Move to Jagran APP

जम्मू-कश्मीरः जानिए, कौन हैं वो अलगाववादी नेता जिनकी सुरक्षा वापस ली गई

Pulwama Terror Attack. जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद हुर्रियत के पांच नेताओं की सुरक्षा वापस ले ली गई है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Sun, 17 Feb 2019 11:50 AM (IST)Updated: Sun, 17 Feb 2019 05:09 PM (IST)
जम्मू-कश्मीरः जानिए, कौन हैं वो अलगाववादी नेता जिनकी सुरक्षा वापस ली गई
जम्मू-कश्मीरः जानिए, कौन हैं वो अलगाववादी नेता जिनकी सुरक्षा वापस ली गई

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। जम्मू-कश्मीर सरकार ने रविवार को ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के उदारवादी नेता मीरवाइज मौलवी उमर फारुक समेत पांच अलगाववादियों को प्रदान की गई सरकारी सुरक्षा को वापस ले लिया है। अलबत्ता, कट्टरपंथी सईद अली शाह गिलानी व अन्य कट्टरपंथियों की सुरक्षा हटाने पर अभी सरकार मौन है। बीते एक दशक के दौरान विभिन्न अलगाववादियों की सुरक्षा पर सरकारी खजाने से लगभग 15 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।

loksabha election banner

राज्य गृह विभाग के एक आदेश के मुताबिक, ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन मीरवाईज मौलवी उमर फारुक, प्रो अब्दुल गनी बट, बिलाल गनी लोन, शब्बीर शाह और हाशिम कुरैशी को प्रदान की गई सुरक्षा व सुरक्षा वाहन और अन्य सुविधाएं वापस ली जाती हैं। इसके अलावा अगर कोई अन्य सरकारी सुविधा भी इनको प्राप्त है तो वह भी हटाई जाएगी।

मीरवाईज मौलवी उमर फारूक व प्रो अब्दुल गनी बट बोले, हमने कभी सुरक्षा नहीं मांगी
मीरवाईज मौलवी उमर फारूक और प्रो अब्दुल गनी बट ने राज्य सरकार द्वारा सुरक्षा वापस लिए जाने पर कहा कि हमने कभी सुरक्षा नहीं मांगी थी। अगर इसे हटाया जाता है तो हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। इस सुरक्षा को भारतीय एजेंसियां कश्मीर के नेताओं को बदनाम करने के लिए ही इस्तेमाल करती हैं। राज्य सरकार ने खुद ही हम पर खतरे का आकलन कर सुरक्षा दी थी। इसके जरिए हमारी गतिविधियों की निगरानी की जाती थी। अच्छा हो गया है, अब हम आजादी से चल फिर सकेंगे।

बीते एक दशक के दौरान सरकारी खजाने से राज्य में सक्रिय अलगाववादियों की सुरक्षा पर करीब 15 करोड़ खर्च हुए हैं। यह राशि अलगाववादियों को प्रदान किए जाने वाले सुरक्षाकर्मियों, एस्कार्ट, वाहन व अन्य सुविधाओं पर खर्च हुई है।  मीरवाईज मौलवी उमर फारुक की सुरक्षा पर ही छह करोड़ की राशि खर्च हुई है। इसमें से 1.27 करोड़ उनके साथ अटैच पुलिस एस्कार्ट पर हुए हैं, जबकि उनके घर पर तैनात सुरक्षा गार्द पर 5.06 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। प्रो अब्दुल गनी बट की सुरक्षा पर बीते एक दशक में 2.34 करोड़ की राशि खर्च हुई है, जबकि बिलाल गनी लोन की सुरक्षा पर इस दौरान 1.65 करोड़ और हाशिम कुरेशी की सुरक्षा पर भी करीब डेढ़ करोड़ खर्च किए गए हैं।

जानें, कौन हैं वो अलवागवादी नेता जिनकी सुरक्षा वापस ली गई
1. मीरवाईज मौलवी उमर फारुक 
ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के उदारवादी गुट के चेयरमैन मीरवाईज मौलवी उमर फारुक के अपने संगठन का नाम अवामी एक्शन कमेटी है। अवामी एक्शन कमेटी का गठन उनके पिता मीरवाईज मौलवी फारुक ने किया था। मौलवी फारुक की 21 मई, 1990 में आतंकियों ने हत्या की थी। पिता की मौत के बाद कश्मीर के मीरवाईज और अवामी एक्शन कमेटी के चेयरमैन बने मीरवाईज मौलवी उमर फारुक हर शुक्रवार को श्रीनगर की जामिया मस्जिद से खुतबा देते हैं। वह केंद्र सरकार के साथ कश्मीर मुद्दे पर बातचीत में हिस्सा ले चुके हैं। वह 1993 में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन हैं। वह कट्टरपंथी आतंकियों के निशाने पर शुरू से रहे हैं। वर्ष 2014 में वह दुनिया के 500 सर्वाधिक प्रभावशाली मुस्लिम नेताओं की सूची में शामिल किए गए हैं।

