राजस्थान में कांग्रेस का सिरदर्द बन सकती है राकांपा, चंपावत 200 सीटों पर लड़ेंगे चुनाव
उम्मेद सिंह चंपावत कहते हैं कि कांग्रेस से सम्मानजनक समझौता होता है तो ठीक अन्यथा सभी दो सौ सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी है।
अहमदाबाद, शत्रुघ्न शर्मा। राजस्थान चुनाव को लेकर भाजपा व कांग्रेस दोनों अपनी रणनीति पर काम कर रही हैं, लेकिन गुजरात के एक होटेलियर के मैदान में आ जाने से आगामी दिनों में नए समीकरण बनने की संभावना है। एनसीपी ने उद्यमी व राजनेता उम्मेद सिंह चंपावत को राजस्थान की बागडोर सौंपकर प्रदेश में अपनी पकड़ तेज करने का प्रयास शुरू कर दिया है। भाजपा से नाराज राजपूत, ब्राह्मण व मुस्लिम मतदाताओं पर उनकी सीधी नजर है।
देश के पूर्व उपराष्ट्रपति व राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत भैरों सिंह शेखावत के खिलाफ चुनाव लड़कर चर्चा में आए उद्यमी उम्मेद सिंह चंपावत लंबे समय से राजस्थान की राजनीति में सक्रिय हैं तथा अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। मारवाड़ की पाली सीट से उनका विधानसभा चुनाव लड़ना पहले से तय है, लेकिन राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की बागडोर संभालने के बाद अब वे सभी 33 जिले व सवा दो सौ तहसीलों में संगठन के पांव पसार रहे हैं।
चंपावत कहते हैं कि कांग्रेस से सम्मानजनक समझौता होता है तो ठीक अन्यथा सभी दो सौ सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी है। चंपावत बताते हैं कि एनसीपी सुप्रीमो शरद पंवार ने कांग्रेस को नुकसान किए बिना अपना राजनीतिक वजूद खड़ा करने को कहा है। महाभारत के पांडवों की तरह वे कांग्रेस पांच गांव यानि कुछ सीट चाहते हैं, यदि इतनी भी नहीं मिलती हैं तो उनके लिए सभी विकल्प खुले हैं।
गौरतलब है कि गुजरात में कांग्रेस व एनसीपी के रिश्तों में आए उतार-चढ़ाव का सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस को हो चुका है। अहमदाबाद महानगर पालिका के बाद गुजरात की सत्ता के करीब पहुंचकर फिसल गई, इसलिए एनसीपी को उम्मीद है कि कांग्रेस अब यह गलती नहीं दोहराएगी।
चंपावत खुद मारवाड मूल से आते हैं तथा शेखावाटी इलाके में उनकी अच्छी पकड़ है, पाली सिरोही को वे मिनी मुंबई बताते हैं। राजस्थान में विकास की विपुल संभावना बताते हुए चंपावत कहते हैं कि 20 साल में विकास हुआ लेकिन कछुआ चाल से। कोटा को एजुकेशन का एसईजेड बनाकर दुनिया के नामी विश्वविद्यालयों को खोल देना चाहिए। बाडमेर में रिफाइनरी लग जाती तो प्रदेश का विकास अरब देशों जैसा हो सकता था। सौर ऊर्जा के क्षेत्र में गजब की संभावना है। चंपावत मानते हैं कि गुजरात की तरह राजस्थान में भी शराबबंदी होनी चाहिए, इससे अपराध कम होंगे महिलाएं व बच्चियां अधिक सुरक्षित महसूस करेंगी। शराब से होने वाली आय कम है नुकसान अधिक हैं, जितनी आय होती है उससे अधिक तो अफसर व दफ्तरों पर खर्च हो जाती है।
राजस्थान की राजनीति में जाति का अपना विशेष महत्व है, गैंगस्टर आनंद पाल व चतुर सिंह एनकाउंटर को लेकर राजपूत समाज मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से खासा नाराज है। रावणा राजपूत समाज तो खुलकर भाजपा के खिलाफ मैदान में उतर आया है। एससी-एसटी एक्ट को लेकर सवर्णों की भाजपा से नाराजगी एनसीपी के लिए बड़े फायदे का कारण बन सकती है। जो राजपूत, ब्राह्मण, बनिया, जाट तथा ओबीसी की कई जातियां भाजपा से नाराज हैं और सीधे कांग्रेस के पक्ष में जाने से बच रहे हैं, एनसीपी उनके लिए नया विकल्प बन सकती है। हालांकि तीसरी शक्ति बनने के लिए भाजपा छोड़कर दीनदयाल वाहिनी बनाने वाले पूर्व मंत्री घनश्याम तिवाडी, नेशनल पीपल्स पार्टी, पीपल्स ग्रीन पार्टी सहित बसपा, सपा, जदयू से एनसीपी को चुनौती मिल सकती है, लेकिन शरद पंवार व पूर्व मंत्री प्रफुल्ल पटेल जैसे दिग्गज की छत्रछाया में पार्टी को जगह बनाने में कम मुश्किल होगी।