...यूं बढ़ता चला गया बंगाल में राज्यपाल व सरकार के बीच टकराव, पुराना है यह टकराव का इतिहास
इससे पहले बंगाल सरकार व राज्यपाल के बीच टकराव तब उभर कर सामने आया जब 1977 में बंगाल में वाम मोर्चा सत्ता में आया जिसे बड़े पैमाने का जनादेश मिला था।
कोलकाता, जागरण संवाददाता। बंगाल के 28वें राज्यपाल के तौर पर जगदीप धनखड़ ने इसी साल जुलाई में पद संभाला। उन्होंने केसरीनाथ त्रिपाठी की जगह ली। राजभवन में आयोजित शपथ समारोह में कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश टीबीएन राधाकृष्णन ने उन्हें शपथ दिलाई थी।
समारोह में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अलावा, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष व वरिष्ठ कांग्रेस नेता अब्दुल मन्नान व अन्य वरिष्ठ जन उपस्थित थे। कुछ दिनों तक तो सबकुछ ठीक चला लेकिन राज्यपाल व राज्य सरकार के बीच जुबानी जंग की शुरुआत सितंबर से हुई जब वे जादवपुर विश्वविद्यालय में वामपंथी छात्र संगठन के छात्रों के बीच घिरे केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो को लाने विवि कैंपस पहुंचे। बाबुल वहां अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) द्वारा आयोजित एक सेमिनार को संबोधित करने पहुंचे थे।
हालांकि राज्यपाल को भी छात्रों के विरोध का सामना करना पड़ा। काफी देर बाद राज्यपाल किसी तरह बाबुल सुप्रियो को अपनी कार में लेकर विश्वविद्यालय परिसर से बाहर निकले।
राज्यपाल के विश्वविद्यालय में पहुंचने को लेकर तृणमूल कांग्र्रेस महासचिव पार्थ चटर्जी समेत राज्य के कुछ अन्य मंत्रियों ने आपत्ति जाहिर कि और कहा कि उन्हें वहां जाने से पहले राज्य को सूचित करना चाहिए थे। इसके कुछ दिनों बाद जब सालाना दुर्गा पूजा कानिर्वल का आयोजन हुआ तब राज्यपाल को आमंत्रण मिला। राज्यपाल दुर्गा पूजा कार्निवल में प्रतिमाओं का विसर्जन देखने पहुंचे लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि उन्हें सेंसर किया गया और पद के अनुसार मर्यादा नहीं मिली। यहां तक कि मुख्यमंत्री भी उन्हें केवल विदा करने के लिए पहुंचीं।
इसके बाद फिर स्थिति सुधरी और जगदीप धनखड़ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आवास पर आयोजित होने वाले काली पूजा में शामिल होने पहुंचें। सपत्नीक शरीक होने के बाद राज्यपाल ने मुख्यमंत्री की मेहमाननवाजी की जमकर तारीफ की। सबकुछ ठीक चल रहा था कि इस बीच राज्यपाल ने सितंबर के आखिरी सप्ताह में उत्तर बंगाल के सिलीगुड़ी में प्रशासनिक बैठक करने पहुंचे।
हालांकि राज्यपाल की बैठक में न तो कोई मंत्री, ना ही नौकरशाह और ना ही पुलिस अधिकारी शामिल हुए। दलील दी गई कि चूंकि सीएम की प्रशासनिक बैठक को लेकर अधिकारी व्यस्त है इसलिए नहीं पहुंचे जबकि जनप्रतिनिधियों ने कहा कि उन्हें आमंत्रण ही नहीं मिला और बैठक की कोई जानकारी ही नहीं थी। इससे नाराज महामहिम ने कहा अब हर जिले में बैठक आयोजित करेंगे। बीते महीने उन्होंने उत्तर व दक्षिण 24 परगना जिले में इसी तरह की प्रशासनिक बैठक बुलाई जब जिले में बुलबुल चक्रवात ने तबाही मचाई थी। इस बैठक के दौरान भी न तो जनप्रतिनिधि और ना ही प्रशासनिक अधिकारी शामिल हुए। इसके बाद भी राज्यपाल ने अपना क्षोभ प्रकट किया। इस बीच बंगाल सरकार के मंत्रियों और यहां तक कि इशारों में तृणमूल प्रमुख ने राज्यपाल पर निशाना साधा और कहा कि संवैधानिक पद पर बैठ राज्यपाल समानांतर सरकार चलाने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं राज्यपाल ने भी कई बार राज्य सरकार पर निशाना साधा।
