नेतृत्व के संकट में फंसी बिहार कांग्रेस, चार दिनों की तेजी के बाद थमने लगे पार्टी के कदम
बिहार में लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस जिस तरह तेज कदमों से चली थी वैसे ही चुनाव के बाद उसकी रफ्तार थम सी गई है। नेतृत्व को लेकर संशय की स्थिति ने पार्टी को प्रभावित किया है।
By Kajal KumariEdited By: Published: Wed, 31 Jul 2019 10:03 AM (IST)Updated: Wed, 31 Jul 2019 09:59 PM (IST)
पटना [एसए शाद]। लोकसभा चुनाव के समय से तेज कदम चल रही कांग्रेस फिर शिथिल पडऩे लगी है। हालांकि, कांग्रेस ने पिछले दिनों विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान तेजी दिखाई, मगर नेतृत्व को लेकर जारी संशय की स्थिति ने पार्टी की प्रदेश इकाई को प्रभावित किया है। संगठनात्मक गतिविधियां ठप पड़ी हैं।
शिखर नेतृत्व को लेकर पिछले दो माह से बने संशय ने प्रदेश कांग्रेस का हौसला पस्त कर रखा है। विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान अन्य सहयोगी दलों से अधिक सक्रियता दिखाने के पश्चात पार्टी फिर खामोश हो गई है। न तो पार्टी संगठन को सुदृढ़ करने की कोई चर्चा हो रही और न ही ज्वलंत मुद्दों को लेकर कोई अभियान चलाया जा रहा। हालांकि सदन में पार्टी ने बाढ़, मुजफ्फरपुर में अज्ञात बीमारी से बच्चों की मौत और विधि व्यवस्था जैसे मुद्दों को लेकर सरकार को घेरने का प्रयास किया।
लोकसभा चुनाव में प्रदेश कांग्रेस ने काफी मेहनत की। राहुल गांधी की चुनाव से पहले पटना में आयोजित रैली ने पिछले तीन दशक से कमजोर पड़ी पार्टी में नई ऊर्जा प्रदान की। मगर, लोकसभा चुनाव में पार्टी के नौ में से केवल एक उम्मीदवार ही जीत पाए।
चुनाव के नतीजे ने पार्टी नेताओं का हौसला ध्वस्त किया, मगर कुछ ही दिनों बाद आरंभ हुए विधानसभा के मानसून सत्र में यह देखने को मिला कि प्रदेश कांग्रेस ने खुद को संभाला है। मगर, शिखर नेतृत्व को लेकर दो माह बाद भी कोई फैसला नहीं होना पार्टी की बिहार इकाई में एक बार फिर मायूसी फैलाने लगा है। कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता सदानंद सिंह ने इसी मायूसी के माहौल में प्रियंका गांधी को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की मांग उठाई है।
सूत्रों ने बताया कि संशय के कारण ही प्रदेश कार्य समिति की बैठक अभी तक नहीं बुलाई गई है, हालांकि मानसून सत्र के पहले ही इसे आयोजित करने की चर्चा थी। कार्य समिति के विस्तार के अलावा कई अन्य कमेटियों के गठन का भी इंतजार जारी है। उत्तर बिहार में आई बाढ़ को लेकर पार्टी नेताओं ने कुछ दिन सक्रियता दिखाई। प्रदेश अध्यक्ष डा. मदन मोहन झा ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया।
पीडितों के लिए राहत सामग्री की दो खेप भेजी गई। मगर फिर पिछले एक सप्ताह से कोई सक्रियता देखने को नहीं मिली है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि अगले वर्ष प्रदेश में विधानसभा चुनाव के कारण संगठन सुदृढ़ करने की दिशा में तत्काल कार्रवाई आवश्यक है। मगर, दिल्ली में संशय बरकरार रहने के कारण प्रदेश नेतृत्व चुप्पी साधे है। कांग्रेस के अंदर 'वेट एंड वाच' की रणनीति अपनाई जा रही है, जबकि प्रदेश में राजनीतिक गतिविधियां रफ्तार पकड़े हैं।
