Raghuvansh prasad singh RJD resignation : लालू के साथ खड़ा होना रघुवंश प्रसाद के राजनीतिक जीवन में साबित हुआ मील का पत्थर
1996 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव के कहने पर रघुवंश प्रसाद सिंह बिहार के वैशाली से लोकसभा चुनाव लड़े। जीत के साथ उनका दायरा दिल्ली तक पहुंच गया।
मुजफ्फरपुर, अमरेंद्र तिवारी। Raghuvansh prasad singh RJD resignation : कद्दावर राजनेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने आखिरकार राजद से अपना नाता तोड़ लिया। लालू के काफी करीबी माने जाने वाले रघुवंश प्रसाद के इस तरह पार्टी छोड़ने से कुछ लोग अचरज में हैं तो कुछ विश्लेषक इसे पीढ़ियों के बदलाव के रूप में देख रहे हैं। रघुवंश प्रसाद 1977 में पहली बार विधायक बने थे। बेलसंड से उनकी जीत का सिलसिला 1985 तक चला। इस बीच 1988 में कर्पूरी ठाकुर का अचानक निधन हो गया। सूबे में जगन्नाथ मिश्र की सरकार थी।।लालू प्रसाद यादव कर्पूरी के खाली जगह पर अपना दावा जता रहे थे।
रघुवंश प्रसाद सिंह ने इस समय में लालू का साथ दिया। यहां से लालू और उनके बीच करीबी रिश्ता शुरू हुआ। 1990 में बिहार विधानसभा के लिए चुनाव हुए। बेलसंड से रघुवंश प्रसाद सिंह के सामने खड़े थे कांग्रेस के दिग्विजय प्रताप सिंह। रघुवंश प्रसाद सिंह चुनाव हार गए। वे चुनाव हार गए थे लेकिन, सूबे में जनता दल चुनाव जीतने में कामयाब रहा। लालू प्रसाद यादव नाटकीय अंदाज में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे। लालू को 1988 में रघुवंश प्रसाद सिंह द्वारा दी गई मदद याद थी। लिहाजा उन्हें विधान परिषद भेज दिया गया।
1995 में लालू मंत्रिमंडल में मंत्री बना दिए गए। 1996 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव के कहने पर रघुवंश प्रसाद सिंह लोकसभा चुनाव लड़े बिहार के वैशाली से। सामने थे समता पार्टी के वृषिण पटेल। रघुवंश प्रसाद सिंह चुनाव जीतने में कामयाब रहे। इसके बाद वे पटना से दिल्ली आ गए। केंद्र में जनता दल गठबंधन सत्ता में आई। देवेगौड़ा प्रधानमन्त्री बने। रघुवंश बिहार कोटे से केंद्र में राज्य मंत्री बनाए गए। पशुपालन और डेयरी महकमे का स्वतंत्र प्रभार मिला। अप्रैल 1997 में देवेगौड़ा को प्रधानमन्त्री की कुर्सी गंवानी पड़ी। इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमन्त्री बने और रघुवंश प्रसाद सिंह को खाद्य और उपभोक्ता मंत्रालय में भेज दिया गया। एचडी देवेगौड़ा ने रघुवंश प्रसाद सिंह को अपने मंत्रिमंडल में जगह दी थी।
रघुवंश प्रसाद सिंह 1996 में केंद्र की राजनीति में आ चुके थे। लेकिन उन्हें असली पहचान मिली 1999 से 2004 के बीच। इसका कारण यह रहा कि बिहार की राजनीति में एक मुहावरा प्रचलित है. ‘रोम पोप का और मधेपुरा गोप का।’ 1999 के लोकसभा चुनाव में यहां से दो दिग्गज मजबूत यादव य चुनाव लड़ रहे थे। पहले थे शरद यादव और दूसरे थे लालू प्रसाद यादव। लालू प्रसाद यादव को हार का सामना करना पड़ा। 1999 में जब लालू प्रसाद यादव हार गए तो रघुवंश प्रसाद को दिल्ली में राष्ट्रीय जनता दल के संसदीय दल का अध्यक्ष बनाया गया था।
प्रदेश जदयू के राजनीतिक सलाहकार समिति के सदस्य प्रोफेसर शब्बीर अहमद ने इस्तीफे का स्वागत करते हुए कहा है कि अब राजद की लुटिया डूबनी तय है। लालू के हर सुख दुख में खड़े रहे रघुवंश बाबू। आज उन्हीं के दल में लालू के उत्तराधिकारी उनके खिलाफ उल्टा बयान दे रहे हैं।