उन्हें अपने पिता की हत्या के बाद से ही सुरक्षा प्रदान है। इस सुरक्षा को वर्ष 2015 में केंद्र सरकार ने जेड प्लस में बढ़ायाा था। इसके तहत उन्हें सीआरपीएफ व राज्य पुलिस के सुरक्षाकर्मी प्रदान किए गए। इसके अलावा उन्हें बुलेट प्रूफ वाहन भी दिया गया। लेकिन वर्ष 2017 में जामिया मस्जिद में ईद से चंद दिन पहले एक डीएसपी को राष्ट्रविरोधी हिंसक तत्वों द्वारा मौत के घाट उतारे जाने के बाद उनकी सुरक्षा में कटौती की गई थी। मीरवाईज के साथ राज्य पुलिस के एक डीएसपी के नेतृत्व में सुरक्षा दस्ता तैनात रहता था। बाद में डीएसपी को हटाकर सुरक्षा की कमान एक इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी को दी गई।

2. प्रो अब्दुल गनी बट
प्रो अब्दुल गनी बट मूलत: शिक्षाविद्ध हैं और वह मुस्लिम कॉन्फ्रेंस कश्मीर के अध्यक्ष हैं। वह एकीकृत हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन भी रह चुके हैं और जब हुर्रियत दोफाड़ हुई तो वह मीरवाईज मौलवी उमर फारुक के नेतृृत्व वाली उदारवादी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के साथ ही डटे रहे। वह हुर्रियत के प्रमुख प्रवक्ता भी रहे हैं। वह शुरू में जमायत ए इस्लामी के साथ ही थे और बाद में उन्होंने मुस्लिम कॉन्फ्रेंस का जिम्मा संभाला।

उत्तरी कश्मीर के सोपोर के रहने वाले हैं और उनके एक भाई की हत्या आतंकियों ने की है। वह कश्मीर मसले पर हमेशा बातचीत के पक्षधर रहे हैं और केंद्र के साथ बातचीत में हिस्सा ले चुके हैं। उन्होंने हुर्रियत के बहिष्कार के बावजूद केंद्रीय वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा से मुलाकात की और कहा कि बातचीत करना जरूरी है। बट को सरकारी सुरक्षा के नाम पर चार सुरक्षाकर्मी प्रदान किए गए हैं।

3. बिलाल गनी लोन
बिलाल गनी लोन पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन व पूर्व समाज कल्याण मंत्री सज्जाद गनी लोन के भाई हैं। पीपुल्स कॉन्फ्रेंस का गठन बिलाल गनी के पिता अब्दुल गनी लोन ने 1978 में किया था। अब्दुल गनी लोन की आतंकियों द्वारा हत्या के बाद पीपुल्स कॉन्फ्रेंस की संगठनात्मक कमान सज्जाद ने संभाली और बिलाल गनी लोन को हुर्रियत में पीपुल्स कॉन्फ्रेंस का स्थायी प्रतिनिधि नियुक्त किया गया। लेकिन वर्ष 2002 के चुनावों में पीपुल्स कॉन्फ्रेंस द्वारा प्राक्सी उम्मीदवार उतारे जाने से अलगाववादी खेमे में पैदा हुए विवाद से न सिर्फ हुर्रियत दोफाड़ हुई बल्कि पीपुल्स कॉन्फ्रेंस भी दो धड़ों बिलाल व सज्जाद में बंट गई।

सज्जाद बाद में मुख्यधारा की सियासत में शामिल हो गए। बिलाल अलगाववादी खेमे में ही रहे। वह मीरवाईज मौलवी उमर फारुक के करीबियों में एक हैं। बिलाल गनी लोन ने गत दिनों ही पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अपने गुट का नाम बदलकर जम्मू कश्मीर पीपुल्स इंडिपेंडेंट मूवमेंट रखा है। उन्हें सरकारी सुरक्षा के नाम पर छह से आठ पुलिसकर्मियों की गार्द के अलावा एक सिक्योरिटी वाहन भी प्रदान किया गया है। मूलत: वह उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा के रहने वाले हैं, लेकिन बीते कई सालों से श्रीनगर के सन्नत नगर में सज्जाद गनी लोन क मकान साथ सटे मकान में रह रहे हैं।