ताजा मामले में बुधवार को कलकत्ता विश्वविद्यालय परिसर में सीनेट की बैठक में शामिल होने गए राज्यपाल जगदीप धनखड़ का स्वागत करने के लिए वाइस चांसलर, प्रो वाइस चांसलर से लेकर एक भी प्रशासनिक अधिकारी नजर नहीं आया। सभी अधिकारियों के कक्ष बंद नजर आए जबकि बुधवार को कोई अवकाश नहीं था। इस पर राज्यपाल ने कहा कि मुझे लगता है कि देश के किसी भी उच्च शिक्षा के संस्थान में इस तरह की अवमानना कहीं नहीं हुई है। कोई शिक्षा संस्थान ऐसा राज्य की मुख्यमंत्री के निर्देश पर ही कर सकता है।
इससे पहले मंगलवार को विधानसभा अध्यक्ष विमान बनर्जी ने सदन की कार्यवाही यह कहते हुए स्थगित कर दी कि कई विधेयक राज्यपाल के लिए हस्ताक्षर के लिए पेंडिंग पड़े हैं जिस कारण सदन की कार्यवाही को दो दिनों के लिए स्थगित किया जा रहा है और दोबारा कार्रवाई शुक्रवार को शुरू होगी।
विधानसभा स्पीकर ने राज्यपाल जगदीप धनखड़ को गुरुवार को विधानसभा में लंच पर बुलाया था लेकिन ऐन वक्त पर कार्यक्रम कैंसिल कर दिया गया। इसके साथ ही दो दिन के लिए विधानसभा को बंद कर दिया गया। इसके बावजूद गवर्नर जगदीप धनखड़ गुरुवार को विधानसभा पहुंच गए। मेन गेट बंद होने कारण उन्होंने गेट नंबर दो से सदन में प्रवेश किया। राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें जानबूझकर विधानसभा में जाने नहीं दिया गया। वह विधानसभा इमारत का चक्कर लगाते रहे लेकिन किसी ने उन्हें यह बताने की जहमत नहीं उठाई कि वह कैसे अंदर आ सकते हैं। इससे राज्यपाल नाराज हो गए और वहीं गेट पर सांकेतिक धरना देते रहे। हालांकि बाद में वह दूसरे गेट से अंदर गए।
इस पर गवर्नर जगदीप धनखड़ ने कहा कि विधानसभा में सत्र में नहीं चलने का मतलब सचिवालय का बंद होना नहीं है। ये बहुत ही शर्मनाक पल है। विधायिका को बंदी नहीं बनाया जा सकता है। लोकतंत्र में आप इसकी अनुमति कैसे दे सकते हैं। दरवाजे बंद हैं। कामकाजी दिन में भी लोग छुट्टी पर हैं। मुझे अपमानित नहीं किया जा रहा है। इस राज्य के लोगों को अपमानित किया जा रहा है।
पुराना है सरकार व राज्यपाल के बीच टकराव का इतिहास
इससे पहले बंगाल सरकार व राज्यपाल के बीच टकराव तब उभर कर सामने आया जब 1977 में बंगाल में वाम मोर्चा सत्ता में आया जिसे बड़े पैमाने का जनादेश मिला था। वाम मोर्चे के तत्कालीन राज्यपाल, बीडी पांडे के साथ कभी भी सौहार्दपूर्ण संबंध नहीं रहे। वाम मोर्चा ने पांडे पर उस वक़्त निशाना साधा जब केंद्र-राज्य के संबंध में टकराव पैदा हुआ।
अनंत प्रसाद शर्मा को 1984 में बंगाल का राज्यपाल बनाया गया था और उनके संबंध भी वाम मोर्चा सरकार के साथ अच्छे नहीं थे। उस वक़्त कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति के नामांकन को लेकर दोनों के रिश्तों में खटास आ गई थी, क्योंकि शर्मा ने उस उम्मीदवार का समर्थन किया था जो सरकार की नापसंद थी। टकराव उस वक़्त ज्यादा बढ़ गया जब 2007 में तत्कालीन राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी ने नंदीग्राम की घटना को हड्डी कंपकपाने वाला आतंक कहा था, इस पर वाम मोर्चे के नेताओं उन पर तीखे प्रहार किए थे।
वहीं बात वर्तमान तृणमूल सरकार के कार्यकाल की करें तो यह सिलसिला 2014 में राज्यपाल के रूप में कार्यभार संभालने के बाद, केसरीनाथ त्रिपाठी ने शुरुआत में तो राज्य सरकार के साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार रखा। लेकिन, उत्तर 24 परगना जिले के कई हिस्सों में जब दो समुदायों के बीच झड़प हुई तो त्रिपाठी ने राज्य प्रशासन की आलोचना की। नाराज बनर्जी ने दावा किया कि राज्यपाल ने उनका अपमान किया है।