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जानिए, झारखंड में भाजपा और जदयू में क्यों है तकरार; विपक्षी गठबंधन की परेशानी

झारखंड में जदयू की उपेक्षा का आलम यह है कि अब पार्टी के नेता खुले मंच से यह कहने लगे हैं कि उनका यहां भाजपा के साथ गठबंधन नहीं है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Fri, 15 Jun 2018 12:01 PM (IST)Updated: Fri, 15 Jun 2018 05:18 PM (IST)
जानिए, झारखंड में भाजपा और जदयू में क्यों है तकरार; विपक्षी गठबंधन की परेशानी
जानिए, झारखंड में भाजपा और जदयू में क्यों है तकरार; विपक्षी गठबंधन की परेशानी

रांची, जेएनएन। नीतीश कुमार की जदयू ने भले ही बिहार में भाजपा के साथ तालमेल कर लिया, लेकिन पड़ोस का यह फार्मूला झारखंड में चल नहीं रहा है। बिहार में भाजपा के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाने वाली जदयू यहां पसोपेश की स्थिति में है। पार्टी भाजपानीत गठबंधन सरकार का खुलकर समर्थन नहीं करने के साथ-साथ नीतिगत मसलों पर विरोध के स्वर भी बुलंद नहीं कर पा रही है। हालांकि बिहार में भाजपा संग गठबंधन से पहले झारखंड में जदयू के नेता न केवल कई मुद्दों को लेकर सरकार को घेरने का काम कर रहे थे, बल्कि समय-समय पर आंदोलन भी करते थे।

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स्वयं नीतीश कुमार भी रघुवर सरकार को निशाने पर लेने का कोई मौका नहीं चूकते थे। शराबबंदी के पक्ष में उन्होंने यहां कई कार्यक्रमों में शिरकत की लेकिन भाजपा से जुगलबंदी बढ़ने के साथ हीं उनका झारखंड आने का सिलसिला भी थम गया है। दरअसल प्रदेश जदयू के नेता इस आशा में थे कि भाजपा संग गठबंधन की स्थिति में वे सरकार के ज्यादा करीब होंगे। लेकिन भाजपा ने झारखंड में कभी जदयू को तवज्जो ही नहीं दी। यहां तक कि नगर निकाय चुनाव तथा उपचुनाव में भी इससे कोई सहयोग नहीं लिया। झारखंड में जदयू की उपेक्षा का आलम यह है कि अब पार्टी के नेता खुले मंच से यह कहने लगे हैं कि उनका यहां भाजपा के साथ गठबंधन नहीं है।

जदयू झारखंड में विधानसभा की सभी 81 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। कार्यकर्ताओं के दबाव में लंबे अरसे बाद तय हुआ कि पार्टी राज्य सरकार के अच्छे कार्यो की प्रशंसा करेगी, लेकिन जनता से जुड़े मुद्दों तथा सरकार की खामियों को लेकर चुप नहीं बैठेगी। हालांकि भाजपा द्वारा जदयू की उपेक्षा का एक बड़ा कारण यह भी है कि झारखंड में जदयू की हालत खराब है। स्थिति यह है कि आज एक भी विधायक इस पार्टी से नहीं है। संगठन को मजबूत करने की बात हो तो दो-चार माह पर प्रदेश प्रभारी व सह प्रभारी आकर एक-दो दिन बैठक कर चले जाते हैं। पार्टी की गतिविधियां नहीं के बराबर है।

भूख पर राजनीति
झारखंड में इन दिनों भूख पर राजनीति चरम पर है। तमाम विरोधी दल जहां गिरिडीह में एक महिला की मौत पर सरकार को कोस रहे हैं वहीं सरकार की ओर से प्रमाण के साथ दावा किया जा रहा है कि मौत की वजह भूख नहीं है। दो अलग-अलग टीमें बनाकर इसकी जांच की गई। स्पष्ट बोलने वाले राज्य सरकार के मंत्री सरयू राय का भी दावा है कि विपक्ष अनर्गल आरोप लगा रहा है। उनके मुताबिक बीडीओ और मार्केटिंग अफसर ने यथास्थिति की जानकारी ली। स्थानीय विधायक, जो विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा से ताल्लुक रखते हैं, भी वहां पहुंचे।

परिजनों के बयान का भी उन्होंने हवाला दिया। मंत्री ने विभागीय स्तर से कराई गई जांच रिपोर्ट भी पेश की। मंत्री के पद पर रहने के बावजूद अक्सर सरकार को घेरने वाले मंत्री सरयू राय ने विपक्ष को झिड़कते हुए यह भी कहा कि वे हर मामले को भूख से जोड़ देते हैं। इससे सरकार की बदनामी होती है। उन्होंने आरोप लगाने वालों के आगे आकर जांच करने को भी कहा।

विपक्षी गठबंधन की परेशानी
झारखंड में विपक्षी महागठबंधन के कुनबे में सीटों के तालमेल को लेकर परेशानी बढ़ सकती है। मुख्य विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा का दावा विधानसभा की कुल 81 सीटों में से 45 पर है। बची हुई 36 सीटों में से 25 पर कांग्रेस की दावेदारी हो सकती है। ऐसे स्थिति में बाकी बची महज 11 सीटों पर लालू प्रसाद के नेतृत्व वाली राजद, बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो और वामदलों की दावेदारी होगी। फिलहाल झामुमो इसी फार्मूले के साथ आगे बढ़ रहा है। ऐसे में टकराव तय है। कांग्रेस 25 सीटों पर मान सकती है लेकिन बाबूलाल मरांडी को मनाना कठिन होगा। बाबूलाल मरांडी बड़ी मुश्किल से गठबंधन का साथ देने को राजी हुए हैं।

विधानसभा में झामुमो के सर्वाधिक 19 विधायक हैं। वर्तमान राजनीतिक तस्वीर के हिसाब से झामुमो के सीटों के बंटवारे का फार्मूला ठीक ही दिखाई देता है। कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों को उनकी वर्तमान हैसियत से तीन गुना से अधिक सीटें देने की पेशकश की गई है। लेकिन झामुमो का यह फार्मूला विपक्षी दलों को रास आएगा, इसमें संशय है। बाबूलाल मरांडी की झाविमो सीटों के बंटवारे के इस फार्मूले से छिटक सकती है। पिछले चुनाव में झाविमो ने अपने बूते आठ सीटों पर जीत हासिल की थी। महागठबंधन में राजद अपनी हैसियत को लेकर भी सवाल उठा सकता है। वामदलों की स्थिति भी इससे इतर नहीं होगी।

संभव है कि कांग्रेस लोकसभा में अधिक सीटों के एवज में झामुमो के फार्मूले पर राजी हो जाए। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और झामुमो के गठबंधन के तहत जो फार्मूला तय हुआ था, उसमें तीन चौथाई पर कांग्रेस और एक तिहाई पर झामुमो ने अपने उम्मीदवार उतारे थे। झामुमो दो सीटें जीतने में कामयाब रहा था जबकि कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला था। 


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