4. शब्बीर शाह
शब्बीर शाह भी कश्मीर के पुराने अलगाववादियों में एक हैं। दक्षिण कश्मीर मे जिला अनंतनाग के डुरु शाहबाद के रहने वाले शब्बीर शाह ने 1960 के दशक के अंत में अलगाववादी संगठन यंगमैन लीग के साथ अपना सियासी सफर शुरू किया। वर्ष 1974 में उन्होंने फजल हक कुरैशी, नजीर वानी, अब्दुल मजीद पठान के साथ मिलकर पीपुल्स लीग बनाई। लेकिन जब पीपुल्स लीग का एलान हुआ तो वह खुद जेल में थे। कश्मीर का नेल्सन मंडेला कहलाने वाले शब्बीर शाह कभी बंदूक के भी समर्थक रहे हैं। वह 1989 तक कई बार पकड़े गए और जेल में बंदरहे। 1987 के विधानसभा चुनावों में भी वह शामिल रहे हैं। उनके एक भाई राज्य विधानसभा के सदस्य भी रहे हैं। रियासत में आतंकवाद शुरू होने के बाद वह 29 अगस्त, 1989 को पकड़े गए और 1994 में रिहा हुए थे।

जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने कुछ दिनों तक पीपुल्स लीग का बैनर थामे रखा और हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का हिस्सा बन गए। कुछ ही समय बाद उन्होंने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से किनारा करते हुए जम्मू-कश्मीर डेमोक्रेटिक फ्रीडम पार्टी नामक संगठन बनाया। वह भी कश्मीर मसले के हल के लिए केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर नियुक्त किए गए वार्ताकारों से मिल चुके हैं। लेकिन मौजूदा वार्ताकार से उनकी कोई मुलाकात नहीं हुई हैं। फिलहाल, वह वर्ष 2016 में कश्मीर में हुए सिलसिलेवार हिंसक प्रदर्शनों और कश्मीर में आतंकी फंडिग के सिलसिले में तिहाड़ जेल में बंद है। शब्बीर शाह की पत्नी डॉक्टर है और उनकी दो बेटियां हैं। शब्बीर शाह को चार से छह पुलिसकर्मियों पर आधारित सुरक्षा दस्ता प्रदान किया गया था। इसके अलावा एक वाहन भी दिया गया था।

5. हाशिम कुरैशी
हाशिम कुरैशी रियासत में खूनी आतंकवाद का इतिहास लिखने वाले संगठन जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के संस्थापक सदस्यों में एक हैं। वह 1984 में तिहाड़ में फांसी पर लटकाए गए मकबूल बट के करीबी रहे हैं। उन्होंने ही 1971 में इंडियन एयरलाइस के विमान गंगा को अपने साथियों संग हाईजैक कर लाहौर में उतारा था। वर्ष 1994 में उन्होंने जम्मू-कश्मीर डेमोक्रेटिक लिबरेशन पार्टी का गठन किया। वह पाकिस्तान में काफी देर रहे और उसके बाद हालैंड चले गए। वर्ष 2000 के दौरान वह भारत आए। उनके चार बच्चे हैं।

एक बेटा जुनैद कुरैशी अक्सर संयुक्त राष्ट्र में अक्सर कश्मीर मुद्दे पर अपना पक्ष रखते हुए नजर आता है। वह कश्मीर की आजादी की वकालत करते हुए कई बार पाकिस्तान की कश्मीर में नकारातमक भूमिका को लेकर पाक परस्तों का निशाना बन चुका है। हाशिम कुरैशी का मानना है कि कश्मीर मसला सिर्फ शांतिपूर्ण बातचीत से ही हल हो सकता है। वह कहते हैं कि कश्मीर में जो बंदूक है, वह पाकिस्तान ने कश्मीरियों की बेहतरी के लिए नहीं अपने मकसद को हल करने के लिए दी है। इसे बंद किया जाना चाहिए।

जम्मू कश्मीर प्रशासन द्वारा सुरक्षा वापस लेने के बाद अलगाववादी अब्दुल गनी भट ने कहा कि सुरक्षा राज्य सरकार द्वारा प्रदान की गई थी, मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है। 

गौरतलब है कि सरकार हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा पर करोड़ों रुपये खर्च करती है। पुलवामा हमले के बाद इन अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा वापस लेने की मांग की गई थी।

गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि इन नेताओं की सुरक्षा वापस ली जाएगी। इस फैसले पर अमल करते हुए सरकार ने इनसे सभी सुरक्षा वापस ले ली है।

यह भी पढ़ेंः मीरवाइज के नापाक बोल, कहा- एक आतंकी मारोगे तो 10 पैदा होंगे
 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.