Move to Jagran APP

गठबंधन के जख्म पर BSP के बागियों का मरहम, दर्जन भर से अधिक हाथी छोड़ साइकिल पर सवार

एक दर्जन से अधिक बड़े नेताओं के दलबदल करके हाथी को छोड़कर सपा की साइकिल पर सवार होने से बसपा में बेचैनी बढ़ी है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Mon, 14 Oct 2019 03:31 PM (IST)Updated: Mon, 14 Oct 2019 03:31 PM (IST)
गठबंधन के जख्म पर BSP के बागियों का मरहम, दर्जन भर से अधिक हाथी छोड़ साइकिल पर सवार
गठबंधन के जख्म पर BSP के बागियों का मरहम, दर्जन भर से अधिक हाथी छोड़ साइकिल पर सवार

लखनऊ, जेएनएन। लोकसभा चुनाव 2019 में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन परिणाम आने के बाद ऐसा टूटा कि अब दोनों पार्टियों में बीच नेताओं को तोडऩे की होड़ लगी है। इस होड़ में फिलहाल समाजवादी पार्टी ही आगे है। 

loksabha election banner

गठबंधन टूटने के बाद से बसपा छोड़कर सपा में जाने वालों की संख्या बढ़ी है। एक दर्जन से अधिक बड़े नेताओं के दलबदल करके हाथी को छोड़कर सपा की साइकिल पर सवार होने से बसपा में बेचैनी बढ़ी है। खासकर उपचुनाव में इसका दुष्प्रभाव पडऩे की आशंका को देखते हुए बसपा नेतृत्व ने अपने पार्टी कोआर्डिनटरों को सचेत करते हुए असंतुष्टों पर नजर रखने को कहा है ताकि दलबदल करने से पूर्व उन्हें निष्कासित किया जा सके।

समाजवादी पार्टी भी बसपा को कमजोर करने की मुहिम छेड़े हुए है। एक माह के भीतर बसपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दयाराम पाल, मिठाई लाल, अतहर खां समेत एक दर्जन से अधिक वरिष्ठ नेता हाथी की सवारी को छोड़ कर साइकिल पर सवार हो चुके हैं। हमीरपुर उपचुनाव में बसपा प्रत्याशी के तीसरे स्थान पर खिसकने और सपा की वोटों में अधिक गिरावट न होने व दूसरे स्थान पर आने से बसपा में बेचैनी है। 

बसपा के कोआर्डिनेटर का कहना है कि उपचुनाव लडऩे का फैसला पार्टी के हित में नहीं रहा। बेहतर होता कि अन्य दलों से गठबंधन करके इस बार भी भाजपा के खिलाफ साझा उम्मीदवार उतारा जाता। इससे भाजपा के विजय रथ को रोकने में मदद मिलती।

लोकसभा चुनाव से पहले कैराना, गोरखपुर व फूलपुर के लोकसभा उपचुनावों में भी भाजपा को मात मिली थी। ऐसे में गठबंधन को तोडऩे के लिए सभी विपक्षी एक-दूजे को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि उन्हें भाजपा विरोधी वोटों का लाभ मिल सके।

बागियों की पहली पसंद सपा

उप चुनाव से पहले विपक्षी दलों में हो रहे दलबदल में सपा लाभ की स्थिति में दिख रही है। बसपा-कांग्रेस को छोड़ भाजपा में नहीं जाने वाले नेताओं को साइकिल की सवारी भा रही है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी बागियों के लिए पार्टी के दरवाजे यह कहकर खोल दिए है कि उन्हें नेताओं पर दर्ज मुकदमों की परवाह नहीं। यानी बागी अगर दागी है तो भी कुनबा बढ़ाने के लिए चलेगा। 

मिशन-2022 पर निगाह

समाजवादी पार्टी की कुनबा बढ़ाओ मुहिम मिशन 2022 को जीतने के लिए जोर-शोर से जारी है। पार्टी के राष्टीय अध्यक्ष अखिलेश यादव विधानसभा चुनाव अकेले लडऩे की घोषणा कर चुके है। ऐसे में बसपा कमजोर होगी तो समाजवादी पार्टी का पलड़ा भारी होगा। बसपा के दलित-मुस्लिम समीकरण पर सपा के मुस्लिम-यादव फार्मूले को भारी बनाये रखने के लिए अखिलेश यादव अब नाराज यादवों को बटोरने में लगे हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.