बसपा के गठबंधन टूटने के बाद मुस्लिम वोट बैंक बचाने की फिक्र में समाजवादी पार्टी
बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन टूटने के बाद समाजवादी पार्टी को अब अपने मूल वोट मुस्लिम वोट बैंक बचाने की चिंता सताने लगी है।
लखनऊ, जेएनएन। लोकसभा चुनाव 2019 में बुरी शिकस्त और बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन टूटने के बाद समाजवादी पार्टी को अब अपने मूल वोट मुस्लिम वोट बैंक बचाने की चिंता सताने लगी है। अब पार्टी ने इसके लिए पार्टी संगठन में उनका प्रतिनिधित्व बढ़ाने के साथ ही अल्पसंख्यकों की समस्याओं को लेकर आंदोलन चलाने की तैयारी है।
उत्तर प्रदेश विधानमंडल के मानसून सत्र के बाद चलाये जाने वाले इस अभियान में अल्पसंख्यकों, पिछड़ों और किसानों पर फोकस किया जाएगा। विदेश के दौरे से लौटने के बाद पार्टी मुख्यालय में कार्यकर्ताओं के मन की बात सुनने में जुटे सपा प्रमुख अखिलेश यादव उपचुनाव की तैयारियों की भी सीटवार समीक्षा कर रहे हैं।
सूत्र बताते हैं कि प्रदेश की जिन 12 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उनमें से केवल एक रामपुर ही सपा के कब्जे में है। ऐसे में रामपुर पर कब्जा बरकरार रखने के साथ समाजवादी अन्य सीटों पर भी बेहतर प्रदर्शन चाहती है। खासतौर से बसपा से अधिक वोटें जुटाना ही सपा का पहला लक्ष्य रहेगा।
मुस्लिमों में बसपा प्रेम जगने का डर
मुस्लिमों की पहली पंसद रही सपा को चिंता है कि लोकसभा चुनाव में बसपा के ज्यादा सांसद जीतने के बाद कहीं मुस्लिमों का मन न बदल जाए। बसपा के दलित-मुस्लिम समीकरण को जीतने का आंकड़ा बताने वाले सैफी भाईचारा कमेटी के संयोजक शाहजहां का कहना है कि सपा का यादव वोटबैंक भी अब डगमगाता दिख रहा है। यादव बिरादरी के अन्य दलों में गए कई पुराने नेता भी सपा में वापसी के बजाय बसपा को ही पसंद कर रहे है। ऐसे में मुसलमानों को 2022 तक सपा से जोडऩे रखना सहज नहीं होगा। एक वरिष्ठ मुस्लिम सपा नेता का दावा है कि बसपा से मुस्लिमों का प्रेम स्थाई नहीं हो सकता है क्योंकि भाजपा से कई बार समझौता कर चुकी मायावती का कोई भरोसा नहीं है।
छोटे दलों को जोड़ेंगे
मिशन 2022 का पूर्वाभ्यास माने जाने वाले उपचुनाव में समाजवादी पार्टी अपनी पूरी ताकत झौंकेगी। राष्ट्रीय लोकदल समेत कुछ अन्य छोटे दलों से गठबंधन भी संभव है। माना जा रहा है भाजपा से नाराज चल रहे ओमप्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को साथ लेने की कोशिश भी जारी है। इसके अलावा संगठन में बदलाव के साथ फ्रंटल संगठनों को कसा जाएगा। कई इकाइयों के अध्यक्ष बदलने की चर्चाएं जोरों पर है।