यों पर ज्यादा होगा खर्च

लखनऊ, जेएनएन। केंद्रीय करों के संग्रह में वृद्धि उत्तर प्रदेश सरकार का खजाना भी भरेगी और विकास कार्यों के लिए ज्यादा संसाधन मुहैया कराएगी। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने चालू वित्तीय वर्ष के लिए शुक्रवार को जो बजट पेश किया, उसमें उप्र को केंद्रीय करों में हिस्सेदारी के जरिये पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में इस साल 13628.81 करोड़ रुपये ज्यादा मिलने का अनुमान है। हालांकि अंतरिम बजट में उप्र को 2018-19 की तुलना में 2019-20 में केंद्रीय करों में हिस्सेदारी के जरिये 14916.24 करोड़ रुपये ज्यादा मिलने का अनुमान जताया गया था।

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केंद्रीय करों के विभाज्य पूल में राज्यों की हिस्सेदारी 42 फीसद है। 2019-20 के बजट के मुताबिक केंद्रीय करों में राज्यों की कुल हिस्सेदारी 809133.02 करोड़ रुपये आंकी गई है। चौदहवें वित्त आयोग के फार्मूले के अनुसार केंद्रीय करों के राज्यांश में उप्र का हिस्सा 17.95 प्रतिशत है। इस हिसाब से वर्तमान वित्तीय वर्ष में उप्र को केंद्रीय करों के विभाज्य पूल में से 145312.19 करोड़ रुपये मिलने का अनुमान है। वहीं 2018-19 के संशोधित अनुमानों के मुताबिक पिछले वित्तीय वर्ष में उप्र को केंद्रीय करों से 131683.38 करोड़ रुपये मिले थे। इस हिसाब से अगले वित्तीय वर्ष में उप्र को 13628.81 करोड़ रुपये ज्यादा मिलेंगे।

केंद्र सरकार के बजट के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2019-20 में उप्र को कॉरपोरेशन टैक्स से 49510.6 करोड़ रुपये, इन्कम टैक्स से 37848.01 करोड़ रुपये, सेंट्रल जीएसटी से 39570.77 करोड़ रुपये, कस्टम शुल्क से 10460.04 करोड़ रुपये और केंद्रीय उत्पाद शुल्क से 7924.1 करोड़ रुपये मिलने का अनुमान है।

पहली फरवरी 2019 को तत्कालीन वित्त मंत्री पीयूष गोयल की ओर से पेश किये गए चालू वित्त वर्ष के अंतरिम बजट में केंद्रीय करों में राज्यों की कुल हिस्सेदारी 844605.48 करोड़ रुपये आंकी गई थी। इस आधार पर उप्र को 2019-20 में केंद्रीय करों के विभाज्य पूल में से 151682.7 करोड़ रुपये मिलने का अनुमान लगाया गया था। वहीं 2018-19 के बजट के पुनरीक्षित अनुमानों में उप्र को केंद्रीय करों से 136766.46 करोड़ रुपये मिलने की संभावना जतायी गई थी। इस हिसाब से उप्र को पिछले के मुकाबले चालू वित्तीय वर्ष में 14916.24 करोड़ रुपये ज्यादा मिलने की उम्मीद जतायी गई थी।

केंद्रीय योजनाओं का आवंटन बढ़ने का भी मिलेगा लाभ

बजट में कई केंद्र पुरोनिधानित योजनाओं का आवंटन पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में बढ़ाया गया है। इसका लाभ भी उप्र जैसे बड़े राज्य को मिलेगा। राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल मिशन, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल मिशन, राष्ट्रीय शिक्षा मिशन, कौशल विकास, राष्ट्रीय आजीविका मिशन, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना, अमृत, पुलिस बल आधुनिकीकरण के लिए पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में अधिक धनराशि आवंटित की गई है।

बिजली क्षेत्र के लिए बजट को बताया निराशाजनक

बिजली इंजीनियरों और उपभोक्ताओं ने बजट को ऊर्जा क्षेत्र के लिए निराशाजनक बताया है। एक राष्ट्र-एक ग्रिड की सफलता के लिए इंजीनियरों ने जहां बिजली निगमों के एकीकरण को जरूरी बताया, वहीं उपभोक्ता संगठनों ने कहा कि छह साल पहले एक राष्ट्र-एक ग्रिड का सपना पूरा होने के बाद देश लंबे समय से सस्ती बिजली मिलने का इंतजार कर रहा है। 

निजीकरण से कर्मचारी वर्ग में नाराजगी

ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने कहा कि आयकर की छूट न बढ़ाने और रेलवे के बड़े पैमाने पर निजीकरण से कर्मचारी वर्ग में नाराजगी है। ऊर्जा क्षेत्र का घाटा कम करने और बिजली दरें घटाने के लिए कोई ठोस योजना घोषित न किए जाने के साथ दुबे ने उदय योजना की सफलता पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि उदय का हाल भी अन्य योजनाओं जैसा ही है। ऊर्जा निगमों के बढ़ते घाटे के लिए सरकार की गलत नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हुए इनमें बदलाव की जरूरत बताई।

सस्ती बिजली देने के नारे को केवल दिखावा

उप्र राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने सस्ती बिजली देने के नारे को केवल दिखावा करार देते हुए शहरी बीपीएल श्रेणी की दरों 109 फीसद की प्रस्तावित वृद्धि को इसका ताजा उदाहरण बताया। वर्मा ने कहा कि लोग सस्ती बिजली मिलने की उम्मीद लगाए हैैं, जबकि बिजली विभाग प्रदेश के गरीबों के फिर से लालटेन युग में ले जाने की कोशिश कर रहा है। निजी घरानों की महंगी बिजली और सरकारी विभागों पर बिजली बकाए पर बात न होने को भी परिषद अध्यक्ष ने उपभोक्ताओं के लिए निराशाजनक ठहराया।


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