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यूपी में एक साल से हिंसा भड़काने की फिराक में था पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया, लखनऊ में लगाये थे पोस्टर

लखनऊ में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआइ) की प्रदेश अध्यक्ष वसीम अहमद समेत तीन सक्रिय सदस्यों की गिरफ्तारी के बाद यह बात भी साफ हो गई है कि हिंसा के पीछे गहरा षड्यंत्र था।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Tue, 24 Dec 2019 05:50 PM (IST)Updated: Wed, 25 Dec 2019 08:42 AM (IST)
यूपी में एक साल से हिंसा भड़काने की फिराक में था पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया, लखनऊ में लगाये थे पोस्टर
यूपी में एक साल से हिंसा भड़काने की फिराक में था पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया, लखनऊ में लगाये थे पोस्टर

लखनऊ [आलोक मिश्र]। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध में हुए हिंसक प्रदर्शनों में जिस तरह कश्मीर की तर्ज पर पत्थरबाजी की घटनाएं सामने आई हैं, उसने खुफिया एजेंसियों से लेकर पुलिस तक को कई संगठनों की जड़ें खंगालने पर मजबूर कर दिया है।

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लखनऊ में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआइ) की प्रदेश अध्यक्ष वसीम अहमद समेत तीन सक्रिय सदस्यों की गिरफ्तारी के बाद यह बात भी साफ हो गई है कि हिंसा के पीछे गहरा षड्यंत्र था। लखनऊ में करीब छह माह पहले खुफिया तंत्र को इसके संकेत तब मिले थे, जब खुर्रमनगर क्षेत्र में कुछ पोस्टर चस्पा किए गए थे। उन पोस्टरों में एक युवक को हाथ में पत्थर लिए दिखाया गया था और सरकार के खिलाफ भड़काने की कोशिश की गई थी। पीएफआइ के प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) से कनेक्शन भी सामने आए हैं। सूत्रों का कहना है कि कुछ अन्य संगठनों की मदद से पीएफआइ करीब एक साल से उत्तर प्रदेश में हिंसा भड़काने की फिराक में था।

डीजीपी ओपी सिंह का कहना है कि यूपी पुलिस ने करीब छह माह पूर्व पीएफआइ को प्रतिबंधित किए जाने के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखा था। हिंसा में पीएफआइ की भूमिका सामने आने के बाद केंद्र सरकार को रिमांइडर भेजकर संगठन को प्रतिबंधित किए जाने की सिफारिश की जाएगी।

पीएफआइ की नींव केरल में रखी गई थी। खुफिया रिपोर्ट के अनुसार 22 नवंबर 2006 को केरल के कालीकट में पीएफआइ का गठन हुआ था और जुलाई 2007 में कर्नाटक में इस संगठन का रजिस्ट्रेशन कराया गया था। पीएफआइ अपने सहयोगी संगठनों के साथ मिलकर काम करता है। पीएफआइ ने अपने महिला व स्टूडेंट फ्रंट भी बनाए हैं। खुफिया रिपोर्ट में सिमी के कई सक्रिय पदाधिकारियों व सदस्यों के पीएफआइ से जुड़े होने के तथ्य भी सामने आ चुके हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शामली, बिजनौर व मुजफ्फरनगर में संगठन की जिला कार्य समिति काम करती रही है। ऐसे ही पूर्वी उत्तर प्रदेश में लखनऊ व कानपुर कार्य समिति तथा वाराणसी व अलीगढ़ में सदस्यों की सक्रियता रही है।

सिमी पर प्रतिबंध के बाद पीएफआइ की सक्रियता बढ़ने के संकेत मिले थे, जिसके बाद से खुफिया इकाइयां इसके पदाधिकारियों व सदस्यों की गतिविधियों पर नजर रख रही थीं। उत्तर प्रदेश में तीन तलाक, अनुच्छेद 370 व अन्य मुद्दों को लेकर अपनी सक्रियता बढ़ा रहे थे और नुक्कड़ सभाओं के जरिए अपनी पैठ बढ़ाई। फंड भी इकट्ठा किया गया। बाराबंकी के सफदरगंज थाने में अगस्त 2010 में पीएफआइ के 10 सदस्यों के खिलाफ ग्राम रामपुर कटरा में आपत्तिजनक पोस्टर चस्पा किए जाने के मामले में एफआइआर दर्ज कराई गई थी। इसी साल आपत्तिजनक पोस्टर चस्पा किए जाने के मामले में सीतापुर में दो व मुजफ्फरनगर में एक मुकदमा दर्ज कराया गया था। इस वर्ष जुलाई माह में पोस्टर चस्पा किए जाने के मामलों में मेरठ व बिजनौर में भी मुकदमे पंजीकृत हुए थे।


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