Bihar Assembly Elections : खत्म हो गया पोस्टर चस्पा करने का दौर, रह गईं केवल यादें, चुनाव शुरू होते ही बन जाती थी कार्यकर्ताओं की टोली
Bihar Assembly Elections रात में मोहल्ले के हिसाब से लेई लगाकर पोस्टर चस्पा करने का सिलसिला चलता था। उसके बाद एक टोली कूची बनाकर गेरू से दीवार लेखन करती चलती थी। इस तरह पूरी रात अभियान चलता।
मुजफ्फरपुर, [ अमरेंद्र तिवारी ]। एक दौर था, जब चुनाव की घोषणा के साथ ही विभिन्न राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं की टोली बन जाती थी। टीम बनाकर पर्चा-पोस्टर चस्पा करने का दौर शुरू हो जाता। पुराने दिनों को याद कर भाजपा नेता भोला चौधरी कहते हैं कि अब वह बात कहां? अब तो सबकुछ मोबाइल पर ही चल रहा है।
सिलसिला धीरे-धीरे कम होता गया
वे वर्ष 1990 के बिहार विधानसभा चुनाव को याद करते हैं, नामांकन के बाद पार्टी की तरफ से जवाबदेही तय हुई कि प्रचार टोली निकलेगी। पार्टी हाईकमान का आदेश था, सो तैयारी शुरू हो गई। उनके साथ ओमप्रकाश सिंह, विनय मिश्रा सहित आधा दर्जन लोग शाम में जमा होते थे। उसके बाद लेई बनाई जाती थी। रात में मोहल्ले के हिसाब से लेई लगाकर पोस्टर चस्पा करने का सिलसिला चलता था। उसके बाद एक टोली कूची बनाकर गेरू से दीवार लेखन करती चलती थी। इस तरह पूरी रात अभियान चलता। वह सिलसिला धीरे-धीरे कम होता गया। अब तो वह पुराने दिनों की बात हो गई है। नई पीढ़ी को वह सब कहां देखने का मौका मिलेगा। बड़ा जोश रहता था। दीवार लेखन में तीन बातें जरूर लिखी जाती थीं। उम्मीदवार का नाम, पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न।
चुनाव चिह्न का रहता था सांचा
चुनाव चिह्न के लिए टिन पर सांचा बनता था। दीवार लेखन के समय सांचे को रखकर उसपर रंग पोत दिया जाता था। इस तरह से प्रचार का दौर चलता था। लेकिन, अब तो नए कानून की वजह से सार्वजनिक स्थल पर पोस्टर लगाने की बात कोई सोच भी नहीं सकता। पहले रेलवे स्टेशन, बस पड़ाव, अस्पताल सहित अन्य सार्वजनिक स्थल पर्चा व दीवार लेखन के लिए प्रमुख होते थे।