महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर UP विधानमंडल का विशेष सत्र : ...और प्रत्येक पहलू पर 21 साबित हुई सरकार
पहली बार आयोजित सत्र से विपक्ष का अलग रहने का दांव भी कारगर न हो सका उल्टे अपने संगठनों में गहराते असंतोष को संभाले रखना मुश्किल हुआ।
लखनऊ, जेएनएन। संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्धारित सतत विकास के लक्ष्यों को लेकर महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर लगातार 36 घंटे चले विधानमंडल के विशेष सत्र में सरकार हर पहलू से विपक्ष पर 21 साबित हुई। पहली बार आयोजित सत्र से विपक्ष का अलग रहने का दांव भी कारगर न हो सका, उल्टे अपने संगठनों में गहराते असंतोष को संभाले रखना मुश्किल हुआ। जनहित के मुद्दों पर सदन के भीतर सरकार से भिड़ने के बजाए किनारा करने से भी जनता के बीच सकारात्मक संदेश नहीं गया।
विपक्ष ने पहली चूक दलीय नेताओं की शुरुआती बैठक में विशेष सत्र को आहूत करने के लिए सहमति जताकर की। यह सत्र संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्धारित सतत विकास के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए आयोजित किया गया था इसलिए इसका अंतरराष्ट्रीय महत्व भी रहा। इसके अलावा महात्मा गांधी की 150वीं जयंती से जोड़ देने से इस सत्र की महत्ता और बढ़ गई। ऐसे में सत्र आहूत करने की सहमति जताकर मुकर जाने से सरकार को विपक्ष पर हमलावर होने का मौका मिल गया।
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. एसके चतुर्वेदी का कहना है कि सत्र से अलग रहने का भी विपक्ष कोई तर्क न दे सका। बेहतर होता सरकार को वॉकओवर न देकर विपक्ष सदन के भीतर जनहित के मुद्दों पर लड़ता। केवल ट्वीटर पर सरकार के विरोध से आम जनता में कोई संदेश नहीं जाता।
समाजवादी पार्टी ने सत्र से अलग रहने को गांधी जयंती पर पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों में शामिल होने की आड़ ली। वहीं बसपा ने उपचुनाव की तैयारी व बाढ़ संकट का बहाना लिया। सपा-बसपा ने खुद को सत्र से अलग रखा जरूर बहिष्कार जैसा शब्द प्रयोग करने से बचें। इसके विपरित स्वयं को सच्चा गांधीवादी बताने वाली कांग्रेस ने 150वीं जयंती पर आयोजित इस सत्र का सीधे बहिष्कार की घोषणा की और अपने विरोधियों को आलोचना करने के लिए हथियार थमा दिया।
बिखराव से हुई किरकिरी
विपक्ष का बिखराव और आंतरिक असंतोष ने भी किरकिरी करायी। सत्र में बसपा के दो, सपा के एक व कांग्रेस के दो विधायकों ने शामिल होकर सरकार की रणनीति में जान डाल दी। वहीं, शिवपाल यादव ने सदन की कार्यवाही में भाग ले यादव परिवार में एकता की संभावनाओं पर विराम लगा दिया। सबसे विषम हालात कांग्रेस के सामने है। गांधी की स्मृति में आयोजित सत्र में रायबरेली से ताल्लुक रखने वाले दो विधायक राकेश सिंह व अदिति सिंह ने बगावती तेवर दिखा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को सीधी चुनौती दी है। बसपा के बागियों की संख्या बढ़कर दो हो गई है। अनिल सिंह के अलावा असलम राइनी द्वारा बगावती तेवर दिखाना बसपा के लिए खतरे की घंटी है।
एक पूर्व कोआर्डिनेटर का कहना है कि पहली बार उपचुनाव में उतरी बसपा का तीसरे नंबर पर खिसक जाना भी शुक संकेत नहीं है। ऐसे में संगठन में असंतोष बढ़ने से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है।