राजद के एक वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री डा. एमएए फातिमी का जदयू में शामिल होना और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजद के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी के घर जाना ऐसी ही कुछ गतिविधियां हैं। प्रदेश में कांग्रेस, राजद की सहयोगी पार्टी है। दोनों ही महागठबंधन के बड़े दल हैं, जिन्हें लोकसभा चुनाव के बाद जल्द ही एक बार फिर विधानसभा चुनाव में राजग का मुकाबला करना है।
शिखर नेतृत्व को लेकर पिछले दो माह से बने संशय ने प्रदेश कांग्रेस का हौसला पस्त कर रखा है। विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान अन्य सहयोगी दलों से अधिक सक्रियता दिखाने के पश्चात पार्टी फिर खामोश हो गई है। न तो पार्टी संगठन को सुदृढ़ करने की कोई चर्चा हो रही और न ही ज्वलंत मुद्दों को लेकर कोई अभियान चलाया जा रहा। हालांकि सदन में पार्टी ने बाढ़, मुजफ्फरपुर में अज्ञात बीमारी से बच्चों की मौत और विधि व्यवस्था जैसे मुद्दों को लेकर सरकार को घेरने का प्रयास किया।
लोकसभा चुनाव में प्रदेश कांग्रेस ने काफी मेहनत की। राहुल गांधी की चुनाव से पहले पटना में आयोजित रैली ने पिछले तीन दशक से कमजोर पड़ी पार्टी में नई ऊर्जा प्रदान की। मगर, लोकसभा चुनाव में पार्टी के नौ में से केवल एक उम्मीदवार ही जीत पाए।
चुनाव के नतीजे ने पार्टी नेताओं का हौसला ध्वस्त किया, मगर कुछ ही दिनों बाद आरंभ हुए विधानसभा के मानसून सत्र में यह देखने को मिला कि प्रदेश कांग्रेस ने खुद को संभाला है। मगर, शिखर नेतृत्व को लेकर दो माह बाद भी कोई फैसला नहीं होना पार्टी की बिहार इकाई में एक बार फिर मायूसी फैलाने लगा है। कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता सदानंद सिंह ने इसी मायूसी के माहौल में प्रियंका गांधी को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की मांग उठाई है।
सूत्रों ने बताया कि संशय के कारण ही प्रदेश कार्य समिति की बैठक अभी तक नहीं बुलाई गई है, हालांकि मानसून सत्र के पहले ही इसे आयोजित करने की चर्चा थी। कार्य समिति के विस्तार के अलावा कई अन्य कमेटियों के गठन का भी इंतजार जारी है। उत्तर बिहार में आई बाढ़ को लेकर पार्टी नेताओं ने कुछ दिन सक्रियता दिखाई। प्रदेश अध्यक्ष डा. मदन मोहन झा ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया।
पीडितों के लिए राहत सामग्री की दो खेप भेजी गई। मगर फिर पिछले एक सप्ताह से कोई सक्रियता देखने को नहीं मिली है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि अगले वर्ष प्रदेश में विधानसभा चुनाव के कारण संगठन सुदृढ़ करने की दिशा में तत्काल कार्रवाई आवश्यक है। मगर, दिल्ली में संशय बरकरार रहने के कारण प्रदेश नेतृत्व चुप्पी साधे है। कांग्रेस के अंदर 'वेट एंड वाच' की रणनीति अपनाई जा रही है, जबकि प्रदेश में राजनीतिक गतिविधियां रफ्तार पकड़े हैं।
राजद के एक वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री डा. एमएए फातिमी का जदयू में शामिल होना और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजद के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी के घर जाना ऐसी ही कुछ गतिविधियां हैं। प्रदेश में कांग्रेस, राजद की सहयोगी पार्टी है। दोनों ही महागठबंधन के बड़े दल हैं, जिन्हें लोकसभा चुनाव के बाद जल्द ही एक बार फिर विधानसभा चुनाव में राजग का मुकाबला करना है।
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